राजनाथ सिंह की दलील तो दमदार। दलील सुनकर कांग्रेसियों की भी हवा खिसक गई। पुलिस जैसा दावा प्रज्ञा सिंह ठाकुर के बारे में कर रही। आरुषि हत्या कांड में राजेश तलवार के खिलाफ भी ऐसी ताल ठोकती थी। डाक्टर राजेश तलवार का भी पचास दिन मीडिया ट्रायल हुआ। पुलिस-सीबीआई ने राजेश तलवार के खिलाफ कितनी दलीलें घड़ीं। पर सबूत नहीं जुटा पाई। थ्योरियों से केस नहीं जीते जाते। आखिर सीबीआई की तो कोर्ट में हवा निकली ही। मीडिया की भी हवा निकली।
सो राजनाथ सिंह ने याद दिलाया- 'यह केस कहीं आरुषि जैसा तो नहीं।' यों अपने भी गले नहीं उतरता। राजनाथ सिंह ने हफ्ताभर तो सब्र का घूंट पिया। आखिर फूट पड़े- 'मुझे नहीं लगता वह आतंकवादी होगी। जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में भरोसा रखे। वह आतंकी नहीं हो सकता।' अपन जलियांवाला बाग की घटना को याद करें। अगर अपन कहें- वह अंग्रेजों का भारतीयों के खिलाफ आतंकवाद था। तो गलत नहीं होगा। तब सिख फौजियों ने फौज छोड़ दी। ब्रिटिश आतंकवाद के खिलाफ संगठन बनाया- 'बब्बर अकाली।' बब्बर अकाली ने कई अंग्रेज अफसरों की हत्या की। तेरह साल का उद्यम सिंह जलियांवाला कांड का चश्मदीद गवाह था। उसने लंदन जाकर माइकल डायर की हत्या कर बदला लिया। अपन उद्यम सिंह को आतंकवादी तो नहीं कहते। प्रज्ञा सिंह के भीतर आतंकवाद विरोधी बदले की आग भभकी हो। यह जरूरी भी नहीं। हो सकता है- पुलिस, मीडिया आरुषि हत्याकांड की तरह ही अंधेरे में तीर मार रहे हों। संघ विरोधी यूपीए-वामपंथी प्रज्ञा की गिरफ्तारी से जितने खुश। उतने कांग्रेसी नहीं दिखते। प्रज्ञा की गिरफ्तारी से सरकार आतंकवादी वारदातों से बरी तो नहीं होती। आतंकवाद के तुष्टिकरण से बरी तो नहीं होती। मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ हिंदू आतंकवाद बताकर भी बरी नहीं होती। आतंकवाद पर नरम रवैए के पुख्ता सबूतों से पिंड कैसे छुड़ाएगी कांग्रेस। बीजेपी नहीं, खुद यूपीए के दल शिवराज पाटिल को नहीं बख्शते। लेफ्ट ने यूपीए से पिंड छुड़ा लिया। सो अब शिवराज पाटिल को बख्शने की मजबूरी नहीं। गुरुवार को असम के बम धमाकों ने देश को हिलाकर रख दिया। तो सीपीआई बोली- 'पुलिस और खुफिया तंत्र की पोल खुल गई। होम मिनिस्ट्री कृपा करके बम धमाकों को रुटीन की तरह न लें।' अपन को तो अंदेशा था- कहीं लेफ्ट प्रज्ञा की गिरफ्तारी पर बदले की कार्रवाई न बता दे। लेफ्ट हिंदू संगठनों को आतंकवादी साबित करने पर उतारू। गुरुवार को ही सीताराम येचुरी ने सीपीएम के अखबार पीपुल्स डेमोक्रेसी में लिखा- 'परबनी, जालना, जलगांव, मऊ, कानपुर में विस्फोटों के पीछे बजरंग दल और आरएसएस।' येचुरी अब अगले हफ्ते कामरूप, कोकराझार, बोंगईगांव, बारपेटा के बम धमाकों को भी इसमें जोड़ लें। तो अपन को कतई हैरानी नहीं होनी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनके नारायणन के बारे में अपन नहीं जानते। अपन को एक अफसर ही बता रहा था- 'बटला हाऊस मुठभेड़ पर सवाल उठे। तो नारायणन ने ही प्रज्ञा ठाकुर वाली कहानी आगे बढ़ाई।' हो सकता है, सच ना हो। पर प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद बटला हाऊस मुठभेड़ पर सवाल उठना बंद। पर अपन बात कर रहे थे असम के बम धमाकों की। जिनने पूरे देश ही नहीं, दुनिया को हिलाकर रख दिया। जरदारी और युसुफ रजा गिलानी के बयान भी आए। दोनों ने कहा- 'हर तरह के आतंकवाद का खात्मा जरूरी। आतंकवाद के खिलाफ आपसी सहयोग भी जरूरी।' पर बात होम मिनिस्ट्री की। शिवराज पाटिल को जैसे सांप सूंघ गया। शकील अहमद को राजनीतिक साजिश दिखाई देने लगी। उन्हें लगा होगा- बांग्लादेशियों को फंसाने की साजिश तो नहीं। वैसे बम धमाकों के पीछे बांग्लादेशी आतंकी हूजी नहीं, तो उल्फा का हाथ होगा। तो भी कांग्रेस बरी नहीं होती। उल्फा और कांग्रेस दोनों एक-दूसरे के मददगार। यों राजनाथ सिंह को बांग्लादेशियों पर शक। बोले- 'असम के बम धमाके कांग्रेस की घुसपैठियों के बचाव की नीति का नतीजा।'
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