अजय सेतिया / यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को किसानों से वर्च्युअल बात करने के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए साफगोई से स्वीकार किया कि दूसरे दौर की कोविड लहर का मुकाबला करने में संसाधनों की कुछ कमी रह गई थी , जिन्हें अब पूरे मनोयोग से पूरा किया जा रहा है | सभी विभागों के सारे संसाधन एक साथ झोंक दिए गए हैं , तीनों सेनाओं को भी लगा दिया गया है, भारत संक्रमण के खिलाफ यह जंग जरुर जीतेगा | दूसरे दौर की आहट को सही समय पर नहीं सुनने और पिछले साल बनाई गई टास्क फोर्सों की अज्ञानता का खामियाजा सारे देश को भुगतना पड़ा है | महाराष्ट्र, केरल , कर्नाटक और दिल्ली का शायद ही कोई परिवार बचा हो जिस ने मौत को करीब से ना देखा हो | देश के बाकी हिस्सों में भी कोविड लहर ने प्रकोप फैलाया , अब तो लहर गावों की तरफ भी पहुंच रही है , जिस के कितने भयानक नतीजे निकलेंगे , अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती | डेढ़ महीने में सरकारी रिकार्ड के मुताबिक़ ही सवा लाख के करीब लोग मौत का शिकार हो चुके हैं , यूपी, बिहार , मध्य प्रदेश में जिस तरह नदियों से लाशें मिल रही हैं , उस से अनुमान लगाया जा सकता है कि लोग कितने मरे होंगे |
नदियों नहरों से मिल रही लाशों से यह भी अनुमान भी लगाया जा सकता की रिश्तों की डोर कितनी कमजोर हो गई है और मानवता किस मोड़ पर आ कर खडी है | इस बीच देश के सामने एक नई समस्या आन खडी हो गई है , जिस की तरफ केंद्र सरकार के बाल कल्याण मंत्रालय , राज्यों के बाल कल्याण मंत्रालयों , राष्ट्रीय और राज्यों के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों , जिला कार्यक्रम अधिकारियों , जिला प्रोबेशन अधिकारियों , जिला बाल कल्याण समितियों और बाल मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों को मिल कर काम करना पड़ेगा | बच्चों के सम्बन्ध में केन्द्रीय , राज्यों और जिला स्तर पर जितनी जल्दी टास्क फोर्सों का गठन हो जाए उतना अच्छा होगा | स्कूलों के बंद होने कारण छोटे बच्चों की हम उम्र बच्चों से दूरी बढी है जिस कारण वे मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं | तो दूसरी ओर देश भर से खबरें आ रही हैं कि कोविड संक्रमण से माता पिता दोनों की मौत के कारण सैकड़ों बच्चे अनाथ हो रहे हैं | यह समस्या तभी से शुरू हो जाती है जब संक्रमण का शिकार हो कर माता-पिता अस्पताल में भर्ती होते हैं | घरों में अकेले रह गए या बुजुर्ग दादा दादी के साथ रह रहे बच्चों की तुरंत देखभाल की जरूरत होती है |
केंद्र सरकार ने अस्पतालों के लिए नया प्रोटोकाल जारी किया है , जिस के मुताबिक़ भरे जाने वाले फ़ार्म में उन के बच्चों की उम्र सहित जानकारी देना अनिवार्य होगा और किसी अनहोनी की सूरत में बच्चों का ध्यान परिवार का कौन सदस्य रखेगा , इस सम्बन्ध में भी फ़ार्म में भरना होगा , ताकि ऐसी अनहोनी की सूरत में केंद्र और राज्य सरकारें सम्बन्धित रिश्तेदार को जिम्मेदारी सौंप कर सरकारी सहायता उपलब्ध करवा सकें | मध्यम वर्ग परिवारों के बच्चों के साथ शायद तुरंत सहायता की ऐसी जरूरत न होती हो , लेकिन गरीब परिवारों के बच्चों को तुरंत सहायता की जरूरत होती है | अगर ऐसे गरीब परिवारों के बच्चे बड़ी तादाद में अनाथ होते हैं तो बच्चों के लिए काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सामने आना पड़ेगा | “एसओएस विलेज” जैसी संस्थाएं अनाथ बच्चों के लिए पहले से बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं | उन की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाएगी | सरकारों की जिम्मेदारी अभी से बढ़ गई है , इस में वैसी कोताही नहीं होनी चाहिए , जैसी दूसरे दौर की तैयारी में की गई |
अच्छी बात यह है कि कुछ राज्य सरकारों ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देना शुरू कर दिया है | मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्र शेखर राव ने ऐसे अनाथ बच्चों के लिए 5000 रूपए प्रतिमाह के अनुदान का एलान किया है | उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीर्थ सिंह रावत ने भी 2000 रुपए प्रतिमाह का एलान किया है , दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बच्चों को कोरा आश्वासन दिया है कि वे फ़िक्र न करें , उन की फ़िक्र करने के लिए वह मौजूद हैं | यह आश्वासन कितना असंवेदनशील है कि जैसे वह बच्चों के साथ अनहोनी की कल्पना कर रहे हों | जिन बच्चों के माता पिता दोनों अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं , फौरी तौर पर उन के समय पर भोजन और उन्हें विचलित नहीं होने देने की जिम्मेदारी परिजनों और अडौस पडौस पर आती है | आंगनवाडी और आशा कार्यकर्ताओं को भी ऐसे बच्चों की निगरानी करनी चाहिए | जिला बाल कल्याण समितियों , जिला प्रोबेशन अधिकारियों और जिला कार्यक्रम अधिकारियों को भी अस्पतालों से तालमेल बना कर डाटा तैयार रखना चाहिए ताकि अनहोनी होने पर बिना विलम्ब बच्चों को सरकारी मदद पहुंचाई जा सके | अस्पतालों से डाटा लेने के बाद इन अधिकारियों को उन के घरों में सम्पर्क कर बच्चों की देखभाल की पुष्टि भी चाहिए |
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