अपन ने कल दादा के इस्तीफे का शक जाहिर किया। शुक्रवार बीतते-बीतते अपना शक और बढ़ने लगा। दादा ने तब इस्तीफा नहीं दिया। जब दादा की पार्टी सीपीएम ने मांगा। अब सब कुछ गंवाकर इस्तीफे के मूड में। शुक्रवार को बोले- 'मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं।' एनडीए ने चार साल दादा पर सौतेले व्यवहार का आरोप लगाया। लेफ्ट तो अपने सांसद के बचाव में हमेशा आगे रहा। अब उसी लेफ्ट से दादा की तू-तू, मैं-मैं की नौबत। शुक्रवार का किस्सा बहुत मजेदार रहा। सुनाएंगे।
अपन ने कल झारखंड के मुद्दे पर ज्यूडिशरी से टकराव का किस्सा सुनाया। एक और किस्सा याद कराएं। बात 27 फरवरी 2005 की। लालू रेल बजट पेश कर रहे थे। एनडीए शासित राज्यों की अनदेखी हुई। तो एनडीए वाकआउट कर गया। वाकआउट करते-करते शिवसेना के एक सांसद से भिड़ गए दादा। हैड मास्टर की तरह पूछा- 'यह कौन है?' सांसद ने अपना नाम बताया और वाकआउट कर गया। यह दादा को सीधी चुनौती थी। दादा मनमोहन-प्रणव से बोले- 'आप इनकी बर्खास्तगी का प्रस्ताव क्यों नहीं लाते।' फिर तो ऐसा टकराव हुआ। नौबत अविश्वास प्रस्ताव तक आ पहुंची थी। किस्से तो 2006 और 2007 के भी बहुत। इसी साल 28 अप्रेल का किस्सा ही याद करो। रामसेतु पर टीआर बालू के खिलाफ बवाल हुआ। सदन में नारेबाजी चल रही थी। दादा ने सदन की बिजली बंद करवा दी थी। सदन के रिपोर्टरों से कहा था- 'नारे लगाने वालों के नाम नोट करो।' फिर उनने एनडीए के 32 सांसदों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। तो बात फिर अविश्वास प्रस्ताव तक पहुंच गई थी। अब तो दादा पूरे सदन से टकराव के मूड में। बुधवार का किस्सा याद होगा। जब सदन में कई बार हंगामा हुआ। गुरुवार को दादा ने लेफ्ट के सांसद को निकाला। तो लेफ्ट ने दादा पर सौतेले व्यवहार का आरोप लगाया। बुधवार का किस्सा भी याद कराया। अब दादा ने 47 सांसदों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी। आरजेडी, अगप, लोजपा, बीजेपी, जेडीयू, जेडीएस, सीपीएम सब दलों के सांसद। खुद को निष्पक्ष दिखाने की कोशिश। गुरुवार को कांग्रेस के एसपी गोयल को भी फटकराते हुए कहा- 'मैं आप पर कार्रवाई करूंगा। अब हम गाली खा ही रहे हैं, तो सबकी खाएंगे।' पर लेफ्ट इससे खुश होने वाला नहीं। लेफ्ट दादा से दो-दो हाथ करने के मूड में। शुक्रवार को बात और आगे बढ़ गई। दादा ने लेफ्ट का मनमोहन के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव नामंजूर कर दिया। 'कौल एंड शकधर' का हवाला देकर कहा- 'कोई मंत्री सदन में दिया वादा पूरा न करे। तो उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन नहीं बनता।' उनने मनमोहन के राज्यसभा मेंबर होने का हवाला भी दिया। यों अपन बताते जाएं- ऐसे मामलों में रिकार्ड और प्रस्ताव दूसरे सदन में भेजने के कई उदाहरण। दादा के लिए 'कौल एंड शकधर' का अनुसरण भी जरूरी नहीं था। सो लेफ्ट भड़क गया। पहले एटमी करार पर दो टूक फैसले का वक्त आया। तो दादा ने इस्तीफा नहीं दिया। अब एटमी करार पर मनमोहन कटघरे में खड़े हुए। तो दादा ने फिर मनमोहन का बचाव किया। सो शुक्रवार को लेफ्टिए पूरी तरह भड़क गए। यों तो शुक्रवार को ईसाईयों के मुद्दे पर बहस होनी ही थी। पर वासुदेव आचार्य ने दादा पर बहस लटकाने का आरोप लगाया। तो दादा भड़क गए। बोले- 'यह बहुत आपत्तिजनक। आप जानबूझकर मेरे अधिकार को चुनौती दे रहे हैं। आप अपना राजनीतिक मकसद हल करना चाहते हो। पर पिछले कई दिनों से आप मेरे फैसलों पर सवाल उठा रहे हो। अगर हाऊस चाहे तो मैं अभी जाने को तैयार हूं। मैं इस कुर्सी पर नहीं बैठूंगा। डिप्टी स्पीकर आकर कुर्सी संभालें।' और वह सचमुच सदन से उठकर चले गए। इसे आप वाकआउट कहें, या न कहें। आपकी मर्जी। पर वह सारा दिन नहीं आए। सदन को नौ दिसंबर तक उसी गिरधर गोमांग ने स्थगित किया। जिसने 1999 में सीएम होने के बावजूद लोकसभा में वोट देकर वाजपेयी की सरकार गिराई थी।
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