यूपी में तो चल पड़ी दलबदल की लहर

Publsihed: 12.Jan.2022, 21:59

अजय सेतिया / मुम्बई और दिल्ली में कोरोना की तीसरी लहर चल रही है तो यूपी , पंजाब और गोवा में दलबदल की लहर चल रही है | पंजाब में अकाली दल साफ़ हो रहा है , उस के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं और कई ओर शामिल होने वाले हैं | अगर वे भाजपा में टिके रहते हैं , तो भाजपा को एक फायदा यह होगा कि उसे अच्छे खासे सिख नेता मिल जाएंगे | भाजपा पंजाब में इस लिए पाँव नहीं जमा पाई क्योंकि सिख भाजपा में शामिल नहीं हुए | भाजपा हिन्दुओं की पार्टी बन कर रह गई , जिन की संख्या पंजाबी सूबा बनने के बाद बहुत घट चुकी है | हिन्दू भी भाजपा की बजाए कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा करते हैं क्योंकि भाजपा तो अकालियों की गौद में जा बैठी थी | नतीजतन भाजपा न हिन्दुओं की पार्टी बन सकी , न सिखों की |

भाजपा अगर अकाली दल से गठबंधन तोड़ कर अकेले लडती और धीरे धीरे अपनी ताकत बढाती , तो बड़ी पार्टी बन सकती थी | आप सोचिए 2017 में जब भाजपा सारे देश में जीत रही थी , पंजाब में उस का सिर्फ एक विधायक जीत सका , जबकि केंद्र में भाजपा कुछ नहीं थी , तब भी एक बार भाजपा के 20 विधायक जीत गए थे | अगर भाजपा 2017 में अकेले लडती , तो अकाली दल और कांग्रेस से आने वालों की तभी लाईन लग जाती | अब जब कृषि कानूनों के खिलाफ अकाली दल ने खुद भाजपा का साथ छोड़ा है तो भाजपा को अपने पांवों पर खड़े होने का मौक़ा मिला है | अकाली दल ने कृषि कानूनों का विरोध करने वाले अमरेन्द्र सिंह की बढती लोकप्रियता से परेशान हो कर भाजपा का दामन छोड़ा था | संयोग देखिए कि अब अमरेन्द्र सिंह भाजपा के साथ हैं , और अकाली दल बिखर रहा है | अपन नहीं जानते कि अमरेन्द्र की जाट सिखों में उतनी पकड़ है या नहीं , क्योंकि जाट सिखों पर सर्वाधिक पकड़ अकाली दल की रही है | अगर अकाली दल को कमजोर होता देख कांग्रेस विरोधी जाट अमरेन्द्र सिंह से जुड़ते हैं तो पंजाब में हिन्दू सिख का गजब का समीकरण बनेगा | जाट अमरेन्द्र सिंह से जुड़ सकता है क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें हटा कर दलित ईसाई को मुख्यमंत्री बनाया है और जाट नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री का उम्मीन्द्वार भी घोषित नहीं किया है |

अपना पक्का विशवास है कि चुनावों में स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिलेगा, क्योंकि चुनाव चोकौने होंगे | कांग्रेस और अमरेन्द्र-भाजपा गठबंधन पहले दूसरे नंबर पर रह सकते हैं | आम आदमी पार्टी और अकाली दल तीसरे चौथे नंबर पर रह सकते हैं | पर अपन बात कर रहे थे दलबदल की | पंजाब में अकाली नेता भाजपा में आ तो रहे हैं , लेकिन टिकेंगे नहीं | यह अपन इस लिए कह रहे हैं कि भाजपा में बाहर से आया व्यक्ति ज्यादा टिकता नहीं | वे सत्ता के लिए आते हैं और सत्ता जाती दिखे तो पहले ही किनारा कर लेते हैं | अब आप यूपी में देख ही रहे हैं | स्वामी प्रसाद मौर्य सिर्फ इस लिए भाजपा छोड़ गए कि भाजपा उन के बेटे को टिकट नहीं देना चाहती | हालांकि भाजपा उन की सांसद बेटी संघमित्रा गौतम के माध्यम से उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है | लेकिन अपन को नहीं लगता कि वह मानेंगे | क्योंकि इस्तीफे में उन्होंने भाजपा पर दलितों , पिछड़ों , किसानों युवाओं के अहित में फैसले लेने का आरोप लगाया है | हालांकि इस पर खुद उन की खिल्ली उड़ रही है है | पर इस से उन के ओबीसी वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ता |

 

अपन बार बार लिखते रहे हैं कि भाजपा सत्ता के लिए बाहरी लोगों को तरजीह दे कर अपने ग्रास रूट को नाराज करती है | और बाहरी लोग ज्यादा दिन टिकते नहीं | वह अपन गोवा और उतर प्रदेश में देख ही रहे हैं | स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद ही छह विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं | सभी बरसाती मेढक हैं | मंगलवार को स्वामी प्रसाद मौर्य गए थे , तो बुद्धवार को दारा सिंह चले गए | दारा सिंह चौहान भी स्वामी प्रसाद मौर्य की तरह बसपा से आए थे | इस से पहले समाजवादी पार्टी में थे | बसपा टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव हार गए तो 2015 में भाजपा ज्वाईन कर ली थी | पर वह भाजपा में खुश नहीं थे , उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें राज्यसभा में भेजेगी | विधानसभा चुनाव से पहले वह भाजपा छोड़ सपा में जाने की तैयारी ही कर रहे थे कि अमित शाह ने उन्हें पिछड़ा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया | फिर विधानसभा का टिकट दे दिया , जीत गए तो मंत्री बना दिया , इसलिए वह पांच साल टिके रहे | अब जब भाजपा सपा का मुकाबला कडा होता दिख रहा है तो वह भी छलांग लगा गए |

 

 

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