अजय सेतिया / अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार का गठन हो गया है । सरकार में 33 मंत्री हैं , जैसी की उम्मीद थी एक भी महिला मंत्री नहीं है । अलबत्ता मंगलवार को जब सरकार बन रही थी महिलाओं पर लाठीचार्ज हो रहा था क्योंकि वे अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहीं थी । तालिबान के नेताओं में मतभेद थे , जिन्हें दूर करने आईएसआई चीफ़ हनीफ़ अफ़ग़ानिस्तान गए थे । वह हक्कानी नेटवर्क को सरकार में शामिल करवाने में कामयाब रहे । तालिबानी मंत्रियों में ज़्यादातर हाल ही के सालों ख़ूँख़ार आतंकी थे । कुछ तो अभी भी अमेरिका की ओर से घोषित आतंकी हैं । अमेरिका 20 साल पहले अल क़ायदा को तबाह करने के इरादे से अफ़ग़ानिस्तान आया था । तब की तालिबान सरकार को अपदस्थ कर के नई निर्वाचित सरकार बनवाई थी । 2001 की तालिबान सरकार में हक्कानी नेटवर्क के आतंकी नहीं थे । लेकिन अब बनी नई तालिबान सरकार में तो हक्कानी नेटवर्क भी शामिल हो गया है, जो अल क़ायदा के बाद दुनिया का सबसे ज़्यादा ख़ूँख़ार आतंकी संगठन है । घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी सराजुद्दीन हक्कानी तालिबान सरकार में गृहमंत्री बनाए गए हैं । तो अमेरिका ने क्या हासिल किया । दो महीने बाद जब 9/11 की बीसवीं सालगिरह होगी । तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन अपनी जनता को क्या जवाब देंगे । यह कि अफ़ग़ानिस्तान में पहले से भी ज़्यादा खुंखार सरकार बना आए । पहला सवाल तो यह पैदा होता है कि 20 साल बाद भी अमेरिका ने तालिबान से बात करने का फ़ैसला क्यों किया । अल क़ायदा को समर्थन और संरक्षण देने वाले तालिबान से बातचीत करने के बजाए पंजशीर के शेर अहमद मसूद और उप राष्ट्रपति सालेह को मज़बूत क्यों नहीं किया । जिस ने 1996 से 2001 तक तालिबान को पंजशीर में घुसने नहीं दिया था । अमेरिका ने क्यों पाकिस्तान जेल में क़ैद तालिबान नेता मौलाना बरादर को बातचीत के लिए चुना था । क्या वह बरादर को प्रधानमंत्री बनवाना चाहता था । अमेरिका तो इस में फेल हो गया । क्योंकि तालिबान के बाक़ी नेताओं ने उन्हें स्वीकार नहीं किया । आख़िर तालिबान के आमिर अखुंडजादा प्रधानमंत्री बनाया गया । मुल्ला बरादर को कार्यकारी प्रधानमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा । लेकिन सब से बड़ी बात यह कि इक्कीसवाँ सदी में महिलाओं की ग़ुलामी शुरू हो गई है । और इस के लिए अमेरिका ज़िम्मेदार है, जो महिलाओं की बराबरी और मानवाधिकारों की बात करता है । पाकिस्तान ने जिस तरह पंजशीर जीतने में तालिबान की मदद की , उसमें भी अमेरिका की मिलीभगत लगती है । क्योंकि अमेरिका ने सब कुछ जानते हुए भी उस पाकिस्तान पर भरोसा किया , जो पिछले 20 साल से उसे दगा देकर तालिबान को समर्थन दे रहा था । पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सरकार बनवा ली । चीन और रुस भी तालिबान सरकार को समर्थन दे रहे हैं । चीन ने तो सीपीईसी प्रोजेक्ट में काबुल को शामिल करने की पेशकश कर के तालिबान को समर्थन कर दिया है । चीन , पाकिस्तान और तालिबान का गठबंधन दुनिया के लिए नए ख़तरे की घंटी है । यह तय माने कि भारत के लिए आने वाला समय चुनौती भरा होगा ।
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