अजय सेतिया / 21 अगस्त का अपना कालम देखें, अपन ने सवाल उठाया था कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो जाने के बाद भी उस का प्रमुख हिबतुल्लाह अखुंदजादा कहीं दिखाई नहीं दे रहा | 2016 में अख्तर मंसूर के अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद पाकिस्तान में हुई तालिबानियों की एक मीटिंग में उन्हें प्रमुख चुना गया था | अपनी आशंका यह थी कि वह पाकिस्तान की जेल में हो सकता है | पर अब तालिबान ने खुद बताया है कि वह शुरू से ही कंधार में है और जल्द ही जनता के सामने आएगा | लेकिन तालिबान का यह दावा गलत भी हो सकता है की वह हमेशा से ही कंधार में था , क्योंकि उसे 2016 में पाकिस्तान में हुई मीटिंग में चुना गया था | उस के बाद उस के अफ्गानिस्तान आने की संभावना न के बराबर है | खैर तालिबान का अपने शीर्ष नेताओं को पर्दे के पीछे रखने का इतिहास रहा है | तालिबान जब 1990 के दशक में सत्ता में था तब संगठन के प्रमुख नेता मुल्ला उमर भी कभी कभार ही काबुल की यात्रा करते थे | हिबतुल्लाह अखुंदजादा पाकिस्तानी तालिबान का भी सलाहाकार बताया जाता है |
अपन शुरू से लिखते रहे हैं कि तालिबान का अगला निशाना पाक अधिकृत कश्मीर के रास्ते कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को तेज करने का होगा | अपन ने 19 अगस्त को लिखा था कि “ पकिस्तान के आतंकी संगठनों जैश, लश्कर और हक्कानी नेटवर्क का तालिबान से सीधा ताल्लुक रहा है | कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान और चीन तालिबान से संबध बना कर भारत के लिए मुश्किल खडी कर दें | “ अभी 27 अगस्त को भी अपन ने तालिबान से भारत को खतरे की बात उठाई थी | पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा अफगानिस्तान से लगती है और यही भारत के लिए सब से बड़ी चिंता की बात होनी चाहिए | अगर नेहरू ने 1948 में युद्ध विराम की जल्दबाजी नहीं की होती तो भारत की सीमाएं अफगानिस्तान से लगती और अपन अपनी सीमाओं की बेहतर रखवाली कर सकते थे | अपन को भूलना नहीं चाहिए कि पिछली तालिबान सरकार के समय दिसंबर 1999 में आतंकवादियों ने अपने साथी मसूद अजहर को छुडवाने के लिए विमान अपहरण कर के अफगानिस्तान की धरती का ही इस्तेमाल किया था |
अपनी आशंका अभी से सही साबित होने लगी है | इंटेलीजेंस एजेंसियों ने कहा है कि अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद कम से कम छह आतंकी गुटों ने कश्मीर घाटी में घुसपैठ की है और उनके एजेंडे में कुछ 'बड़े टारगेट' हैं | खबर यह है कि विभिन्न एजेंसियों की ओर से मिले इस इनपुट को अब मल्टी एजेंसी सेंटर से 'मिलान' किया जा रहा है | ऐसे संकेत हैं कि करीब 25-30 आंतकियों ने पिछले एक महीने से सुरक्षा बलों को 'इंगेज' कर रखा है | यह संख्या जम्मू-कश्मीर में पहले से ही मौजूद आतंकवादियों के अलावा है | जमीनी स्तर पर सामने आए तथ्य बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में पिछले एक महीने में हिंसक घटनाएं भी बढ़ी हैं | लगभग हर दिन या तो सुरक्षा बलों पर आईईडी अटैक हुआ है या राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया गया है | जिन में भाजपा और अपनी पार्टी के नेता शामिल हैं |
सच यह है कि लांचपेड्स पर आतंकी गतिविधयां बढ़ी हैं , जिन्हें इसी साल फरवरी में संघर्ष विराम के बाद सुनसान छोड़ दिया गया था | ये स्थान अब आतंकी गतिविधियों के केंद्र बन रहे हैं | हालांकि घाटी में सुरक्षा को लेकर सेना की 15वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल डी पी पांडेय ने दावा किया है कि तालिबान के अफगानिस्तान पर 'कब्जे' का यहां कोई असर नहीं पड़ेगा | सेना की तरफ से ऐसे ही बयान की उम्मींद की जानी चाहिए , लेकिन देश के राजनीतिक नेतृत्व को चिंता करनी चाहिए कि हमारे पडौस में अगर इस्लामिक कट्टरवाद पनपता है तो उस का सीधा असर भारत पर पड़े बिना नहीं रहेगा | तालिबान इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान को अपना दूसरा घर बता चुका है और पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पार्टी की प्रवक्ता नीलम यह कह चुकी हैं कि तालिबान कश्मीर पर कब्जे के लिए पाकिस्तान की मदद करेगा | भारत को इन घटनाकर्मों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए , कबूतर के आँखे बंद करने से बिल्ली का खतरा खत्म नहीं होता है |
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