कांग्रेस को आतंकवाद पर अपनी गलत नीतियों का अहसास हो चुका है, लेकिन चुनावों से ठीक पहले नीतियों में यू टर्न से भाजपा को फायदा पहुंचने के डर से ठिठकी हुई है। देश की सियासत वोट बैंक का शिकार हो गई है।
यूपीए सरकार और खासकर उसकी सबसे बड़ी घटक कांग्रेस संकट से जूझ रही है। कांग्रेस ने अंदाज भी नहीं लगाया था कि उसकी तुष्टिकरण की नीति उसके गले की हड्डी बन जाएगी। पिछले चार साल तक वामपंथी दल यूपीए सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और आतंकवादी तुष्टिकरण नीति के भागीदार थे।
अब जबकि वे सरकार से समर्थन वापस ले चुके हैं, तो उन्होंने आतंकवाद के प्रति नरम रुख का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। भाजपा जब संसद में अफजल गुरु को फांसी का मुद्दा उठाती थी तो वामपंथी सांसद मोहम्मद सलीम भाजपा पर पलटवार कर सरकार का बचाव करते थे। अब माकपा महासचिव प्रकाश करात ने सरकार पर आतंकवाद से निपटने में नाकामी का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। सरकार का साथ छोड़ चुके वामपंथी ही नहीं, अलबत्ता सरकार के भीतर से भी सरकार की आलोचना शुरू हो गई है। कांग्रेस में इस बात पर हैरानी प्रकट की जा रही है कि सिमी का समर्थन करने वाले दो केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ही आतंकवादी घटनाओं पर सरकार के खिलाफ बोलने शुरू हो गए हैं।
आतंकवाद की घटनाएं बढ़ने से अपनी पार्टी की अल्पसंख्यकवादी और आतंकवादियों के प्रति नरम रवैये की नीतियों से क्षुब्ध कांग्रेसी अब खुलेआम पार्टी और सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगे हैं। पार्टी की एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि वह शुरू से ही इन नीतियों के खिलाफ थी और कई बार सोनिया गांधी को अपनी राय से अवगत करवा चुकी थीं। कांग्रेस की इस वरिष्ठ महिला नेता ने पिछले दिनों दिग्विजय सिंह समेत पार्टी के कई नेताओं से संपर्क करके अल्पसंख्यकवाद से होने वाले नुकसान पर बातचीत की थी। अब कांग्रेस के कई नेता सोनिया गांधी के पास जाकर अपनी राय बेवाक ढंग से प्रकट कर रहे हैं, लेकिन पंद्रह फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले प्रदेशों के कांग्रेसी नेता पार्टी की नीति में परिवर्तन से होने वाले नुकसान गिना रहे हैं। दस जनपथ के निर्देश से अपनी विचारधारा और नीतियां तय करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस समय सोनिया गांधी से भी ज्यादा दबाव में हैं। मनमोहन सिंह पर अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश का आतंकवादियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का दबाव है। इसलिए वह संयुक्त राष्ट्र की आमसभा के लिए रवाना होने से पहले अपनी सरकार की ओर से कड़ा रुख अपनाने का संदेश लेकर जाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खुद वीरप्पा मोइली को बुलाकर प्रशासनिक सुधार कमेटी की आठवीं रिपोर्ट फौरन पेश करने को कहा। वीरप्पा मोइली को प्रधानमंत्री ने खुद निर्देश दिया कि वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने और नए कानून बनाने की सिफारिश करें। रिपोर्ट पहले ही तैयार थी और प्रधानमंत्री की हिदायत के मुताबिक सिफारिश जोड़कर कुछ घंटों के भीतर ही प्रिटिंग के लिए भेज दी गई। रिपोर्ट जारी होते ही कांग्रेस के कई नेताओं ने अपना सुर बदल लिया, वे समझ गए थे कि आखिरकार सरकार ने मन बना लिया है। जयंती नटराजन जैसी कांग्रेसी नेताओं ने खुलेआम सख्त कानून की वकालत कर दी। जबकि अब तक अल्पसंख्यकवाद को बढ़ावा दे रहे कांग्रेसी नेताओं ने सोनिया गांधी को फिर जाकर समझाया कि नीतियां बदलने से पार्टी को नुकसान होगा। कांग्रेस के इन नेताओं का मानना है कि चुनाव से ठीक पहले पार्टी की नीतियों में फेरबदल करने से भाजपा को फायदा होगा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी यूपीए सरकार बनने के बाद से ही आतंकवाद पर नरम रुख अपनाने का आरोप लगाते रहे हैं। मनमोहन सिंह के इस बयान को भाजपा ने आड़े हाथों लिया था जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादी वारदातों से बरी करते हुए कह दिया था कि वह भी आतंकवाद का शिकार