एटमी करार को एनएसजी से हरी झंडी क्या मिली। कांग्रेस में फील गुड फैक्टर शुरू हो गया। अपन को राजस्थान का एक कांग्रेसी बता रहा था- 'डील ने कांग्रेस की उम्मीद बना दी। वरना तो वसुंधरा का पलड़ा भारी था।' एटमी करार कांग्रेस को चुनाव जिता देगा। अपन को तो भरोसा नहीं होता। पर इस देश का क्या पता। कांग्रेस के फील गुड का अंदाज पार्टी की रोजाना ब्रीफिंग में लगा। वीरप्पा मोइली अगल-बगल में जयंती-मनीष को बिठाकर जमकर बोले।
आधा घंटा तक करार का गुणगान चालीसा पढ़ा। खबरची इतने बोर हो गए, सवाल पूछने की बारी आई। तो एक खबरची ने जोर से बोला- 'धन्यवाद।' इस तरह ब्रीफिंग खत्म हुई। सवाल हुए भी, तो जम्मू कश्मीर पर। बात जम्मू-कश्मीर की। सोमवार को आयोग ने चुनाव चर्चा पर मीटिंग की। तो सबने अपनी-अपनी ढपली बजाई। बीजेपी-लेफ्ट ने कहा- 'नवंबर में तय समय पर चुनाव हों।' कमाल है- धुर विरोधी पार्टियों की करार के बाद चुनाव पर भी एक राय। यही हाल नेशनल कांफ्रेंस पीडीपी का। दोनों धुर विरोधी पार्टियां। दोनों ने कहा- 'अभी माहौल चुनाव का नहीं।' पैंथर, एनसीपी की न दोस्ती न दुश्मनी। फिर भी दोनों की एक राय। दोनों ने कहा- 'पहले डी लिमिटेशन करवाया जाए।' कांग्रेस की राय अपन बाद में बताएंगे। पहले बात डी लिमिटेशन की। यों यह बीजेपी का मुद्दा। पर बीजेपी के नुमाइंदे मुख्तार अब्बास नकवी चुप रहे। अरुण जेटली बता रहे थे- 'जम्मू की आबादी कश्मीर से ज्यादा। पर सीटें कम। इसलिए अब डी लिमिटेशन होना चाहिए। ताकि जम्मू की सीटें बढ़ें।' कांग्रेस के गुलामनबी, सोज, पृथ्वीराज ने चुप्पी साध ली। बोले- 'चुनाव आयोग ही फैसला करेगा।' आपको बताते जाएं- तीनों ने चुप्पी क्यों साधी। पिछले हफ्ते सोनिया ने मीटिंग बुलाई। मीटिंग में सोनिया को बताया गया- 'अगर कोशिश की जाए। तो चुनाव फरवरी तक टल सकता है।' सोनिया ने फटकारते हुए कहा- 'आप तो नवंबर की तैयारी करो। कर्नाटक में चुनाव नहीं टलवा सके थे।' कहते हैं ना- 'दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है।' पर सोमवार को सोनिया ने सरकारी मंच से पार्टी का चुनावी बिगुल फूंका। तो नारा लगा- 'हर घर में लट्टू जलेगा, हर खेत में टयूबवैल चलेगा।' अपन को दो पुराने नारे याद आए। दीनदयाल उपाध्याय जब जनसंघ अध्यक्ष थे। तो उनने 1967 में नारा दिया था- 'हर हाथ को काम, हर खेत को पानी।' अब वही नारा सोनिया का। ग्रामीण रोजगार गारंटी- यानी हर हाथ को काम। न्यूक्लियर डील- यानी हर खेत को पानी। बात दूसरे नारे की। इंदिरा गांधी ने 1971 में नारा दिया था- 'गरीबी हटाओ।' यों गरीबी तो आज तक नहीं हटी। अब वैसा ही नारा सोनिया का। तो सवाल खड़ा होगा- 'क्या अपनी साक्षरता आज भी 1971 जैसी। क्या 1971 की तरह फिर झांसे में आएगी जनता।' अगर अपन सचमुच अनपढ़ के अनपढ़। तो सोनिया फिर से सिंह को किंग बनाएंगी। न्यूक डील आगे बढ़ी, तो राजनीतिक गलियारों में 'सिंह इज किंग' की चर्चा जोरों पर। कांग्रेस के फील गुड के तीन कारण। पहला- ग्रामीण रोजगार गारंटी। दूसरा- आरटीआई। तीसरा- एटमी करार। जैसे विकास की गंगा बहाकर बीजेपी फील गुड के रथ पर सवार थी। वैसे ही अब कांग्रेस। पर दूध के जले जेटली बता रहे थे- 'वोट इन तीनों मुद्दों पर नहीं, अलबत्ता महंगाई के मुद्दे पर होंगे।' चुनाव में क्या मुद्दा बनेगा। अभी क्या अटकल लगाएं। अमेरिका में अपन ने देख ही लिया। शुरू हुआ था- जंग के मुद्दे पर। अब आकर खड़ा है अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर। एटमी करार से अमेरिका की आर्थिक हालत सुधरेगी। यह चुनावी मुद्दा रिपब्लिकन पार्टी को चुनाव जिता भी सकता है। सो अब रिपब्लिकन का जोर वोटरों को रिएक्टरों-यूरेनियम की मलाई दिखाने पर। मलाई कहीं एनएसजी के बाकी देश न खा जाएं। सो कोंडालीसा राइस ने घुड़की दी- 'भारत हमारे सौदे दूसरे देशों को न दे। अमेरिकी कांग्रेस से झंडी का इंतजार करे।' यों तो आस्ट्रेलिया ने भी अंगूठा दिखा दिया। कहा- 'हम एनपीटी पर दस्तखत के बिना यूरेनियम नहीं देंगे।' पर अमेरिकी घुड़की से सरकार तो ठिठक गई। प्रणव दा बोले- 'हम एनएसजी के पासपोर्ट पर पहला वीजा वन-टू-थ्री के बाद ही मांगेंगे।'
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