छह एसेंबलियों के चुनाव आडवाणी के लिए महत्वपूर्ण। तो कांग्रेस के लिए भी जीवन-मरण का सवाल। आप इस चुनाव का महत्व एक बात से समझ लें। दो महीनों में वाईएस राजशेखर रेड्डी पांच बार दिल्ली आए। दक्षिण से कोई मुख्यमंत्री इतनी बार क्यों आएगा। आंध्र का सीएम पहले तो ऐसे कभी नहीं आया। किसी पब्लिक रैली को भी संबोधित नहीं किया। अपन बात आंध्र के गवर्नर की भी करेंगे। पर पहले बात मुख्यमंत्री और रैली की चली। तो नरेंद्र मोदी की बात करते जाएं। छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश से निपटकर मोदी दिल्ली में। मोदी की दहशत का हाल देखिए। पंचकुइयां रोड पर पब्लिक मीटिंग की इजाजत नहीं दी। तो मोदी 'रोड शो' में करिश्मा दिखा गए।
मंगलवार को बीजेपी ने दिल्ली में कारपेट बंबिंग की। बीता इतवार सोनिया-मायावती के नाम रहा। तो मंगलवार को आडवाणी-मोदी-राजनाथ के नाम कहिए। मोदी सुबह मध्यप्रदेश तो शाम दिल्ली में छाए। रोड शो के अलावा भी तीन पब्लिक मीटिंगें की। राजनाथ सुबह लखनऊ में थे। तो भी दिनभर में चार रैलियां निपटाई। आडवाणी सुबह उदयपुर रैली कर आए। फिर भी आकर दिल्ली में चार पब्लिक मीटिंगें कर डाली। बुधवार को दिल्ली में बमबारमेंट और तेज होगी। सिर्फ राजनाथ राजस्थान में रहेंगे। मध्यप्रदेश में राजनीतिक रैलियों का बुखार मंगलवार को उतर गया। तो अब दिल्ली, राजस्थान की बारी। वैसे आखिरी दो दिनों में सोनिया-राहुल ने भी एमपी में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों ने दो दिन में कांग्रेसियों को बाग-ओ-बाग कर दिया। बीजेपी पर इतने ताबड़तोड़ हमले प्रदेश के छत्तीस नेता नहीं कर पाए। जितने सोनिया-राहुल ने किए। मंगलवार को जवाब देने के लिए सिर्फ वेंकैया नायडू बचे। चलते-चलते अपन जम्मू कश्मीर की बात भी करते जाएं। जहां अभी पांच दौर का चुनाव बाकी। पहले दौर में 69 फीसदी। तो दूसरे दौर में 65 फीसदी वोट पड़े। ज्यादा वोटिंग से यूपीए की जान में जान आ गई। अब तक सोनिया का जाना तय नहीं था। अब सोनिया, राहुल और मनमोहन भी जाएंगे। लालू-पासवान भी कश्मीर कूच की तैयारी में। पर अपन को लगता है- तीसरे चरण में वोटिंग कुछ घटेगी। चौथे में और घटेगी। पर आवाम का फैसला तो आ चुका। सरकार किसी की भी बने। अलगाववादी तो हार गए। पर अपन बात कर रहे थे- दिल्ली में आंध्रप्रदेश के सीएम की। मंगलवार को राजशेखर रेड्डी दिल्ली आए। तो अजीब-ओ-गरीब सवाल से घिर गए। मंगलवार को ही दिल्ली की एक अदालत ने आंध्र के गवर्नर को तलब कर लिया। आपको याद होगा- रोहित शेखर ने पिछले महीने कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कहा था- 'मेरे पिता एनडी तिवारी। अदालत चाहे तो एनडी का डीएनए करवा ले।' अब अदालत ने तिवारी को तलब कर लिया। तिवारी के वकील ने लाख मिन्नत की। गवर्नर होने की दलील दी। पर अदालत ने कहा- 'यह पारिवारिक झगड़े का मामला। संवैधानिक मामला नहीं। सो तिवारी सोलह दिसंबर को मेरे चेंबर में पेश हों।' तिवारी पहले ही रोहित का दावा नकार चुके। वैसे अपन बताते जाएं- यह कोई नया विवाद नहीं। रोहित की मां उज्जवला की शादी वैसे तो बीपी शर्मा से हुई। तिवारी ने अदालत को भेजे जवाब में कहा था- 'रोहित का जन्म उज्जवला की शादी के बाद हुआ।' उज्जवला अपने दावे पर राजनेताओं के दरवाजे खटखटाती रही। इंदिरा-राजीव के आगे भी गुहार लगा चुकी। राष्ट्रपतियों-उपराष्ट्रपतियों से भी मिलती रही। अब 29 साल का रोहित खुद अदालत में। अपन यह भी बताते जाएं- उज्जवला के पिता प्रोफेसर शेर सिंह कांग्रेस के नेता थे। केंद्र में मंत्री भी रहे। बात डीएनए तक पहुंची। तो तिवारी की किरकिरी होगी। सो तिवारी पर अभी से इस्तीफे का दबाव। वैसे भी कोई गवर्नर कभी ऐसे अदालत में पेश नहीं हुआ। यों होने को तो राष्ट्रपति वीवी गिरी भी हुए थे। पर वह चुनावी याचिका थी।
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