इंडिया गेट से अजय सेतिया / मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ के चुनाव हो गए| राजस्थान के 25 नवंबर को है| राजस्थान में दोनों दलों का जितना जोर लग रहा है| उतना मध्यप्रदेश छतीसगढ़ में नहीं लगा| वैसे इन तीनों राज्यों के चुनाव भाजपा के लिए उतने महत्वपूर्ण नहीं, जितने कांग्रेस के लिए हैं| क्योंकि इन तीन राज्यों में से दो राज्य इस समय कांग्रेस के पास हैं| महत्वपूर्ण तो भाजपा के लिए भी है| लेकिन भाजपा के लिए कम महत्वपूर्ण है, क्योंकि भाजपा के पास अभी एक ही राज्य है मध्यप्रदेश| वह भी असल में वह पिछली बार हार गई थी| यानि कायदे से देखें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी| पर लोकसभा चुनावों में उसका कोई असर नहीं हुआ था| इन तीनों राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से 62 भाजपा जीत गई थी|
इसलिए भाजपा अगर फिर तीनों राज्य हार गई, तो भी 2024 के चुनावों पर असर नहीं पड़ेगा|इसलिए विधानसभा चुनावों को सेमीफाइनल कहने वाला इंडी एलायंस गलतफहमी का शिकार है| लेकिन कांग्रेस इन तीन राज्यों में से दो राज्य हार गई| तो इंडी एलायंस के लिए झटका होगा, और कांग्रेस के लिए मुश्किल होगी| उस की उम्मीदों पर पानी फिरेगा| भाजपा तीनों में से दो राज्य भी जीत जाए, तो उसके लिए उपलब्धि होगी| एक भी जीते, तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता| क्योंकि हमने पिछले चुनाव में भी देखा| कि तीनों राज्य हार कर भी लोकसभा चुनाव में मोदी ने इन तीनों ही राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया था| इस लिए सवाल भाजपा का नहीं, सवाल कांग्रेस का है, अगर वह तीनों राज्यों में से दो राज्य हार गई, और मिजोरम या तेलंगाना में से भी कोई राज्य नही जीता, जिसकी संभावना न के बराबर है, तो कांग्रेस के लिए मुश्किल होगी|
अकेले लड कर जीतने का उसका घमंड टूट जाएगा| इसी घमंड में कांग्रेस ने इंडी एलायंस के पार्टनरों को भाव नहीं दिया| नीतीश, अखिलेश और केजरीवाल मध्यप्रदेश में सीटें मांग रहे थे| लेकिन कांग्रेस ने तीनों को ठेंगा दिखा दिया| अब अगर कांग्रेस हिन्दी भाषी तीनों राज्यों या दो राज्यों में हार गई| तो उसका इंडी एलायंस का नेता बनने की उसकी उम्मीदों पर पानी फिरेगा| न केजरीवाल दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में भाव देंगे| न अखिलेश यादव उतर प्रदेश में भाव देंगे| न लालू और नीतीश बिहार में उतना भाव देंगे|
तीन महीने पहले तक कांग्रेस तीनों राज्यों में जीत रही थी| यह ओपिनियन पोल भी बता रहे थे| कांग्रेस ने इन्हीं ओपिनियन पोल को देख कर अखिलेश, केजरीवाल और नीतीश को भाव नहीं दिया| पर ओपिनियन पोल एक टर्न्ड बताता है, नतीजा नहीं| आज मैं भी जो कुछ बताऊँगा, वह मेरा आकलन होगा, नतीजा तो 3 दिसंबर दोपहर 12 बजे के बाद पता चलेगा| अब वोटिंग से अंदाज लगाना मुश्किल हो गया है| पहले माना जाता था कि अगर पिछले चुनाव के मुकाबले वोट प्रतिशत बढा है, तो सत्ता परिवर्तन होगा| लेकिन मध्यप्रदेश में 2003 से हर चुनाव में वोट प्रतिशत बढा है, इसके बावजूद2003, 2008 और 2013 में भाजपा जीतती रही| 2018 में जब किसी को बहुमत नहीं मिला था, तब उसकी सीटें जरुर घटीं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत कांग्रेस से आधा प्रतिशत ज्यादा था| इस बार भी 2018 के मुकाबले करीब आधा प्रतिशत वोट बढा है| इस लिए यह कोई जीत हार का पैमाना नहीं रहा कि वोट प्रतिशत बढ़ेगा, तो सत्ताधारी पार्टी हारेगी ही| छतीसगढ़ में पौना प्रतिशत वोटिंग कम हुई है| ये आंकडें और कुछ दिखाए या न दिखाएं, इतना संकेत जरुर देते हैं कि छतीसगढ़ में कांग्रेस का पलड़ा भारी है और मध्यप्रदेश में कांटे की टक्कर में भाजपा का पलड़ा भारी है| यानि महादेव एप के बावजूद छतीसगढ़ में कांग्रेस जीतती हुई दिख रही है, और मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार बचाती दिख रही है| जहां तक राजस्थान का सवाल है, तो वोटिंग से पांच दिन पहले यह भविश्यवाणी की जा सकती है कि भाजपा जीत रही है| तो मेरी भविश्यवाणी यह है कि कांग्रेस एक सरकार गवा रही है, भाजपा एक सरकार बढा रही है| तय है कि कांग्रेस मिजोरम, तेलंगाना के साथ राजस्थान और मध्यप्रदेश भी हार गई तो वह इंडी एलायंस में मुहं दिखाने लायक नहीं रहेगी| इंडी एलायंस को भी झटका लगेगा, जो इन चुनावों को सेमीफाइनल बता रही है| वैसे कोई एक चुनाव दुसरे चुनाव का सेमीफाईनल नहीं होता|
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