अजय सेतिया / आम आदमी पार्टी और केजरीवाल 2013 से भाजपा पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह उनके विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रहे हैं| हालांकि वह ऐसा एक भी ठोस सबूत पेश नहीं कर सके, जिससे साबित होता हो कि भाजपा ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को खरीद कर केजरीवाल की सरकार गिराने की कोशिश की हो| असल में केजरीवाल को दिल्ली विधानसभा में इतना ज्यादा बहुमत है कि दलबदल करवा कर उनकी सरकार गिराने की कोई गुंजाइश ही नहीं है| लेकिन दूसरी तरफ सच यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी जहां भी मौक़ा मिलता है, विरोधी दलों की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनाने से नहीं चूकती| मध्यप्रदेश , कर्नाटक दो बड़े उदाहरण हैं| आम आदमी पार्टी के साथ भी चंडीगढ़ में ऐसा हो चुका है, जहां आम आदमी पार्टी के ज्यादा पार्षद होने के बावजूद भाजपा का मेयर चुना गया था| केजरीवाल जो आरोप लगाया करते थे और भाजपा जिन आरोपों को हमेशा झूठ कहती थी, वह दिल्ली नगर निगम के मेयर पद के चुनाव में दिखने लगा है| पांच और छह जनवरी को दिल्ली नगर निगम में जो कुछ हुआ, उसने भाजपा की नियत पर शक पैदा कर दिया है| हर राजनीतिक दल को लोकतंत्र का सम्मान करना चाहिए, लेकिन पांच और छह जनवरी को जो कुछ हुआ, वह लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है| नगर निगम में किस को बहुमत मिला, किस को नहीं मिला, इसकी चिंता किए बिना उपराज्यपाल को वरिष्ठतम पार्षद को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना चाहिए था| लेकिन वरिष्ठतम पार्षद को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने की बजाए उपराज्यपाल ने भाजपा की एक पार्षद को प्रोटेम स्पीकर बनाया|
250 सदस्यों वाली दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आम आदमी पार्टी को 134 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला था| भाजपा के 104 और कांग्रेस के 9 पार्षद जीते थे| मेयर चुनाव में 250 चुने हुए पार्षदों को वोट करना है| इसके साथ ही दिल्ली के सात लोकसभा सांसद, जो सातों ही भाजपा के हैं, तीन राज्यसभा सांसद, जो तीनों ही आम आदमी पार्टी के हैं और विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से मनोनीत 14 विधायकों को मतदान में हिस्सा लेना है| इस तरह कुल 274 लोगों को मतदान करना है और बहुमत का आंकड़ा 138 का है| भाजपा इस आंकड़े से बहुत दूर है, जबकि आम आदमी पार्टी के पास 151 अधिकृत वोटरों के साथ पूर्ण बहुमत है| जिस तरह राज्यसभा में राष्ट्रपति 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं, या विभिन्न विधानसभाओं में एंग्लों इंडियन मनोनीत होते हैं, उसी तरह नगर निगम में भी विभिन्न विषयों के 10 विशेषज्ञ एल्डरमैन के तौर पर पार्षद नियुक्त होते हैं| लेकिन मनोनीत पार्षदों को मेयर के चुनाव में वोट का अधिकार नहीं होता| इसलिए ऐसी कोई गुंजाइश ही नहीं बनती कि भाजपा का मेयर चुना जाए| अंकगणित को देखते हुए ही भाजपा ने पहले ऐलान किया था कि वह मेयर चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी| लेकिन बाद में उसने अपनी पूर्व घोषणा से यू टर्न लेते हुए चुनाव में अपना प्रत्याशी उतार दिया|
आम आदमी पार्टी की पहली आपत्ति यह है कि एमसीडी के 10 मनोनीत पार्षदों को नियुक्त करने का अधिकार सरकार का था, लेकिन उपराज्यपाल ने सरकार से पूछे बिना पार्षद नियुक्त कर दिए| शुक्रवार को एलजी ऑफिस की तरफ से जारी एक बयान में डीएमसी एक्ट के तहत दी गई शक्तियों का हवाला देते हुए कहा गया कि दिल्ली के एडमिनिस्ट्रेटर को 10 लोगों को नगर निगम में पार्षद मनोनीत करने का अधिकार है| दिल्ली के संदर्भ में एडमिनिस्ट्रेटर का मतलब उप राज्यपाल से है| ऐसे में एलजी को कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के तहत 10 पार्षदों को एमसीडी में मनोनीत करने का पूरा अधिकार है और उसी के तहत उन्होंने 10 लोगों की नियुक्ति का आदेश जारी किया है| इससे पहले केजरीवाल ने उपराज्यपाल को चिठ्ठी लिख कर कहा था कि वह मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति रद्द करें| जैसी की केजरीवाल की आदत है, उन्हें जो बात पसंद नहीं होती, उसे वह असंवैधानिक कह देते हैं, उपराज्यपाल को लिखी चिठ्ठी में भी उन्होंने नियुक्तियों को असंवैधानिक कहा था, जबकि उपराज्यपाल ने एक्ट के मुताबिक़ ही नियुक्तियां की थीं|
आम आदमी पार्टी की दूसरी आपत्ति यह है कि उपराज्यपाल ने भाजपा के सदस्यों को एल्डरमैन नियुक्त किया है| जिस दिल्ली नगर निगम एक्ट 1957 के अंतर्गत दस एल्डरमैन या पार्षद नियुक्त किए गए हैं, उस एक्ट में राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को मनोनीत करने की कोई पाबंदी नहीं है|
