तो पहले दिन लोकसभा श्रध्दांजलि देकर उठ गई। राज्यसभा में पीएम की वादा खिलाफी पर हल्ला हुआ। कंधमाल और मंगलूर की सांप्रदायिकता भी उठी। हल्ले-गुल्ले में ही राज्यसभा भी उठ गई। सोमवार तक राम-राम। पहले दिन लोकसभा शोकसभा बन गई। पर सोमवार को मेजें थपथपाई जाएंगी। दोनों सदनों की शुरूआत सचिन तेंदुलकर को बधाई से होगी। खेलों के मामले में प्रभाष जोशी रुपइया। तो अपन धेला भी नहीं। पर गावस्कर के बाद अब सचिन ने देश का नाम ऊंचा किया। सो अपनी भी बधाई।
उनने ब्रायन लारा का 11953 रन का रिकार्ड तोड़ डाला। गावस्कर का रिकार्ड ऐलन बार्डर ने तोड़ा था। ऐलन का रिकार्ड लारा ने। अब लारा का रिकार्ड सचिन ने तोड़ा। टेस्ट मैचों में भी अब सबसे ज्यादा रन बनाने वाले हो गए। फटाफट क्रिकेट में तो पहले ही 16361 रनों से रिकार्डधारी। सौरव गांगुली की पहली बधाई मिली तेंदुलकर को। वही तेंदुलकर के साथ बल्लेबाजी कर रहे थे। अपने सोमनाथ दादा यों तो सौरव के फेन। पर उतने ही फेन क्रिकेट के भी। सो वह सचिन की शॉट पर फूले नहीं समाए। दादा की खुशी अपन को लोकसभा में भी दिखेगी। पर सोमवार से दादा की मुश्किलें भी शुरू होंगी। लेफ्ट ने मनमोहन के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। दोस्त जब दुश्मन बन जाए। तो दुश्मनी भी जोरदार होती है। लेफ्ट ने विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया। यों दादा का लेफ्ट से अब कोई मोह नहीं रहा। पर पहला प्यार और पुराने जख्म जब भी सामने आते हैं, बहुत दर्द देते हैं। बात मनमोहन सिंह की। उनने विश्वासमत पर बहस के समय लोकसभा में वादा किया था- 'आईएईए-एनएसजी से हरी झंडी मिलने के बाद संसद के सामने आएंगे। करार का ऑपरेशनालाइजेशन बाद में होगा।' पर मनमोहन ने सेशन का इंतजार नहीं किया। संसद को धोखे में रखकर अमेरिका से करार कर लिया। संसदीय रिकार्ड के मुताबिक विशेषाधिकार का पुख्ता मामला। सो कांग्रेस लेफ्ट के इस हमले से छटपटाती दिखी। शकील अहमद बोले- 'लेफ्ट राजनीतिक गलती कर रहा है। उसने भाजपा से हाथ मिला लिया है।' छटपटाते से शकील बोले- 'लेफ्ट ने पहली गलती 1977 में की। दूसरी गलती 1989 में की। अब तीसरी गलती करेंगे।' शकील के कहे का मतलब समझिए। मतलब साफ- 'पहले 1977 में मोरारजी सरकार बनी। फिर 1989 में वीपी सिंह सरकार बनी। अब 2009 में आडवाणी सरकार बनेगी।' यही लगता है शकील अहमद को। वैसे मनमोहन सरकार पर खतरा मंडराने लगा। करुणानिधि कहीं इस बार भी खेल न कर दें। उनने ठीक तीन महीने पहले वाजपेयी सरकार से हाथ खींच लिया था। अब तीन महीने पहले कहीं मनमोहन की कुर्सी भी न खींच लें। इस्तीफों की धमकियां शुरू हो चुकी। पर शकील अहमद ने बेफिक्री दिखाई। बोले- 'मनमोहन-प्रणव बात करेंगे। सब ठीक हो जाएगा।' असल में तमिलनाडु में डीएमके की हालत खस्ता। जयललिता का पलड़ा भारी। सो करुणानिधि कांग्रेस से पीछा छुड़ाकर अपनी हालत सुधारने की फिराक में। बात जयललिता की चली। तो बताते जाएं- शुक्रवार को बीजेपी की कोर कमेटी बैठी। चुनाव चर्चा के साथ राजनीतिक हालात पर भी गौर हुआ। बात जयललिता और चिरंजीवी की भी चली। दोनों को विधानसभा चुनाव नतीजों का इंतजार। बीजेपी दिल्ली, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में से तीन जीती। तो एनडीए का फलना-फूलना तय। असम में लाइन तय हो चुकी। एजीपी एनडीए में आएगी। खुद कांग्रेस ने भूमिका बांध दी। बात असम की चली। तो बताते जाएं- दादा ने दंगों में मरने वालों को श्रध्दांजलि दी। बोडोलैंड-बांग्लादेशियों की हिंसा में मरने वालों को भी श्रध्दांजलि हुई। इस पर बोडोलैंड के विसमुत्तारी मौन के समय भी ऐतराज जताते रहे। बात बांग्लादेशियों की चली। तो बताते जाएं- कांग्रेस ने तीन मेंबरी जांच कमेटी भेजी। तो उसकी रहनुमाई शकील को दी। ताकि बांग्लादेशियों के हक में रपट हो। शुक्रवार को शकील ने रपट सोनिया को दे दी। रपट 'बीजेपी-एजीपी-आसू' के खिलाफ। बांग्लादेशी घुसपैठियों को मासूम बताया गया। अगले हफ्ते संसद में जब कंधमाल-मेंगलूर पर चर्चा होगी। तो उसमें असम के उदलगुरी-दरांग दंगें भी जुड़ेंगे। सबका ठीकरा बीजेपी के सिर फोड़ने की रणनीति।
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