प्रज्ञा को मोहरा बनाकर कांग्रेस पूरे देश में हिंदुओं को आतंकवादी बता रही है, लेकिन मध्यप्रदेश में खुद बचाव की मुद्रा में। कांग्रेस को डर है कहीं यह मुद्दा उल्टा ही न पड़ जाए।
कांग्रेस के लिए सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने वाली बात हुई। प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी सात के अंक को अपने लिए शुभ मानते हैं, इसलिए वह समझ रहे थे कि पच्चीस नवंबर उनके लिए शुभ होगा।
पच्चीस का योग भी सात होता है, लेकिन चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख पच्चीस के बजाए सत्ताईस नवंबर कर दी है।
एंटनी कमेटी की सिफारिशें धरी रह गई। एंटनी कमेटी ने लोकसभा उम्मीदवारों का ऐलान चुनाव से छह महीने पहले करने और विधानसभा उम्मीदवारों का ऐलान तीन महीने पहले करने की सिफारिश की थी। विधानसभा चुनावों में अब पच्चीस दिन बचे हैं, टिकटों की बंदरबांट अभी भी जारी है। कांग्रेस के चार बड़े नेता अभी भी अपने-अपने खेमे के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार उतारने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, ताकि सत्ता हाथ आने पर मुख्यमंत्री पद की कुर्सी झपटी जा सके। दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुरेश पचौरी और अजय सिंह के अलावा ज्योतिरादित्य भी अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। एक-एक सीट पर मारामारी चल रही है। यही वजह है कि मध्यप्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी का काम बुधवार को निपट जाने का दावा किए जाने के बावजूद सभी सीटों का फैसला नहीं हुआ है। भोपाल की चार सीटों पर तो भाजपा का पलड़ा भारी है ही, कांग्रेस सिर्फ नई बनी भोपाल मध्य सीट जीत सकती है। जीत की संभावना देखते हुए कांग्रेस में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा हो गई है। अर्जुन सिंह और कमलनाथ इस आसान सीट पर अजीज कुरैशी को मैदान-ए-जंग में उतारने में जुटे हुए थे, तो गुफराने आजम ने भी मैदान ठोकना शुरू कर दिया। वह पहले अर्जुन सिंह और बाद में दिग्विजय सिंह के खास रहे हैं। गुफराने आजम का नाम मैदान में आते ही सुरेश पचौरी खेमे ने नए नाम की तलाश शुरू कर दी और उनकी निगाह जल्द ही असलम शेर खान पर पड़ गई। पेनाल्टी कार्नर से गोल ठोकने के माहिर असलम शेर खान बेतूल से लोकसभा चुनाव जीतकर नरसिंह राव के जमाने में केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। भाजपा और एनसीपी का चक्कर लगाकर कांग्रेस में लौटे असलम शेर खान मूल रूप से भोपाली हैं। इसलिए असलम शेर खान का दावा सबसे मजबूत होता है, लेकिन लंबे अर्से से भोपाल से दूर रहने के कारण अर्जुन खेमे को उनके विरोध का मुद्दा मिला हुआ है। हालांकि असलम शेर खान के लिए यह सीट अजीज कुरैशी और गुफराने आजम के मुकाबले ज्यादा आसान है, क्योंकि उन्हें मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू वोटरों का भी समर्थन मिल सकता है। यह तो रही एक सीट की बात, मध्यप्रदेश की हर सीट पर इस तरह की खेमेबाजी चल रही है। हालांकि कमलनाथ और सुरेश पचौरी को कई जगहों पर अपने खेमे के उम्मीदवार ढूंढने पड रहे हैं, जबकि दिग्विजय सिंह के पास एक-एक सीट पर कई-कई वफादार लाइन में लगे हुए हैं। सर्वाधिक आधार होने के बावजूद दिग्विजय सिंह मैदान ठोकने की स्थिति में आज भी नहीं हैं। इसकी एक वजह तो दस साल तक सत्ता की राजनीति से दूर रहने का ऐलान करने की गलती, और दूसरा सोनिया गांधी का आशीर्वाद हासिल नहीं होना है। कांग्रेस आलाकमान यह तो मानता है कि मध्यप्रदेश में भाजपा को बराबरी की टक्कर देने के लिए दिग्विजय सिंह को भेजने की जरूरत है, लेकिन आलाकमान को यह भी खटका है कि कहीं दिग्विजय सिंह के ताल ठोकते ही चुनाव एक तरफा भाजपा के पक्ष में न हो जाए।
मध्यप्रदेश में भाजपा का पांच साल शासन और तीन मुख्यमंत्री होने के बावजूद कांग्रेस को भाजपा के खिलाफ कोई ठोस मुद्दा नहीं मिल रहा है। मध्यप्रदेश की प्रज्ञा ठाकुर को मालेगांव बम विस्फोट में गिरफ्तार करके कांग्रेस सारे देश में अपनी पीठ ठोक रही है और भाजपा को आतंकवादी संगठन साबित करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि प्रज्ञा का संघ परिवार से जुड़े छात्र संगठन एबीबीपी से ताल्लुक रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाने से बच रही है। इसकी वजह यह है कि प्रज्ञा ठाकुर का भूतकाल भले ही संघ परिवार से जुड़े किसी संगठन से रहा हो, लेकिन वर्तमान कांग्रेस से जुड़े आध्यात्मिक गुरु के साथ है। वह अर्जुन सिंह के आध्यात्मिक गुरु अवधेशानंद गिरी की शिष्या है। अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह ने बयान दिया है कि अवधेशानंद गिरी का प्रज्ञा ठाकुर से लेना-देना नहीं है, लेकिन खुद अवधेशानंद गिरी ने खंडन नहीं किया है। दूसरे मध्यप्रदेश के कांग्रेसी नेता यह जानते हैं कि उसका आलाकमान यूपीए घटक दलों के दबाव में आकर प्रज्ञा ठाकुर या सैन्य अधिकारियों को बम विस्फोटों में फंसाने की कोशिश कर रहा है, जो आम जनता के गले नहीं उतर रहा है। कांग्रेसी नेताओं को यह भी डर है कि कहीं यह मुद्दा उल्टा ही न पड़ जाए। भाजपा नेताओं ने भी शुरूआती झिझक के बाद प्रज्ञा ठाकुर के पक्ष में बयान देना शुरू कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने खुद बयान देकर अपने कैडर को साफ संकेत दे दिया है कि बचाव की मुद्रा में आने की जरूरत नहीं है। राजनाथ सिंह ने कहा है कि वह प्रज्ञा ठाकुर को आतंकवादी मानने को तैयार नहीं। उनने कहा है कि जो भी व्यक्ति सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में विश्वास रखता हो, वह आतंकवादी नहीं हो सकता। उन्होंने प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी की तुलना आरुषि तलवार के पिता से की है, जिन्हें पुलिस ने न सिर्फ अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था अलबत्ता हर रोज पुख्ता सबूत होने का दावा कर रही थी। जबकि डाक्टर तलवार पुलिस के सारे दांवों को मनगढ़ंत और झूठा बता रही थी, आज प्रज्ञा ठाकुर का कोई बयान सामने नहीं आ रहा, लेकिन वह पुलिस हिरासत में अनशन पर हैं, और खुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बता रही हैं। कांग्रेस आलाकमान को भी डर है कि कहीं विधानसभा चुनावों के दौरान ही पासा उल्टा न पड़ जाए। मध्यप्रदेश के कांग्रेसी हलकों में कहीं भी चुनाव की रौनक दिखाई नहीं दे रही, ऐसा लग ही नहीं रहा है कि कांग्रेस जीतने के लिए चुनाव मैदान में है। अब जबकि चुनाव में सिर्फ चार हफ्ते ही बाकी रह गए हैं, कांग्रेस के नेता गुटबाजी से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। जबकि भाजपा को अपनी गुटबाजी के बावजूद नेता तय होने का फायदा मिलने की उम्मीद है। भाजपा को कांग्रेस की बजाए अपनी ही पुरानी नेता उमा भारती से खतरा ज्यादा है। उमा भारती भाजपा को कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं चूक रही है, भाजपा जब प्रज्ञा को लेकर दुविधा में फंसी हुई थी, तो उन्होंने प्रज्ञा को भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने का न्यौता दे डाला। उमा भारती भी इस बात से डरी हुई हैं कि भाजपा ने प्रज्ञा को अपना लिया और वह छूटकर आ गई तो भाजपा मे उनकी विकल्प बन जाएंगी। उमा भारती बुंदेलखंड में भाजपा को उन-उन सीटों पर नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं जहां-जहां लोध वोटरों की तादाद बीस हजार से ज्यादा है। भाजपा को बुंदेलखंड और महाकौशल से ही खतरा है, बाकी जगह तो उसकी स्थिति मजबूत ही है। वैसे कांग्रेस की तरह भाजपा भी उम्मीदवार तय करने में फिसड्डी रही है, लेकिन पार्टी ने अपने तय कार्यक्रम में कोई देरी नहीं की है। भाजपा ने कांग्रेस जैसी कोई एंटनी कमेटी तो नहीं बनाई थी, लेकिन समय से पहले उम्मीदवारों का ऐलान करने की बात बार-बार उठती रही। भाजपा ने लोकसभा चुनावों के उम्मीदवारों का चयन करने की प्रक्रिया तो अगस्त में ही शुरू कर दी थी, जबकि विधानसभा उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया बाद में शुरू हुई। हालांकि भाजपा की चयन प्रक्रिया कांग्रेस से काफी बेहतर साबित होती दिखाई दे रही है, क्योंकि पार्टी ने निचले स्तर तक सर्वेक्षण करके उम्मीदवारों के बारे में आलाकमान को सिफारिशें भेजी। पहले से तैयारी होने के बावजूद 27 नवंबर को होने वाली मध्यप्रदेश विधानसभा सीटों के उम्मीदवारों का ऐलान ऐन नोटिफिकेशन के वक्त हुआ है। वह तो चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीख दो दिन आगे खिसका दी, वरना नोटिफिकेशन के बाद ही केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होती। गुरुवार को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह की संघ अधिकारियों के साथ बैठक के बाद शुक्रवार को चुनाव समिति की बैठक हुई। इससे स्पष्ट है कि संघ ने भाजपा को टिकट बंटवारे के बारे में कुछ मार्गदर्शन जरूर दिया होगा। हालांकि यह बैठक करीब दो महीने पहले ही तय हो गई थी, लेकिन भाजपा ने अपनी केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक संघ नेताओं के साथ होने वाली बैठक के बाद ही तय की।
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