अपन मालेगांव जांच से जुड़ी अफवाहों से परहेज करते रहे। वरना अफवाहें तो पूरी जांच राजनीतिक साजिश की थी। जो सोनिया को घेरने के लिए रची बताई गई। यानी जांच में सोनिया का कोई हाथ नहीं। अफवाहों में पवार के साथ एक कांग्रेसी दिग्गज का भी नाम था। पर अपन को अफवाहें तवज्जो देने लायक नहीं लगी। अपने नरेन्द्र मोदी मंगलवार रात बोले- 'जब मैं मकोका जैसा गुजकोका मांगता हूं। ताकि सलीम उस्मान बशर और कयामुद्दीन पर लगा सकूं। तो मनमोहन कहते हैं- यह पाशविक कानून है। पर महाराष्ट्र में एटीएस को प्रुफ नहीं मिला। तो प्रज्ञा, पुरोहित, पांडे पर मकोका लगा दिया। दाल में जरूर कुछ काला।' वह दाल में काला क्या है? इस पर कुछ रोशनी रविशंकर प्रसाद को डालनी पड़ी। उनने कहा- 'पवार ने पांच अक्टूबर को कैसे कहा- मालेगांव विस्फोट में हिंदू आतंकवादियों का हाथ।'
अपन याद कराते जाएं। प्रज्ञा ठाकुर को पहला फोन सात अक्टूबर को गया। एटीएस के किसी सावंत ने फोन पर मोटर साईकिल पर तफतीश की। फिर दस अक्टूबर तक सूरत बुलाया। वहीं से उस दिन मुंबई ले गए। भले ही एटीएस ने गिरफ्तारी 23 अक्टूबर को दिखाई। पांच और सात अक्टूबर का महत्व देखिए। माना महाराष्ट्र के होम मिनिस्टर आरआर पाटिल एनसीपी से। पर कोई इतनी बड़ी राजनीतिक साजिश कैसे रचेगा। वैसे एक सवाल तो एटीएस से पूछना चाहिए। एटीएस को जब पहली बार सबूत मिले। तो वह इतनी सुस्त क्यों थी। प्रज्ञा को गिरफ्तार करने मध्यप्रदेश क्यों नहीं पहुंची। सूरत क्यों बुलाया। तीन दिन तक इंतजार क्यों किया। प्रज्ञा ने अपने हल्फिया बयान में कहा है- 'मैंने कुछ किया होता। तो खुद सूरत क्यों पहुंचती?' यों एटीएस ने अपनी थ्योरी में कई कहानियां जोड़ ली। कई दिन सुर्खियां बन गई। सेना भी कटघरे में खड़ी हो गई। बात सेना की चली। तो बताते जाएं- कांगो सरकार ने यूनाइटेड नेशन को लिखा है- 'कांगो में शांति सैनिकों की तादाद बढ़ाई जाए। तो उस देश के सैनिक न बुलाए जाएं। जिसके सैनिकों पर बलात्कार के आरोप लगे।' खबर आई है- 'इशारा भारतीय सेना की ओर है।' पर अपन बात कर रहे थे मालेगांव और एटीएस की। तो मंगलवार रात को 'एनडीटीवी' पर एक घंटे का प्रोग्राम आया- 'प्रज्ञा, पांडे और लैपटाप।' बात हो रही थी पांडे के लैपटाप की। जिस पर सोम को खबर भी आई थी। बहस में एक तो मकोका एक्सपर्ट था। दो पूर्व पुलिस अधिकारी। तीनों बहस के आखिर में इस नतीजे पर पहुंचे- 'एटीएस को शुरू में केस में दम लगा होगा। पर जब कोई सबूत नहीं मिल रहे। तो एटीएस को पीछे हटना चाहिए।' बात सबूतों की चली। तो ताजा सबूत- पांडे का लैपटाप। तो बहस में मकोका एक्सपर्ट बता रहा था- 'लैपटाप कोई सबूत नहीं। कोई और सबूत हो। तो लैपटाप जुड़ जाएगा।' पर बुधवार को मकोका अदालत ने पांडे का पुलिस रिमांड बढ़ा दिया। अब के पुलिस रिमांड लैपटाप के आधार पर। वैसे एटीएस ने लैपटाप के जिस वीडियो की बात की। वह तिल का ताड़ बनाने जैसी ही। अभिनव भारत की हर मीटिंग एटीएस को आतंकवादियों की मीटिंग दिखने लगी। अदालत ने प्रज्ञा-पुराहित-उपाध्याय का पुलिस रिमांड नहीं बढ़ाया। पर एटीएस ने पुरोहित को रिमांड पर लेने के कई रास्ते निकाल लिए। अब फर्जी दस्तावेज पर रिमांड। पर एटीएस की दाल जब तीस दिन नहीं गली। तो अब क्या गलेगी। प्रज्ञा-पुरोहित-उपाध्याय ने सोमवार को ताल ठोककर कहा- 'हम देशभक्त हैं। एटीएस का मुकदमा झूठा।' अपन जांच का हश्र नहीं जानते। पर संघ परिवार अब खुलकर सभी के बचाव में। वीएचपी ने तो बुधवार को दिल्ली में जगह-जगह रैलियां निकाली। सैकड़ों साधु-संत सड़क पर उतर आए। पर बुधवार को ही एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने सफाई दी- 'जांच राजनीतिक इशारे पर नहीं।' अगर यह सच। तो हवा में ही तीर मार रही है एटीएस। जांच किसी नतीजे पर पहुंचती नहीं दिखती।
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