कृपया गौर करिए। मनमोहन सिंह के खुश होने पर न जाईए। अमेरिकी कांग्रेस ने किस शर्त पर वन-टू-थ्री को मंजूरी दी। खुशी के मारे उसे अनदेखा न करें। मनमोहन अपनी जिद में सब शर्तें मानने को राजी। पर क्या आप लोग उन शर्तों को नहीं देखेंगे? क्या उन शर्तों पर गौर नहीं करेंगे? क्या देश का भला-बुरा सब मनमोहन पर छोड़ देंगे? अपन ने मनमोहन को देश का भाग्यविधाता नहीं चुना।
बुश की तरह वह जनता के नुमाइंदे नहीं। जरा गौर करिए- अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी में लगी बुश प्रशासन की चिट्ठी पर। वही चिट्ठी जो बुश प्रशासन ने 16 जनवरी 2008 को टाम लैंटोस को लिखी थी। टाम लैंटोस अब इस दुनिया में नहीं। टाम लैंटोस ने करार का मजमून पढ़कर पैंतालीस सवाल किए थे। सवालों के जवाब में बुश सरकार ने चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी में लिखा था- 'अगर भारत ने न्यूक टेस्ट किया। तो अमेरिका को कार्रवाई करने का हक होगा। अमेरिका दिया गया ईंधन और सामान मांग सकता है। ईंधन की सप्लाई फौरन रोक सकता है।' अमेरिका ने इस चिट्ठी को कोई आठ महीने सीक्रेट रखा। उस समय के अमेरिकी अधिकारी वालटर एंडरसन कहते हैं- 'हमने जानबूझकर चिट्ठी को सीक्रेट रखा। चिट्ठी लीक होती। तो मनमोहन को भारत में मुश्किल होती।' और चिट्ठी लीक की गई विश्वासमत से डेढ़ महीने बाद तीन सितंबर 2008 को। मनमोहन ने संसद से वादा किया था- 'ऐसी शर्तें लगी, तो करार पर फिर से गौर करेंगे।' अब यह शर्त अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी का हिस्सा। आपने यह तो पढ़ा- वन-टू-थ्री करार के पक्ष में 298 वोट पड़े। करार के खिलाफ 117 वोट पड़े। जरूरत से आठ वोट ज्यादा। पर जरा गौर करिए- हाईड एक्ट के पक्ष में 359 वोट पड़े थे। यानी हाईड एक्ट का पलड़ा भारी। यह भी गौर करिए- करार का ड्राफ्ट किस शर्त पर मंजूर हुआ। हावर्ड बर्मन ने वोटिंग से पहले वह चिट्ठी कांग्रेस के रिकार्ड में रख दी। बुश प्रशासन की यह चिट्ठी मंजूरी प्रस्ताव में नत्थी हो चुकी। मनीष तिवारी अमेरिकी कांग्रेस के प्रस्ताव पर फूले नहीं समाए। पर अपन को कोई यह तो बताए- 'क्या अपने पीएम को संसद से वादा खिलाफी का हक है?' अपन इस कालम में तीन साल से करार को धोखा बताते रहे। आखिर वह धोखा सामने आ चुका। मनमोहन ने बड़ी चालाकी से 22 जुलाई को विश्वास मत लिया। अब आगे का जुगाड़ भी पूरा। करार विरोधी तीन सांसद बर्खास्त हो चुके। करार की हिमायत करने वाले सोलह में से एक भी बर्खास्त नहीं। अपन स्पीकर पर कोई टिप्पणीं नहीं कर रहे। पर तेलुगूदेशम के येरा नायडू का बयान काबिल-ए-गौर। उनने कहा- 'संसद में बहस से पहले करार पर दस्तखत न किए जाएं।' यही बात माकपा के प्रकाश करात ने भी कही। पर मनोहन पूरे विपक्ष को ठेंगे पर रखने को आमादा। कोंडालिसा राईस 19 अक्टूबर तक दस्तखत कर जाएंगी। विपक्ष चाहे तो लोकसभा से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ ले। मनमोहन ने देश की सुरक्षा तो गिरवी रखी ही। विदेशनीति भी बदलनी शुरू कर दी। बुश के घर से जीम कर सरकोजी के घर पहुंचे भी नहीं थे। नमक का कर्ज उतारना शुरू। फ्रांस पहुंचते ही बोले- 'हमें ईरान की परमाणु नीति कतई मंजूर नहीं। अपने पड़ोस में परमाणु शक्ति नहीं उभरने देंगे।' ईरान पर अमेरिकी नीति की तोता रटंत तो ठीक। पर चीन-पाक का क्या करोगे। चीन न्यूक टेस्ट करने को आजाद। पाक पर भी कोई बंदिश नहीं। भारत के पैरों पर कुल्हाड़ी तो आप ही मार रहे हैं। अपन को फ्रांस से करार पर कोई एतराज नहीं। रूस से करार पर भी नहीं। पर अमेरिका से करार इन शर्तों पर तो न हो। हे मनमोहन देश को बख्शो।
आपकी प्रतिक्रिया