आम आदमी पार्टी का तीसरा आरोप यह है कि उपराज्यपाल ने मनोनीत पार्षदों को मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट का अधिकार दे दिया है| अब इस मुद्दे को समझने की जरूरत है| 2015 में एमसीडी तीन हिस्सों में बंटी हुई थी| हर एमसीडी में 10-10 एल्डरमैन मनोनीत किए गए जाते थे, लेकिन वे किसी भी चुनाव में वोट नहीं कर सकते थे और ना ही किसी पद पर चुने जा सकते थे| उस समय तत्कालीन एल्डरमैन व कांग्रेस नेता ओनिका मल्होत्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में केस दाखिल कर वोटिंग का अधिकार मांगा था| दिल्ली हाईकोर्ट ने 27 अप्रैल 2015 में एल्डरमैन को वार्ड कमेटी और स्थाई समिति के चुनाव में वोटिंग का अधिकार दिया| यह फैसला हाईकोर्ट का है, आम आदमी पार्टी इसी से कुपित है, क्योंकि स्थाई समिति ही महत्वपूर्ण होती है, अगर स्थाई समिति के सभी छह सदस्य आम आदमी पार्टी के नहीं चुने गए तो वह वैसी मनमानी नहीं कर पाएगी, जैसी विधानसभा के माध्यम से करती रही है| इसी कारण आम आदमी पार्टी यह आरोप लगा रही है कि उपराज्यपाल की ओर से मनोनीत पार्षद विकास कार्यों में बांधा डालेंगे| आम आदमी पार्टी को डर यह भी है कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को आधार बना कर उपराज्यपाल ने कहीं मनोनीत पार्षदों को मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में वोटिंग का अधिकार तो नहीं दे दिया|
हालांकि इस बात को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है कि जिन एल्डरमैन को दिल्ली हाईकोर्ट ने वार्ड कमेटी में वोटिंग का अधिकार दिया है, क्या उन्हें मेयर के चुनाव में वोटिंग का अधिकार है या नहीं| शुक्रवार को एमसीडी के मेयर, डिप्टी मेयर और स्थाई समिति के 6 सदस्यों का चुनाव होना था| अपने डर के चलते आम आदमी पार्टी ने शुक्रवार को हंगामा किया, जबकि यह एक कानूनी मसला है, जिसका हल हाईकोर्ट से ही निकल सकता है| 2015 में आम आदमी पार्टी एमसीडी में नहीं थी, लेकिन वह अब 2015 के हाईकोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका लगा सकती है या कोर्ट से स्पष्टीकरण ले सकती है कि क्या मनोनीत पार्षदों को मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में भी वोट का अधिकार होगा या नहीं| हालांकि अगर उपराज्यपाल ने हाईकोर्ट के फैसले को आधार बना कर मनोनीत पार्षदों को वोटिंग का अधिकार दे भी दिया है, तो भी भाजपा का मेयर या डिप्टी मेयर नहीं बनता| क्योंकि 104 निर्वाचित पार्षदों, सात सांसदों और दस मनोनीत पार्षदों के साथ यह संख्या 121 ही बनती है, जबकि आम आदमी पार्टी के के पास 151 का आंकडा है|
फिर शुक्रवार को मेयर, डिप्टी मेयर और स्थाई समिति के छह सदस्यों के चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने हंगामा क्यों किया| उपराज्यपाल की ओर से नियुक्त प्रोटेम स्पीकर सत्या शर्मा ने खुद शपथग्रहण करने के बाद जैसे ही दस मनोनीत पार्षदों को पहले शपथ करानी शुरू की, हंगामा हो गया| यह हंगामा आम आदमी पार्टी के कल्चर को प्रदर्शित करता है, क्योंकि मनोनीत एल्डरमैन पार्षदों को ही पहले शपथ दिलाने की परंपरा रही है| पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा ने परंपरा के मुताबिक़ ही मनोनीत सदस्यों को पहले शपथ दिलाना शुरू किया था| आम आदमी पार्टी के पार्षदों को हंगामे और हिंसा के लिए उसके विधायक और सांसद भडकाते हुए देखे गए| इस सारे घटनाक्रम से एलक बार फिर साबित हुआ कि केजरीवाल का लोकतांत्रिक परंपराओं में बिलकुल विशवास नहीं है| आम आदमी पार्टी ने जिस पार्षद मुकेश गोयल का नाम पीठासीन अधिकारी के लिए भेजा था, उसी ने सब से पहले हंगामा शुरू किया, उसी ने आपत्ति उठाई कि पहले निर्वाचित पार्षदों को शपथ दिलाई जाए, जबकि वह जानते थे कि परंपरा पहले मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने की है, बल्कि उन्होंने कहा भी मनोनीत सदस्यों को पहले शपथ दिलाने की परंपरा बदलनी चाहिए| इससे साफ़ है कि हंगामे की सोची समझी रणनीति थी, मकसद मनोनीत सदस्यों को शपथ लेने से रोकना था, इसका सबूत यह है कि डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने गुरूवार को उपराज्यपाल की ओर से की जा रही नियुक्तियों को अवैध करार देते हुए एमसीडी आयुक्त को चिठ्ठी लिख कर आदेश दिया था कि वह अवैध नियुक्त किए गए पार्षदों को शपथ लेने से रोकें| आम आदमी पार्टी राजनीति की सूरत बदलने आई थी, लेकिन इस घटना से साफ़ जाहिर होता है कि हंगामा करना उन का मकसद है, सूरत बदलना नही|
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