मुलायम की चिंता दूर कर दी अमर सिंह ने। बुश प्रशासन की चिट्ठी से मुलायम घबरा गए थे। मनमोहन से मुलाकात कर अमर सिंह बोले- 'नेता जी नाहक ही घबरा गए। मनमोहन को हम कांग्रेस का नेता नहीं मानते। जो भरोसा न करें। उनने पीएम के नाते संसद से नाता किया है- देश की सुरक्षा से सौदा नहीं करेंगे। सो भरोसा न करने वाली कोई बात नहीं।'
तो क्या अमर सिंह चार दिन की दोस्ती में ही परेशान हो गए। जो उनने कांग्रेसी नेताओं को भरोसे लायक नहीं माना। शुक्रवार को उनने कुछ और भी कड़वी-कड़वी बातें की। जैसे बोले- 'कांग्रेस को एक दर्जन से ज्यादा सीटें नहीं देंगे। कांग्रेस की यूपी में औकात इतनी ही। चालीस सीटों वाले बिहार में लालू ने चार दी थीं। उस हिसाब से अस्सी सीटों वाले यूपी में कांग्रेस को आठ मिलनी चाहिए।' याद है, अपन ने तो दो सितंबर को ही लिखा था- भले ही दिग्गी राजा कितना दावा करें। 'पर अपन को सहमति नहीं दिखती।' दिग्गी राजा ने ज्यादातर सीटों पर सहमति का दावा किया था। शुक्रवार को उस दावे की हवा अमर सिंह ने निकाल दी। पर आज बात सपा-कांग्रेस की नहीं। आज बात न्यूक्लियर डील की। एनएसजी के छह देशों- आयरलैंड, आस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड, नार्वे, नीदरलैंड ने मनमोहन सरकार की हवा निकाल दी। गुरुवार को एनएसजी की दूसरी मीटिंग शुरू हुई। तो अमेरिका का नया ड्राफ्ट भी काम नहीं किया। यों नए ड्राफ्ट में एक नई बात थी- 'अगर कोई देश न्यूक टेस्ट की शिकायत करे। तो एनएसजी फौरन मीटिंग बुलाएगी। मेंबर देश मीटिंग में फैसले तक ईंधन की सप्लाई रोक देंगे।' इस नए ड्राफ्ट से भी साफ इशारा- 'भारत ने न्यूक टेस्ट किया। तो सप्लाई रुक जाएगी।' पर यूरोप के छह देश नहीं माने। उनने मांग रखी- भारत को छूट के प्रस्ताव वाले ड्राफ्ट में साफ जोड़ा जाए- 'न्यूक टेस्ट करते ही सप्लाई अपने आप बंद हो जाएगी।' एनएसजी के तेवर देख अमेरिका ने आधी रात को समझाया- 'भारत न्यूक टेस्ट नहीं करने का बयान जारी करे।' सो शुक्रवार को वही हुआ। बचाव में वाजपेयी की वही नीति काम आई। जो उनने 1998 में न्यूक टेस्ट के बाद बनाई थी। न्यूक टेस्ट पर खुद की ओर से लगाई गई रोक। अपने प्रणव दा ने बयान जारी किया- 'भारत न्यूक टेस्ट पर प्रतिबंध लागू रखेगा। एनपीटी मकसद को आगे बढ़ाने में मददगार होगा। भारत संवेदनशील एटमी टेक्नोलॉजी का प्रसार नहीं करेगा। एटमी हथियारों की होड़ में शामिल नहीं होगा। हमने सामरिक स्वायत्तता का हमेशा जिम्मेदारी से पालन किया।' प्रणव दा का बयान गौर से पढ़ा जाए। तो अपने सामरिक कार्यक्रम को ठप्प करने का ऐलान। यही तो आशंका बीजेपी और लेफ्ट को हमेशा से रही। तीन अगस्त 2007 को जब वन-टू-थ्री का ड्राफ्ट जारी हुआ था। अपन ने तो तभी लिखा था- 'अपनी सुरक्षा और ऊर्जा अमेरिका की मोहताज।' अब हू-ब-हू वही होने लगा। धीरे-धीरे सारी पोल खुलने लगी। झूठ सात दरवाजे तोड़कर बाहर आने लगा। तो अपने प्रकाश जावड़ेकर ने कहा- 'सरकार ने पारदर्शिता नहीं दिखाई। पता नहीं अमेरिका से कितने वादे कर चुकी है। सब जनता को बताने चाहिए।' इधर प्रणव दा सामरिक कार्यक्रम ठप्प करने का बयान दे रहे थे। तो उधर वियना में अपने नुमाइंदे लंच ब्रेक के वक्त छह देशों को समझा-बुझा रहे थे। एक तरह से यह समझिए- लल्लो चप्पो कर रहे थे। मनमोहन-प्रणव दा की धुकधुकी बंधी हुई थी। छह देशों को लगातार फोन लग रहे थे। यों मनमोहन से ज्यादा बुश परेशान। अमेरिकी चुनाव से पहले करार करने पर आमादा। एनएसजी के बाद अमेरिकी कांग्रेस का भी फच्चर। भारत से एटमी करार हो गया। तो रिपब्लिकन उम्मीदवार मैककेन को फायदा होगा। मनमोहन भले ही करार को भारत के हक में कहें। पर असलियत कुछ और। करार से अमेरिका की खराब होती अर्थव्यवस्था सुधरेगी। पचास हजार करोड़ का सौदा तो तीन साल में होगा। शुक्रवार को मैककेन बाकायदा रिपब्लिक उम्मीदवार हो गए। अब बाराक ओबामा से लड़ाई तगड़ी होगी। सो ओबामा ने भी तलवार की धार तीखी कर ली। बुश की सारी नीतियों पर हमला शुरू। पाकिस्तान बुश का लाड़ला था। सो शुक्रवार को ओबामा ने पाक पर रणनीतिक हमला बोला। कहा- 'पाक भारत पर हमले की तैयारी में।'
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