पंजाब एसेंबली ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को बर्खास्त किया। अपन को ग्यारह सांसदों की बर्खास्तगी याद आ गई। संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने का आरोप था। यानि कुर्सी का दुरुपयोग। यों तो भ्रष्टाचार के मामले में सख्ती होनी ही चाहिए। पर जांच पड़ताल के बाद ही। सांसदों की बर्खास्तगी के समय कोई जांच नहीं हुई। स्टिंग आपरेशन विपक्षी सांसदों के खिलाफ था। न दलील चली, न वकील। अपन को तब भी डर था- 'स्टिंग आपरेशन गले की हड्डी बनेंगे।'
तीन सांसदों ने खरीद-फरोख्त का पेशगी एक करोड़ रुपया सदन पटल पर रख दिया। तब उन्हीं कांग्रेसियों के होश उड़ गए। जिनने ग्यारह सांसदों को बिना जांच के दस दिन में बर्खास्त करवाया। अब स्टिंग आपरेशन भी चैनल पर आ गया। एक करोड़ रुपया स्पीकर की तिजोरी में पड़ा है। स्पीकर की बनाई कमेटी फैसला नहीं कर पा रही। भ्रष्टाचार स्टिंग आपरेशन से सामने आए। या फिर किसी कमेटी की जांच से। अब जब अमरिंदर सिंह भ्रष्टाचार में बर्खास्त हुए। तो कांग्रेस के पसीने छूट गए। तब लोकसभा की पवन बंसल कमेटी की सिफारिश थी। अब विधानसभा की हरीश राय ढांडा कमेटी की सिफारिश। अमरिंदर जब सीएम थे। तो उनने अमृतसर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट को 360 करोड़ का चूना लगवाया। बत्तीस एकड़ जमीन अपने खास बिल्डर को दिला दी। भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही है। निपटने का पैमाना एक ही होना चाहिए। अगर बंसल कमेटी का फैसला सही था। तो ढांडा कमेटी का फैसला भी सही। पर कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद बोले- 'पंजाब सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है।' अपन को लगता है तब भी कानून को काम करने देना चाहिए था। अब भी कानून को काम करने देना चाहिए। पर बात शकील अख्तर की चली। तो यांग की सोनिया से मुलाकात का किस्सा याद आया। चीन के विदेश मंत्री यांग जीची भारत में थे। उनने सोनिया गांधी से मुलाकात का वक्त मांगा। पर सोनिया ने मिलने का वक्त नहीं दिया। वजह- एनएसजी में चीन के विरोध की खबरें। कहते हैं- अमेरिकी रणनीति का हिस्सा थीं ये खबरें। कोई माने या न माने। एटमी करार का अपनी विदेश नीति पर असर शुरू हो चुका। अपन को वे दिन नहीं भूलते। कांग्रेस दफ्तर में बाकायदा एक सेल बनाया गया था। सेल का काम था- विदेशी मेहमानों को सोनिया से मुलाकात के लिए तैयार करना। सोनिया जब विपक्ष की नेता थी, तो जमकर मुलाकातें हुई। हर ऐरा-गेरा भी दस जनपथ पहुंचाया जाता रहा। अब चीन का विदेश मंत्री खुद मुलाकात को उतावला था। सोनिया गांधी ने मिलने का वक्त नहीं दिया। सुनते हैं अब मनमोहन सिंह भी चीन नहीं जाएंगे। अमेरिका की रणनीति काम कर गई। बड़ी चालाकी से बनाई थी रणनीति। यों अपन को चीन से कोई हमदर्दी नहीं। चीन कोई अपना हितैषी-हमदर्द नहीं। भारत की पीठ में छुरा घोंपने का मौका कभी नहीं गंवाया। सो कांग्रेस का अपने लेफ्टियों की तरह चीन से भी मोह भंग हो। तो अपन को खुशी ही होगी। कम्युनिस्ट स्वदेशी हों या विदेशी। भारत के सगे कभी नहीं हुए। वाजपेयी जब तिब्बत को चीन का हिस्सा बता आए थे। अपन तब वाजपेयी के हिमायती भी नहीं रहे थे। बात वाजपेयी की चली तो याद दिला दें- एटमी करार की पहली मुखालफत उनने ही की थी। पर जब से बृजेश मिश्र करार के हिमायती हुए। तब से वाजपेयी भी चुप। यों वाजपेयी की बात चली। तो ताजा किस्सा बताएं। बीजेपी वर्किंग कमेटी से ठीक पहले वाजपेयी घर से निकले। बात मंगलवार की। गए थे हनुमान मंदिर। संसद की तरफ जाने की तलब उठी। सो गाड़ी इंडिया गेट की तरफ घुमा दी गई। वाजपेयी इंडिया गेट से ही घर लौट गए। अब संसद तक का रास्ता आडवाणी के जिम्मे।
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