अजय सेतिया / हालांकि इस खबर की पुष्टि नहीं हुई , लेकिन कहीं से कोई खंडन भी नहीं आया है कि अफगानिस्तान एयरफोर्स की पहली महिला पायलट साफिया फिरोज को पत्थर मार मार कर मार दिया गया है | वह पिछले पांच साल से अफगानिस्तान एयरफोर्स में पायलट के तौर पर तालिबानियों के खिलाफ लड रही थी | 1990 में जब रूस की सेनाएं वापस चली गई थी और अफगानी सरदार आपस में लड रहे थे तो साफिया का परिवार काबुल से भाग कर पाकिस्तान चला गया था , जहां उस का बचपन शरणार्थी के तौर पर बीता था | महिलाओं को आज़ादी बरकरार रखने के अफगानी दावे के बावजूद महिलाएं और महिलाओं को नौकरी देने वाले बेहद खौफ में हैं | आरटीए नाम के एक पश्तो टीवी चेनल की मशहूर एंकर शबनम डावरा जब गुरूवार को अपनी ड्यूटी पर गई तो उसे घर वापस भेज दिया गया | बाकी की महिला एंकरों को भी घर लौटना पड़ा |
लोगों के मन में 1996 से 2001 के तालिबानी शासन के दौरान सार्वजनिक तौर पर महिलाओं को कोड़े मारने, स्टेडियम-चौराहों पर फांसी देने और पत्थर मारने जैसी बर्बरता की पुरानी यादें अभी भी ताजा हैं | 2001 में तालिबान शासन खत्म होने के बाद पिछले दो दशक में काबुल और इसके आसपास बड़ी संख्या में व्यूटी पार्लर खुले हैं | 15 अगस्त को तालिबानी लड़ाकों की जैसे ही काबुल में एंटी हुई , इन सेलून में से एक ने अपनी आउटडोर वाल की पुताई कर | इस दीवार पर महिला को दुल्हन की ड्रेस में मुस्कुराते हुए दिखाया गया था | जब तालिबान के फाइटर्स सड़क पर गन लेकर पेट्रोलिंग कर रहे थे, उसी दौरान एक अन्य बंद सैलून के पास की दीवार पर महिला मॉडल्स के चित्र को ब्लैक स्प्रे पेंट से 'ब्लर' कर दिया |1996 से 2001 के तालिबानी शासन के दौरान लड़कियों को स्कूल जाने की भी इजाजत नहीं थी | कोई महिला घर से बिना पुरुष के अकेले बाहर नहीं निकल सकती थी |
अपन ने कल लिखा था की भारत के कूटनीतिज्ञ प्रधानमंत्री को भरोसा दे रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का विरोध शुरू होगा , इस लिए अभी देखो और इन्तजार करो की रणनीति अपनाई जाए | लेकिन उधर तालिबानियों ने भारतीय दूतावास को घेर लिया था | बड़े उच्च स्तरीय वार्तालाप के बाद ही बुधवार को दूतावास के कर्मचारियों और राजदूत टंडन को वापस लाया जा सका | मंगलवार रात को सीसीएस की बैठक में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार को आदेश दिया था कि एक एक भारतीय को अफगानिस्तान से सुरक्षित लाया जाए और वहां रह रहेअफगानी हिन्दुओं और सिखों को भी सुरक्षित लाया जाए | हालांकि यह एक अच्छी खबर भी आई है कि तालिबानियों ने एक गुरूद्वारे में जा कर सिखों को आश्वासन दिया कि उन के साथ किसी तरह का बुरा बर्ताव नहीं होगा | याद रहे कि 1996 से 2000 तक अफगानी सिखों को बड़े पैमाने पर पलायन करना पड़ा था | नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हीं शरणार्थी सिखों को क़ानून में रियायत देने के लिए नागरिकता संशोधन क़ानून पास करवाया था |
जहां तक तालिबान का विरोध करने की बात है , तो कुछ छिटपुट खबरें आई हैं , काबुल में तालिबान के खिलाफ एक जुलुस भी निकला है और अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने तालिबान के खिलाफ लड़ाई का बिगुल बजाते हुए दुनिया भर मदद भी माँगी है | 1990 में जब सोवियत सेनाएं अफगानिस्तान छोड़ गईं थी तो दो साल तक विभिन्न अफगानी सरदारों में आपसी संघर्ष होता रहा था | तब अहमद शाह अब्दाली ने तालिबान के खिलाफ लंबी लड़ाई लडी थी | अफगान नेशनल रेजिस्टेंस फ़्रंट के नेता अहमद मसूद ने कहा है कि 'मुजाहिदीन लड़ाके एक बार फिर से तालिबान से लड़ने को तैयार हैं | उन के पास बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद है | मसूद के अलावा अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने भी तालिबान के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है | ऐसी सूचना है कि सालेह और मसूद के बेटे पंजशीर में तालिबान के मुकाबले के लिए गुरिल्ला मूवमेंट के लिए इक्कठे हो रहे हैं | पंचशीर वैली 1990 के सिविल वार में कभी भी तालिबान के हिस्से में नहीं आई और न ही इससे एक दशक पहले इसेसोवियत संघ जीत पाया था | .
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