गोवा सरकार पर सवा साल में तीसरी बार संकट। वैसे गोवा 1963 में आजाद हुआ। पैंतालीस साल में पच्चीस सरकारें बदल चुकी। छोटे राज्यों में विधायकों की ब्लैकमेलिंग का पुख्ता सबूत है गोवा। यों गोवा में सिर्फ एनडीए राज में शांति रही। जब बीजेपी के मनोहर पारिक सीएम थे। कांग्रेस ने आते ही खेल शुरू किया। एस सी जमीर को तख्ता पलटने के लिए गवर्नर बनाकर भेजा। मारग्रेट अल्वा और दासमुंशी भी हफ्ताभर गोवा में बैठे। दलबदल से बनाई सरकार ढाई साल चलाई। पर वहां कब कौन एमएलए ब्लैकमेलिंग पर उतर आएं। कौन इस्तीफा देकर अपने ही दल की सरकार को अल्पमत में ले आए। कोई नहीं कह सकता।
यों तो मौजूदा दिगम्बर सरकार के मंत्री अतांसियो मोंसेरेटे पहले से विवादों में। कभी बिल्डरों को जमीनें बेचने के मामले में। तो कभी अपने विरोधियों पर चाकुओं से हमला करवाने के मामले में। अंतासियो मोंसेरेटे कभी बीजेपी के भी साथ हुआ करते थे। ढाई साल पहले जब जमीर ने बीजेपी सरकार गिरवाई। तो मोंसेरेटे पल-पल दल बदलते दिखे थे। फिलहाल वह गोवन डेमोक्रेटिक पार्टी से अलग हुए एमएलए। पिछली बार जब कामत सरकार संकट में आई। तो जीडीपी से टूटकर कांग्रेस को समर्थन दिया। कांग्रेसी मंत्री दयानंद नार्वेकर क्रिकेट टिकट घोटाले में फंसे। तो मोंसेरेटे की लाटरी खुली थी। वह शिक्षामंत्री बनाए गए। अब इन्हीं शिक्षामंत्री का बेटा रोहित बलात्कार का आरोपी। जर्मनी टूरिस्ट की सत्रह साल की बेटी से बलात्कार हुआ। बलात्कारी मंत्री का बेटा था। सो पुलिस एफआईआर कैसे दर्ज करती। पर छुपा-छुपाई ज्यादा देर नहीं चली। जर्मनी टूरिस्ट ने अपनी इम्बेसी से शिकायत की। तो इम्बेसी ने पुलिस को चिट्ठी लिखी। पुलिस की सीटी-पीटी गुल हुई। तो उसे मंत्री के बेटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। मंत्री ने अपने बेटे का बचाव किया। सो मंत्री के खिलाफ भी एफआईआर लगी। तो मंत्री खुलकर अपने बलात्कारी बेटे के बचाव में आ गए। यहां तक तो बात ठीक थी। अपने बेटे-बेटी को बेगुनाह बताने का सबको हक। मुफ्ती मोहम्मद सईद जब देश के गृहमंत्री थे। तो उनने भी अपनी बेटी को मुक्त कराने के लिए आतंकी छुड़वाए थे। फिर गोवा का मंत्री अपने बेटे को क्यों न बचाए। पर यहीं से ब्लैकमेलिंग शुरू हो गई। सत्ता पक्ष के छह एमएलए मंत्री के बलात्कारी बेटे के बचाव में उतर आए। खुल्लम खुल्ला ऐलान हो गया है- 'बलात्कारी को पकड़ोगे, तो सरकार गिरा देंगे।' बुधवार को एफआईआर दर्ज हुई। गुरुवार को वारंट जारी होते। पर बुधवार की रात ही विद्रोह की चिंगारी फूट पड़ी। अतांसियो मोंसेरेटे के घर सात एमएलए जुटे। चर्चिल अलेमाओ, एलेक्सो रोगिनाल्डो लोरेंसो, एग्नेलो फर्नाडीस, जोस फिलिक डि सूजा, मनोहर असगांवकर, चंद्रकांत नावलेकर मीटिंग में थे। सवेर होते-होते दस एमएलए इकट्ठे हो गए। सोनिया गांधी को मेमोरेंडम पर दस्तखत शुरू हुए। ममोरेंडम दिल्ली पहुंचता। उससे पहले ही दिल्ली हिल गई। आखिर मेमोरेंडम में साफ- 'बलात्कारी बचाओ या मुख्यमंत्री।' ऐसे मेमोरेंडम से सोनिया बुरी तरह फंसती। सो जुगाड़ू राजीव शुक्ल को फौरन पणजी रवाना कर दिया। अब जुगाड़ का काम राजीव शुक्ल के जिम्मे। पर फैसला तो सोनिया को करना होगा। अपने सीएम की कुर्सी बचाएं। या मंत्री के बलात्कारी बेटे को। अपन बताते जाएं- कांग्रेस के सत्रह एमएलए। एनसीपी के तीन। एक यूजीडीपी का। दो एमजीपी के। दो निर्दलीय। इस तरह सरकार को पच्चीस विधायकों का समर्थन।
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