अजय सेतिया / अपन ने कल जब संसद के गतिरोध में नीतीश कुमार के नए दांव पर लिखा था | तो अपन ने यह भी लिखा था कि नीतीश कुमार को एक बार प्रधानमंट्री मेटीरियल होने का भ्रम हो गया था | पर अपन को यह नहीं पता था कि नीतीश कुमार को एक बार फिर से प्रधानमंत्री मेटीरियल होने का भ्रम पैदा हो गया है | तभी उन्होंने पेगासस मुद्दे पर विपक्ष की लाईन अपनाते हुए संसद में चर्चा की मांग रखी है | मोदी सरकार पेगासस के मुद्दे को फालतू का मुद्दा बना कर खारिज कर चुकी है | तो उस मुद्दे को महत्वपूर्ण बता कर मोदी सरकार के खिलाफ स्टेंड लेना राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है | नीतीश कुमार ने सिर्फ पेगासस मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ स्टेंड नहीं लिया है | जनगणना के मुद्दे पर भी मोदी सरकार के खिलाफ स्टेंड लिया है | जदयू ने जाति आधारित जनगणना की माग की है | |
जाति आधारित आखिरी जनगणना 1931 में हुई थी | अंग्रेजों ने हिन्दुओं में फूट डालने के लिए जनगणना करवाई थी | 1941 में ब्रिटिश सरकार का सारा ध्यान दुसरे विश्व युद्ध पर था | इस लिए जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जाहिर नहीं किए गए | आज़ादी के बाद 1951 में पहली जनगणना के समय गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जाति आधारित जनगणना का विरोध किया | उन्होंने कहा कि जाति आधारित जनगणना से देश का ताना बाना बिगड़ जाएगा | पटेल जैसे राष्ट्रवादी नेता इसीलिए कांग्रेस में पिछड़ गए थे | फूट का जो बीज अंग्रेजों ने बोया था , उसे आज़ादी के बाद समाजवादियों और कांग्रेस ने खूब काटा | हिन्दुओं में फूट डाल कर मुस्लिम परस्ती की राजनीति कर 1998 तक बेरोकटोक राज किया |
हर दस साल बाद जब भी जनगणना होती है , जाति आधारित जनगणना की मांग उठती है | इस बार नीतीश कुमार ने लीडरशिप अपने हाथ में कर मोदी के सामने नई मुश्किल पैदा की है | जबकि यही नीतीश कुमार 2001 में मौन थे , जबकि उस समय वह खुद केंद्र सरकार में मंत्री थे | नीतीश कुमार के साथ विपक्ष के तो सारे नेता हैं ही , एनडीए के अठावले और भाजपा की पंकजा मूंडे भी हैं | उन के पिता गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र में भाजपा के दिग्गज नेता थे | जब वह जीवित थे तो वह भी जाति आधारित जनगणना की मांग करते रहे थे | अठावले और मुंडे दोनों ही अनुसूचित समुदाय से आते हैं | जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनगणना तो होती ही है | फिर एनडीए के दोनों नेता किस की राजनीति कर रहे हैं |
इस बार जब सरकार और विपक्ष में कई मोर्चों पर टकराव है तो जाति आधारित जनगणना बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है | गलती एनडीए ने खुद की है | 2019 के लोकसभा चुनावों से आठ महीने पहले 31 अगस्त 2018 को तब के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कह दिया था कि जनगणना में ओबीसी का डाटा इक्कठा किया जाएगा | हालांकि जनगणना रजिस्ट्रार ने तब भी खंडन किया था कि इस तरह का कोई फैसला हुआ है | आरएसएस जाति आधारित जनगणना का हमेशा विरोध करता रहा है | संघ परिवार को 70 साल लगे जातिवाद के बीज का नाश करने में | रामजन्मभूमि आन्दोलन के बाद जब हिंदुत्व की राजनीति शुरू हुई तो जातिवाद पर ब्रेक लगी | इसी ब्रेक की वजह से भाजपा अपने बूते पर सत्ता में है | इस का एहसास गैर भाजपा दलों को 1992 के बाद से होने लगा था | इसी लिए 2010 में जातिवादी राजनीतिक दलों ने मनमोहन सिंह पर 2011 में जाति आधारित जनगणना का दबाव बनाया था | ताकि अंग्रेजों वाली फूट करो, राज करो वाली नीति जारी रखी जाए | यह कांग्रेस को भी स्यूट करता था | इसलिए मनमोहन सिंह मान भी गए थे | लेकिन प्रणब मुखर्जी जैसे कांग्रेसी नेताओं ने इस का विरोध किया | उन्होंने पार्टी फोरम पर सरदार पटेल की बात याद दिलाई थी |
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