जाफर शरीफ, जालप्पा, सिध्दारमैया को पुचकारना काम आया। मारग्रेट को फटकार ही दिया। तीनों की चुप्पी पुचकारने का सबूत। मंगल को वीरप्पा मोइली ने भले मारग्रेट के इस्तीफे की पुष्टि नहीं की। पर बुधवार को इस्तीफा मंजूर हो गया। तो वही मारग्रेट पर सबसे ज्यादा बरसे। सिर्फ अर्चना डालमिया ने मारग्रेट को दिलासा दिया। कहा- 'पार्टी छोड़कर न जाएं।' पर मोइली ने पार्टी छोड़ जाने की सलाह कुछ ऐसे दी- 'अब मारग्रेट की पार्टी में वह इज्जत नहीं रहेगी।' समझदार हो, तो इशारा काफी। वैसे भी कांग्रेस की यह पुरानी परंपरा। न चोर को मारो, न चोर की मां को। मारो चोर-चोर चिल्लाने वाले को।
मारग्रेट चिल्लाई तो थी- चोर को पकड़ने के लिए। पर चोर की मिलीभगत पुलिस के साथ हो। तो चोर कभी नहीं पकड़ा जाता। कांग्रेस का फंड कहां से आता है, कहां जाता है। कोई नहीं जानता। चुनाव आयोग भी नहीं। आप हंसोगे, जब अपन बताएंगे- कांग्रेस फंड का हिसाब-किताब बनाने वाला सीए कहां का। कांग्रेस को दिल्ली-मुंबई से कोई सीए नहीं मिला। जयपुर-भोपाल से भी नहीं। चेन्नई-बेंगलुरु से भी नहीं। कांग्रेस ने सीए ढूंढा कानपुर से। अब सुनो हिसाब-किताब। कांग्रेस ने इस साल जो इनकम टेक्स की रिटर्न भरी। उसमें 34 करोड़ 64 लाख दान बताया। कूपन से आमदनी बताई- 123 करोड़। पर दान का हिसाब-किताब सिर्फ बारह करोड़ का दिया। यानी 145 करोड़ का कोई हिसाब-किताब नहीं। अब आप इसे मारग्रेट के आरोप से जोड़ ले। तो दिग्विजय सिंह-पृथ्वीराज चव्हाण बरी। सो सोनिया ने टिकट बेचने के आरोप की जांच नहीं करवाई। सोनिया की रहनुमाई में कांग्रेस की टिकटें बिकने लगी हों। ऐसी बात नहीं। बात सिर्फ यह- पहले बिचौलिए माल उड़ाते थे। अब सीधे पार्टी माल उगाहने लगी। अपन को एक किस्सा कभी नहीं भूलता। लाटरी किंग मणिकुमार सुब्बा का। सुब्बा जब कांग्रेस का टिकट लेने दिल्ली आए। तो उनने खुली ऑफर दी थी। जो टिकट दिलाएगा, मुंह मांगा पाएगा। टिकट मिल गया। वह सांसद बनकर दिल्ली आए। तो सुब्बा के सरकारी घर में अजीत जोगी रहते थे। सुब्बा दिल्ली में होते, तो फाइव स्टार होटल में ठहरते। सुब्बा का आपराधिक रिकार्ड सीबीआई के कब्जे में। इस बार टिकट पाने वालों पर भी नजर दौड़ा लें। राजस्थान में पांच उम्मीदवार आपराधिक रिकार्ड वाले। छत्तीसगढ़ में दो। दिल्ली सबसे ऊपर। दस आपराधिक रिकार्ड वाले टिकट पा गए। सोनिया की कांग्रेस में कोई फर्क दिखता है तो सिर्फ नीतियों का। कांग्रेस कभी ऐसे एकतरफा नहीं हुआ करती थी। नरसिंह राव तक कांग्रेस का सेक्युलर करेक्टर बना रहा। सीताराम केसरी के जमाने में भी। कांग्रेस पहली बार मुस्लिमपरस्त दिखने लगी। आतंकवादियों के तुष्टिकरण से कांग्रेस का एक खेमा आहत। अफजल को फांसी नहीं देने से पार्टी में छटपटाहट। पर सबके मुंह बंद। आतंकवाद का ठीकरा हिंदुओं के सिर फोड़ने पर सिर्फ संघ परिवारिए आहत नहीं। कांग्रेस में भी बेचैनी। सबको दाल में काला दिखने लगा। बुधवार को तो अर्जुन सिंह के गुरु अवधेशानंद गिरी भी सामने आए। उनने कहा- 'प्रज्ञा का चार बार नार्को टेस्ट कर लिया। पुलिस को कुछ नहीं मिला। पुलिस चाहे तो और जितने टेस्ट कर ले। हिंदू साधु-संत आतंकी नहीं हो सकते।' आप इससे हिंदुओं में बेचैनी का अंदाज लगा लें। बुधवार को सारे संघ परिवारिए खुलकर सामने आए। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद ने कहा- 'साधु-संतों का अपमान किया जा रहा है। साध्वी प्रज्ञा के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है। ऐसा अफजल गुरु के साथ भी नहीं किया।' बाबा रामदेव पहले ही सामने आ चुके। अशोक सिंघल को तो सब सोनिया की साजिश दिखने लगी। अपन सहमत न भी हों। तो भी सवाल खत्म नहीं होता। लालकृष्ण आडवाणी भले ही तेल और तेल की धार देख रहे हों। राजनाथ सिंह को अब साजिश में कोई शक-शुबा नहीं। उनने कहा- 'सिर्फ हिंदू साधु-संतों को नहीं। भारतीय सेना को भी बदनाम कर रही है सरकार।'
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