है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भारत में होने वाली सभी आतंकी वारदातों में पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई को आरोपित करते हुए उसे अंतरराष्ट्रीय निगरानी में रखने की मांग की थी। काबुल में भारतीय दूतावास के सामने हुए आतंकी हमले में आईएसआई की भूमिका का आरोप लगाने के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पाक के प्रति रवैया नरम रहा। अमेरिका ने पाकिस्तान को साफ तौर पर कहा कि काबुल की वारदात में आईएसआई का हाथ था। ऐसी परिस्थिति का फायदा उठाते हुए मनमोहन सिंह आईएसआई पर ज्यादा हमलावर हो सकते थे, लेकिन वह अपनी आदत के मुताबिक पाक के प्रति नरम रुख पर कायम रहे। अब अगर यूपीए सरकार चार साल बाद पाक और आतंकवाद के प्रति सख्त रुख अपनाती है तो इसे सरकार का अपनी चार साल की गलतियां सुधारना माना जाएगा और भाजपा का आरोप सही साबित हो जाएगा। रक्षामंत्री एके एंटनी ने पाकिस्तान पर ज्यादा हमलावर रुख अपनाना शुरू कर दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी अभी भी दस जनपथ से दिशा-निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।
पाकिस्तान पर आरोप लगाना अब उतना वजनदार भी नहीं रहेगा क्योंकि यूपीए सरकार के पिछले चार सालों में आईएसआई ने सिमी की मदद से शुध्द भारतीय आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन खड़ा कर दिया है। इंडियन मुजाहिद्दीन अब तक के सभी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से ज्यादा आधुनिक, वैज्ञानिक और तकनीक संपन्न संगठन हैं। इंडियन मुजाहिद्दीन में पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी आतंकियों से कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे युवक शामिल हैं, जिन्हें बम बनाने के लिए पाकिस्तान के प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा लेने की जरूरत ही नहीं है। कश्मीर घाटी को कश्मीरी पंडितों से मुक्त करके सौ फीसदी मुस्लिम बना देने के बावजूद पाकिस्तान घाटी में घरेलू आतंकवादियों का संगठन और नेटवर्क खड़ा नहीं कर पाया था। घाटी के युवक गुमराह होकर आतंकवाद में शामिल जरूर हुए थे लेकिन उनमें न तो नेतृत्व की क्षमता थी और न ही तकनीक का ज्ञान। घाटी के आतंकी अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर काम करते थे। वे अनपढ़ता और बेरोजगारी के कारण आईएसआई की ओर से दिखाए गए आजादी और खुशहाली के सपनों का शिकार होते थे। जबकि सिमी की मदद से बनाई गई इंडियन मुजाहिद्दीन में शामिल मुस्लिम युवक पढ़े-लिखे, संपन्न परिवारों से जुड़े नेतृत्व क्षमता वाले आधुनिक तकनीक से लैस हैं।
कांग्रेस के महत्वहीन तबके को इस बात का पूरा अहसास है कि हिंदू विरोधी वैसाखियों के सहारे सरकार बनाने से उनकी पार्टी की मध्य मार्ग की रणनीति तहस-नहस हो गई है। अब जबकि हालात नियंत्रण से बाहर हो गए हैं तो बीच रास्ते में नीतियां बदलने से होने वाले खतरे का डर दिखाकर सही रास्ता अपनाने से रोका जा रहा है। लालू यादव के दबाव में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को आतंरिक सुरक्षा पर केबिनेट की बैठक बुलाई थी। इस बैठक से ठीक पहले सोनिया गांधी ऐसे ही लोगों के दबाव में आ गई। उन्होंने प्रधानमंत्री से मुलाकात करके नीतियों में यू टर्न लेने से भाजपा को फायदा पहुंचने का डर दिखाकर आगाह कर दिया। आखिर तीन घंटे चली बैठक में फिर वही लोग हावी हो गए जिनके दबाव में पोटा रद्द करने और आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपनाने की नीति चल रही थी। फिलहाल कांग्रेस और यूपीए सरकार ने देखो और इंतजार करने की रणनीति अख्तियार की है। इस बीच राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को और मजबूत करने का विचार जरूर बना है, लेकिन जब तक 'पोटा' जैसे जमानत के सख्त प्रावधान, मजिस्ट्रेट के सामने अपराध स्वीकार करने को सबूत, टेलीफोन बातचीत जैसे सबूतों को अदालत में स्वीकार्य करने जैसे प्रावधान नहीं किए जाते तब तक कानून मजबूत नहीं हो सकता। कांग्रेस दो खेमों में बंट गई है और कपिल सिब्बल जैसे लोग आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती के खिलाफ हैं।
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