मनमोहन की एक मुश्किल हो तो बताएं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक। मुसीबतों का पहाड़ खड़ा होने लगा। खुद इक्नामिस्ट, पर मार्किट नहीं सुधर रही। पहले महंगाई बढ़ी। तो दुनियाभर में महंगाई की दुहाई दी। अब मार्किट डांवाडोल। तो दुहाई फिर अमेरिकी-यूरोपीय मार्किट की। मार्किट गिरी, तो चिदंबरम बोले- 'घबराने की बात नहीं। आर्थिक हालत मजबूत।' पता नहीं देश की आर्थिक हालत की बात कर रहे थे या अपनी।
पर बुश-गार्डन ब्राउन फिक्रमंद लगे। बुश बोले- 'हम बुरे वक्त से गुजर रहे हैं। हालात से निपटना आसान नहीं। वक्त लगेगा।' गार्डन ब्राउन बोले- 'बिना सोच-समझ निवेश नहीं करना चाहिए।' पर लापरवाह चिदंबरम-मोंटेक सिंह झूठा दिलासा देते दिखे। कमलनाथ भी दिनभर यही राग अलापते रहे। पर मार्किट 954 अंक गिरकर 10740 पर आ लुढ़की। वह तो शुकर है जो 741 अंक और नहीं गिरी। वरना तो पांच से चार अंक में आ जाते। खैर शाम होते-होते शेयर मार्किट तो सुधरी। पर मनमोहन की राजनीतिक मार्किट बिगड़ गई। मनमोहन दिनभर नई दुविधा में फंसे रहे। बजरंग दल बैन करें, तो ईसाईयों के तुष्टिकरण का आरोप लगेगा। बैन न करें, तो लालू के साथ सोनिया के खफा होने का भी डर। सुनते हैं- उड़ीसा के मामले में सोनिया उतनी एग्रेसिव नहीं। जितनी गिरधर गोमांग के वक्त हुई थी। सोनिया की तब की ईसाईपरस्ती ने उड़ीसा में कांग्रेस की लुटिया डुबो दी। सो दूध का जला छाछ को फूंक-फूंककर पीने को मजबूर। आडवाणी ने चेतावनी देकर 356 तो रोक ली। पर बैन रुकवाने में आडवाणी की भी दिलचस्पी नहीं। बजरंगदली हिंसा की उनने भी निंदा की। कांग्रेस आडवाणी पर सांप्रदायिकता का कितना ही आरोप लगाए। पर आडवाणी सांप्रदायिक सदभाव के लिए कांग्रेस से ज्यादा एक्टिव। बुधवार की बात ही लो। आडवाणी के घर पर हिंदू-ईसाई नेताओं की मीटिंग हुई। दिल्ली के आर्कबिशप विंसेंट कोंनसेसाओ, उड़ीसा के आर्कबिशप राफेल चीनाथ, दिल्ली कैथोलिक आर्क डिओसी के प्रवक्ता डोमिनिक एमानुएल, स्वामी चिदानंद सरस्वती मौजूद थे। सबने मिलकर शांति-सदभाव की अपील की। यूपीए के किसी नेता ने ऐसी पहल नहीं की। हिंदू विरोधी विषवमन से लालू का तो कुछ बिगड़ना नहीं। पर कांग्रेस का बंटाधार हो जाएगा। लालू अपनी लालूगिरी से गुजरात में कांग्रेस का बंटाधार कर चुके। बिहार में अपना और कांग्रेस का बाजा बजवा चुके। बजरंग दल पर बैन का राग लालू-पासवान कांग्रेस ने भी खूब बजाया। मनीष तिवारी बोले- 'बैन लगना चाहिए।' पर मनमोहन देर शाम तक दुविधा में रहे। एयरफोर्स डे के बहाने केबिनेट मीटिंग बीच में रोकी। ताकि ठंडे दिमाग से सोच लिया जाए। कांग्रेस पर पहले ही मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप। अब कहीं ईसाई तुष्टिकरण का भी लगा। तो कहीं चुनाव में बैक फायर न हो जाए। मनमोहन मुस्लिम तुष्टिकरण में भी फूंक-फूंककर कदम रखने लगे। बुधवार को अमर सिंह दो एजेंडे लेकर मनमोहन से मिले। पहला- बजरंग दल पर बैन का। दूसरा- मुठभेड़ की ज्यूडिशियल इंक्वारी का। पर मनमोहन ने कोई वादा नहीं किया। सुरक्षा सलाहाकार नारायणन सामने बैठे थे। मनमोहन चुप्पी साधकर अमरवाणी सुनते रहे। बोले कुछ नहीं। सुनते हैं- नारायणन ने जांच का कड़ा विरोध किया। कहा- 'मुठभेड़ की जांच सुरक्षा एजेंसियों का हौंसला गिराएंगी।' जहां तक बात अमर सिंह की। तो अपन को सत्यव्रत चतुर्वेदी का कहा बताना पड़ेगा। अमर सिंह ने सत्यव्रत को चिरकुट कहा। तो सत्यव्रत ने पलटकर कहा- 'उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं।' अपन इत्ते बड़े नेता पर क्या टिप्पणीं करें। पर पहले उनने मुठभेड़ के शहीद मोहन चंद्र शर्मा को श्रध्दांजलि दी। दस लाख का चेक भिजवाया। फिर मुठभेड़ पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्हीं अमर सिंह ने बुधवार को सिमी पर भी रुख बदला। जिनने पहले सिमी की वकालत की थी। वही बोले- 'सिमी के खिलाफ सबूत मिले हैं। तो बैन लगाना ठीक।'
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