कांग्रेस में जंगलराज की हालत। सोनिया की रहनुमाई में पार्टी की ऐसी दुर्दशा होगी। अपन ने कभी सोचा नहीं था। एक नेता कुछ कहता है, तो दूसरा कुछ और। मनमोहन सिंह की करनी-कथनी को ही देख लीजिए। एक पल कुछ और तो दूसरे पल कुछ और। उस दिन राष्ट्रपति भवन में गवर्नर कांफ्रेंस थी। तो मनमोहन खुफिया ढांचे के तहस-नहस होने पर गरजे। आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून की वकालत की। मनमोहन से इशारा पाकर कई छुटभैय्ये भी बोले।
कांग्रेसी प्रवक्ताओं के भी बयान आने लगे। जयंती नटराजन ने साफ-साफ कहा- 'सख्त कानून की जरूरत।' दिल्ली विस्फोटों के बाद पीएम तो इतने गंभीर थे। वीरप्पा मोइली को बुलाकर सख्त कानून की सिफारिश करवा ली। मोइली की प्रशासनिक सुधार वाली आठवीं रपट तैयार ही थी। उनने आनन-फानन में सिफारिश जोड़ी और सौंप दी। कैबिनेट मीटिंग बुला ली गई। पर मीटिंग से कुछ घंटे पहले सोनिया सात रेसकोर्स पहुंची। सारी योजना पर पानी फिर गया। फेडरल एजेंसी की सिफारिश, सख्त कानून की सिफारिश। सब धरे रह गए। बहुत शोर सुनते थे पहलू में, जो चीरा तो कतरा-ए-खूं न निकला। निकला- सीसीटीवी कैमरे का फैसला। केबिनेट के बाद दासमुंशी बोले- 'कोई सख्त कानून नहीं बनेगा। सिर्फ सीसीटीवी कैमरे लगेंगे। मौजूदा कानून ही काफी।' पर बुधवार को कांग्रेस के राजकुमार बोले- 'आतंकवाद के खिलाफ सख्त कानून चाहिए।' राहुल का यह बयान हिंदुओं की नाराजगी दूर करने के लिए। पर राहुल बाबा को मुस्लिम वोट की भी फिक्र। सो पोटा के खिलाफ भी जमकर बोले। कहा- 'पोटा के बावजूद कंधार हुआ, संसद पर हमला हुआ।' तो अपन राजकुमार को याद दिला दें- 'कंधार हुआ था दिसंबर 1999 में। आर्डिनेंस जरूर जारी हुआ 25 अक्टूबर 2001 को। पर पोटा बना था- 2002 में। संसद पर हमला हुआ था 13 दिसंबर 2001 को।' टाडा-पोटा के सबसे ज्यादा खिलाफ तो कपिल सिब्बल। सिब्बल की दलील- टाडा-पोटा का बेजा इस्तेमाल हुआ। पहले बात टाडा की। टाडा का सही इस्तेमाल भी राजीव गांधी हत्याकांड में हुआ। जहां तक बात बेजा इस्तेमाल की। तो सिब्बल यह क्यों नहीं बताते- 'केशुभाई पटेल ने किसान आंदोलन शुरू किया। तो कांग्रेसी चीफ मिनिस्टर चिमनभाई पटेल ने किसानों पर टाडा लगाया।' अब बात पोटा की। तो पोटा की मुखालफत क्यों शुरू हुई। क्या इसलिए नहीं, क्योंकि आतंकियों के हमदर्दो ने इसे मुस्लिम विरोधी कहा। कोई कांग्रेस को समझा दे- दूध पीना मुस्लिम विरोधी। तो कांग्रेसी दूध पीना छोड़ देंगे। जब यह कहते हैं- 'आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। तो आतंकवाद विरोधी कानून किसी धर्म के खिलाफ कैसे हुआ।' पोटा हटाना आतंकवादियों की तुष्टिकरण का जीता-जागता सबूत। पोटा हटाने का नतीजा अपने सामने। सोनिया-मनमोहन के चार साल के राज में वह हो गया। जो पाकिस्तान की आईएसआई बीस साल में नहीं कर सकी। हिंदुस्तान की सरजमीं से आतंकवादी पैदा होने लगे। आजमगढ़ में आतंकवादियों की फसल उगने लगी। बुधवार को मुंबई में पकड़े गए पांच आतंकी भी आजमगढ़ के। आजमगढ़ की वजह से आजमी लिखते थे कैफी। शबाना के पिता कैफी आजमी तो रहे नहीं। शबाना आजमी आजमगढ़ की बदनामी से बेहद खफा। शबाना आजमी ने भी आतंकवाद को हवा कम नहीं दी। क्या उनके इस बयान पर कोई भरोसा करेगा? उनने कहा था- 'मुझे मुंबई में फ्लैट नहीं मिल रहा। क्योंकि मैं मुसलमान हूं।' भड़काने वाले ऐसे बयान आतंकवाद को हवा नहीं देते? शबाना को तो आजमगढ़ के इस रूप पर शर्मींदा होना चाहिए। अपन बात कर रहे हैं भारतीय मुसलमानों के आतंकवादी बनने की। अरुण जेटली मंगलवार को आतंकवाद पर बोल रहे थे। तो उनने इसे देश के लिए खतरे की घंटी बताया। कांग्रेसी मंत्री शकील अहमद इससे सहमत तो हुए। पर बोले- 'इस पर बहस होनी चाहिए। संघ परिवार के कारण ही प्रतिक्रिया में बन रहे हैं आतंकवादी।' आतंकवादियों की पैरवी का यह दूसरा सबूत। यह तर्क परवेज मुशर्रफ जैसा। आगरा में बात ऐसे ही तर्क पर टूटी थी। जब मुशर्रफ ने आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी कहा।
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