मून मिशन की उलटी गिनती शुरू। मानसून सत्र की नहीं। मानसून कब का आकर चला गया। मानसून सत्र निपटने का नाम नहीं ले रहा। पहले बात मून मिशन की। सेहरा भले ही मनमोहन अपने सिर पर बांध लें। पर मून मिशन वाजपेयी की देन। वाजपेयी ने 2003 में हरी झंडी दी। मनमोहन सरकार ने तो ना-ना करते फंड दिया। महंगा सौदा बताती रही। बात कश्मीर में ट्रेन की हो। मून मिशन की। देश को एटमी ताकत बनाने की। स्वर्णिम चतुर्भुज की। नदियों को जोड़ने की। ग्रामीण सड़क योजना की। घर बनाने के सस्ते लोन की। वाजपेयी का ट्रेक रिकार्ड मनमोहन से लाख दर्जे बेहतर।
बात सस्ते ब्याज के लोन की चली। तो बताते जाएं- सोमवार को आरबीआई ने यूपीए राज में पहली बार रैपो दर घटाई। वरना मार्च 2004 से बढ़ ही रही थी। सो मनमोहन ने लोकसभा में मजबूत अर्थव्यवस्था का राग अलापा। खैर अपन मनमोहन-वाजपेयी की तुलना नहीं कर रहे। अपन बात कर रहे हैं मानसून सत्र की। जो सरकार की मजबूरी बन गया। खत्म होने देना नहीं चाहती। चालू रख नहीं सकती। प्रणव दा ने इतवार रात आडवाणी को फोन किया। कहा- 'चुनावों का एलान हो गया। सो सेशन चलाना मुश्किल। क्यों न चौबीस से सात दिसंबर तक छुट्टी कर दें।' आडवाणी तो यही चाहते थे। पर सरकार की साजिश दिसंबर में लोकसभा की इतिश्री करने की। लेफ्ट ने सही कहा- 'आप तो मानसून सत्र इसी हफ्ते निपटाइए। विधानसभा चुनावों के बाद शीत सत्र शुरू करो।' पर कांग्रेस ऐसा नहीं करेगी। नया सत्र यानी अविश्वास प्रस्ताव का खतरा। अपन उसका जिक्र आगे करेंगे। फिलहाल बात विधानसभा चुनावों की। तो जम्मू कश्मीर के चुनावों का एलान भी हो चुका। अपना कहा सच निकला। अपन ने पंद्रह अक्टूबर को ही लिखा था- 'पत्थर पर लकीर नहीं कश्मीर के चुनाव टालना।' चुनावों का एलान आतंकियों की हार। पर अपन बात कर रहे थे मानसून सत्र की। विश्वासमत का सत्र दो दिनी था। उसे यूपीए ने मानसून सत्र बना दिया। यों तो शुक्रवार को शुरू हुआ। पर असल में सोमवार से। शुरू होने से पहले ही डेढ़ महीने छुट्टी की तैयारी। बात विश्वासमत की निकल ही गई। तो याद करा दें। कबूतरबाज भाजपाई बाबूभाई कटारा के वोट से बची थी सरकार। सोमवार को कटारा की मेंबरी खत्म करने की सिफारिश हुई। तो बीजेपी ने शुकर मनाया। विश्वासमत के दिन ही मनमोहन ने भरी लोकसभा में कहा था- 'आईएईए-एनएसजी से हरी झंडी के बाद संसद में आएगी सरकार।' पर उनने वादा खिलाफी की। इसीलिए लेफ्ट ने प्रिविलेज मोशन का नोटिस दिया। सोमवार को वासुदेव आचार्य ने पूछा। तो भूतपूर्व लेफ्टिए स्पीकर बोले- 'मैं विचार कर रहा हूं।' वैसे मनमोहन लोकसभा के मेंबर नहीं। तो क्या स्पीकर यह मामला राज्यसभा के चेयरमैन अंसारी को भेजेंगे। यों अंसारी के सामने अलग से प्रिविलेज मोशन। एटमी करार पर मनमोहन अपना उतावलापन रोक नहीं पाए। अब मुसीबत में। मुसीबत इतनी कि पूछो मत। प्रणव दा को करार पर बयान हंगामे में रखना पड़ा। यों दादा सोमनाथ ने सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली को बधाई देकर मेजें थपथपवाई। पर ज्यादा देर तो हंगामा ही होता रहा। कभी रेलवे भर्ती पर राज ठाकरे को लेकर। तो कभी बोडोलैंड में घुसपैठियों की ढींगामुस्ती को लेकर। विसमुतियारी ने मनमोहन से जवाब तलब किया। तो वह सदन से उठकर चले गए। विसमुतियारी ने सदन में धरना दिया। तो चार घंटे तक ठप रही लोकसभा। पर बात मुद्दे की। आखिर मानसून सत्र क्यों खत्म नहीं करना चाहती सरकार। सीताराम येचुरी बोले- 'विश्वासमत तो खरीद-फरोख्त से जीत लिया। अब अगले सत्र में अविश्वासमत से डरती है।' वैसे अपन को आशंका मानसून सत्र के ही आखिरी होने की। दिसंबर से मई के बीच एक और सत्र की जरूरत ही नहीं होगी। पर चौबीस अक्टूबर को सत्रावसान हो। तो चौबीस अप्रेल से पहले अगला सत्र जरूरी। अगला सत्र ही तो खतरे की घंटी।
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