होने को राज ठाकरे से अपन भी खफा। पर दिखने वाली काली चीज तवा नहीं होती। ना हर पीली चीज सोना। इतवार को अपन ने भी चैनलों पर देखा। राज ठाकरे की सेना ने रेलवे भर्ती का एक्जाम सेंटर वैसे ही उजाड़ा। जैसे रामलीला में हनुमान श्रीलंका की अशोक वाटिका उजाड़ता है। बात श्रीलंका की चली। तो बताते जाएं- अबके श्रीलंका यूपीए सरकार को उजाड़ने को तैयार।
मंगलवार को श्रीलंका के विदेशमंत्री रोहिथा बोले- 'प्रणव मुखर्जी खुद ही आकर देख लें।' अपन बात कर रहे हैं- लिट्टे आतंकियों से हो रहे संघर्ष की। तमिल लिट्टे आतंकी चारों तरफ से घिरने लगे। तो अपने करुणानिधि ने मनमोहन पर युध्द विराम कराने का दबाव डाला। वरना सरकार गिराने की धमकी दे डाली। आखिर डीएमके के मंत्री-सांसद इस्तीफा देंगे। तो मनमोहन अल्पमत में आएंगे ही। लेफ्ट के समर्थन वापसी से तो खरीद-फरोख्त निपट लिया। करुणानिधि ने मुश्किल में डाला। तो सरकार का बचना मुश्किल। सो मनमोहन-प्रणव की नींद हराम। कोई दिन नहीं जाता। जब कोलंबो फोन न घनघनाते हों। श्रीलंका के हाईकमिश्नर को तलब किया। एक दिन तो खबर छपवा दी- 'मनमोहन ने दी श्रीलंका को चेतावनी।' अपन तो हक्के-बक्के रह गए। बुश जैसी ढींगामुश्ती करने की हिम्मत मनमोहन में कैसे आई। अपने पीएम को श्रीलंका में दखल का क्या हक। सोमवार को बात साफ हो गई। जब राजपक्षे ने साफ कह दिया- 'भारत ने आपरेशन बंद करने की गुहार नहीं लगाई। आतंकवाद के खिलाफ भारत-श्रीलंका में सहमति।' यानी मनमोहन के दांत खाने के और, दिखाने के और। पर करुणानिधि तो दिखने वाले दांतों से ही गदगद हो गए। मनमोहन-प्रणव की कोशिशों से खुशी का इजहार किया। पर करुणानिधि का आखिरी दांव चलना अभी बाकी। जयललिता भी इसी इंतजार में। अब प्रणव दा आज जब संसद में श्रीलंका से हुई बात का खुलासा करेंगे। तो करुणानिधि के बंदों का क्या रुख होगा। अपन वह भी देखेंगे। मनमोहन की कुर्सी बचाने की जिम्मेदारी अब प्रणव दा के कंधों पर। मनमोहन की बात चली। तो बताते जाएं- संसद सत्र के दूसरे दिन ही जापान उड़ गए। शुक्रवार को लौटेंगे। तो वह दिन मौजूदा बैठकों का आखिरी दिन होगा। पहले पीएम संसद सत्र के दौरान विदेश नहीं जाते थे। अपने मनमोहन खुद को संसद के प्रति जवाबदेह ही नहीं मानते। तो संसद चले, न चले। मनमोहन को क्या। आखिर उनने संसद को ठेंगे पर रखकर एटमी करार किया ही। अब विशेषाधिकार हनन पर फैसले से पहले तो लोकसभा भंग हो जाएगी। पर अपन बात कर रहे थे राज ठाकरे की। वैसे बताते जाएं- जैसे पंजाब में कांग्रेस ने भिंडरावाले को हवा दी। हू-ब-हू वैसे ही अब कांग्रेस-एनसीपी महाराष्ट्र में राज ठाकरे को हवा देने की जिम्मेदार। सोमवार को लोकसभा में हल्ला हुआ। तो मंगलवार तड़के रतनागिरी में राज ठाकरे की गिरफ्तारी हुई। इधर गिरफ्तारी हुई। उधर रतनागिरी, पूणे, नासिक, कोल्हापुर, मुंबई में हिंसा शुरू हो गई। हिंसा की बात चली। तो याद करा दें- राज ठाकरे ने सोमवार को कहा- 'हमें हिंसा के लिए मजबूर किया गया। अहिंसा की भाषा नहीं समझती सरकार।' वैसे अपन मतलब की बात पर आएं। लालू जो कर रहे हैं, वह कितना ठीक। उनने कर्नाटक में जो किया। उनने उड़ीसा में जो किया। उनने उत्तर भारत के राज्यों में जो किया। उस पर भी गौर करना जरूरी। लोकसभा में उड़िया सांसद ने लालू से पूछा- 'उड़ीसा की भर्ती में कितने फीसदी बिहारी भरे गए।' यही सवाल कर्नाटक के बारे में भी। तो अपन बता दें- दोनों जगह नब्बे फीसदी बिहारियों की भर्ती हुई। मंगलवार को राज्यसभा में मनोहर जोशी ने पूछा- 'रेलवे में मराठियों की भर्ती क्यों नहीं हो रही, सिर्फ बिहारियों की क्यों?' यह सवाल लालू से सारे देश को पूछना चाहिए। मनमोहन सिंह और सोनिया को भी पूछना चाहिए। मराठियों का गुस्सा उत्तर भारतीयों के खिलाफ नहीं। अलबत्ता लालूगर्दी के खिलाफ।
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