छत्तीसगढ़ की जंग खत्म। सोनिया गांधी छत्तीसगढ़ में प्रचार नहीं कर पाई। ऐसा नहीं, जो चाहती नहीं थी। चाहती थी, इसीलिए तो आखिरी दिन गई। पर नतीजतन गुरुवार को अस्पताल जाना पड़ा। सोनिया की सेहत को अपन से बेहतर कौन जानेगा। मौसम बदलते ही अस्थमा के झटके अपन ने भी बहुत साल झेले। मौसम बदले, तो बचाव भी जरूरी, परहेज भी। सो मध्यप्रदेश में चुनावी बागडोर राहुल के हाथ होगी। राहुल बाबा गुरुवार को पहुंच भी गए। ताबड़तोड़ हमले भी शुरू कर दिए। वही जो मां ने छत्तीसगढ़ में आरोप लगाया था।
वही आरोप मध्यप्रदेश में भी। पांच साल पहले राजस्थान के चुनाव हो रहे थे। तो सोनिया कहती थी- 'केंद्र सरकार ने राजस्थान की गहलोत सरकार को फंड नहीं दिया।' अब सोनिया-राहुल का मुद्दा- 'केंद्र के फंड का दुरुपयोग किया।' पर केंद्र के मंत्री तीनों राज्यों की तारीफ में कई बार पुल बांध चुके। अपनी वसुंधरा ने तो चुनाव प्रचार की शुरूआत ही इन सर्टिफिकेटों से की। उनने कांग्रेसी केंद्रीय मंत्रियों के बयान पढ़कर सुनाए। वैसे भी अपन बताते जाएं। खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय की रपट में तीनों भाजपाई राज्य अव्वल। सोनिया 2006 में राजस्थान गई। तो कहा था- 'ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ठीक से लागू नहीं हो रही।' पर रघुवंश बाबू तभी बोले- 'रोजगार गारंटी योजना लागू करने में राजस्थान अव्वल।' फिर सालाना रिपोर्ट भी हू-ब-हू वही आई। कांग्रेसी राज्यों में रोजगार योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी। खैर बात चुनावी जंग की। चुनाव शुरू होने से पहले दो बड़े मुद्दे लगते थे- आतंकवाद और महंगाई। गुरुवार को वीरप्पा मोइली भी मध्यप्रदेश पहुंच गए। पहुंचते ही मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले- 'अब बीजेपी न आतंकवाद पर बोलने लायक रही, न महंगाई पर। मुद्रास्फीति की दर हमने झटके से दो फीसदी गिरा दी। आतंकवाद में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी हो गई।' ठीक चुनाव के वक्त जिस तरह दो फीसदी मुद्रास्फीति गिरी। अपन को आंकड़ों पर ही भरोसा नहीं होता। सब्जियों के भाव नहीं गिरे। आटा सस्ता नहीं हुआ। नमक-तेल में कोई गिरावट नहीं दिखी। फिर मुद्रास्फीति दो फीसदी कैसे गिरी। हू-ब-हू वही शक साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी पर। मोइली की मुस्कुराहट बहुत कुछ कह गई। बात साध्वी प्रज्ञा की चली। तो बता दें- प्रज्ञा के हल्फिया बयान ने एटीएस में खलबली मचा दी। कांग्रेस के भी पसीने छूट गए। सो विलासराव देशमुख दिल्ली दौड़े। नतीजा अपन ने गुरुवार को देख लिया। जब एटीएस के सभी दस आरोपियों पर मकोका लगा। मकोका लगाने का मतलब समझिए। अब नब्बे दिन में चार्जशीट दाखिल करने की बंदिश नहीं। वरना नब्बे दिन बाद हश्र आरुषि हत्याकांड जैसा होता। मनमोहन का तौर-तरीका देखिए। विलासराव देशमुख को मकोका लगाने के लिए कहा। आडवाणी को फोन करके उनके बयान पर पूछताछ की। जैसे कुछ पता ही न हो। आडवाणी ने हल्फिया बयान पढ़ने को कहा। तो मनमोहन ने कहा- 'अच्छा, मैं देखूगां।' मनमोहन ने आडवाणी से वादा किया है-वह हल्फिया बयान पढ़ने के बाद बात करेंगे। पर मकोका के दुरुपयोग का यह नया उदाहरण होगा। मानवाधिकार हनन पर केपीएस गिल भी खफा। गिल पर मानवाधिकार हनन के कम आरोप नहीं। वह सवाल पूछ रहे हैं- 'अब क्यों नहीं होती मानवाधिकार हनन की बात?' पर यूपीए सरकार की असली मुसीबत तो 26 नवम्बर को खड़ी होगी। जब पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी अपने प्रणव दा को कटघरे में खड़ा करेंगे। कुरेशी समझौता एक्सप्रेस विस्फोट की जांच रपट मांगेंगे। दोनों देश जानकारियां साझा करने पर सहमति जता चुके। पिछली बार भारत ने एक फोटू देकर पता लगाने को कहा था। पाक ने पता लगाकर बता दिया- 'उस जगह पर इस शक्ल का कोई बंदा नहीं रहता।' अब एटीएस के वकील अजय मिसर ने अदालत में कहा है- 'विस्फोट में सेना का आरडीएक्स इस्तेमाल हुआ।' भारत 26 नवम्बर को क्या जवाब देगा।
आपकी प्रतिक्रिया