क्रांतिकारी कदम तब होगा जब प्रधानमंत्री केबिनेट से प्रस्ताव पास करवा कर सारा बजट स्थगित कर दें | केंद्र सरकार के कर्मचारियों का साल 21-22 का वेतन आधा कर दिया जाए | स्वास्थ्य , शिक्षा, कृषि , विज्ञान एंव प्राद्योगिकी और रक्षा मंत्रालय को छोड़ कर बाकी सारे विभागों का बजट निलम्बित कर के स्वास्थ्य विभाग में स्थानांतरित किया जाए | देश के सभी जिलों में सभी सुविधाओं से सम्पन्न 100 से 500 बिस्तरों तक के सरकारी अस्पताल बनाए जाएं , ज्यादा आबादी वाले जिलों में दो-दो अस्पताल बनाए जाएं , जिन में गैस प्लांट भी हों |
अजय सेतिया
पता नहीं कितने लोगों को याद होगा कि फरवरी में जब देश में चुनावों का बुखार चढ़ गया था , नेताओं ने मास्क उतार फेंकें थे , राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता पांच राज्यों की सडकों पर धूम मचा रहे थे , बड़ी बड़ी रेलिया शुरू हो गई थी | मास्क है जरूरी और दो गज की दूरी को देश भूल गया था , तब एक सज्जन नक्कारखाने में तूती बजा रहा था | उस का नाम था डा. फ्तुहीद्दीन और वह केरल की कोविड टास्क फ़ोर्स का सदस्य था | उस ने चेतावनी दी थी कि कोरोना कहीं नहीं गया है , इस तरह चुनावों में सारे एह्तिहातों को छोड़ देना बहुत भारी पड़ेगा | नक्कार खाने में तूती की आवाज कोई नहीं सुनता और किसी ने नहीं सुनी |
अब याद करिए कि पिछले साल 18 जून को रोजाना संक्रमण का अनुपात प्रतिदिन 11 हजार था , तब पूरा देश एहतिहात बरत रहा था | अगले साठ दिन यह बढ़ कर प्रति दिन 35 हजार तक चला गया था | अब इस का मुकाबला दूसरे दौर से करें , जो दस फरवरी को शुरू हुआ , तो उस दिन संक्रमण 11 हजार था , अगले 60 दिन यानी 11 अप्रेल तक प्रतिदिन का औसत 22 हजार था | लेकिन उस के अगले दस दिन यानी 11 अप्रेल से 21 अप्रेल का प्रतिदिन का औसत 90 हजार हो गया | जो अब 4 लाख प्रतिदिन से ज्यादा चल रहा है | तो सवाल खड़ा होता है कि दस फरवरी को भारत सरकार की कोविड टास्क फ़ोर्स क्यों नहीं जागी , दस फरवरी और उस के बाद भी भारत सरकार का वैज्ञानिक सलाहाकार वीके पाल क्यों सोया रहा |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसी ने सूचना दी या नहीं , अगर सूचना दी तो उन्होंने किसी को तैयारियों के लिए कहा या नहीं कहा | क्या यह टास्क फ़ोर्स का काम नहीं था कि वह दूसरे दौर के प्रभाव का अंदाज लगाती और उसी के हिसाब से आक्सीजन और अन्य दवाईयों की जरूरतों का एक अनुमान लगा कर तैयारियां शुरू की जाती | क्या प्रधानमन्त्री को गम्भीरता से अवगत करवाया गया था , अगर करवाया गया था , तो क्या उन्होंने गम्भीरता से नहीं लिया | क्या यह गम्भीरता इतनी नहीं समझी गई थी कि चुनावों को टाल कर कोविड से निपटने की तैयारियों में जुटा जाता | प्रधानमंत्री पाँचों राज्यों के चुनाव टालने के लिए पहल करते , वह सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाते और उन्हें आसन्न खतरे से अवगत करवाते | राजनीतिक दल नहीं मानते तो आज वे सभी कटघरे में होते , सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी नहीं |
सितम्बर 2020 में संक्रमण का प्रतिदिन औसत 90 हजार था , जो जनवरी 2021 में 20 हजार हो गया था , यह सब सिर्फ एहतिहात का नतीजा था , लेकिन इस का मतलब यह नहीं था कि कि बिना सख्त नियम बनाए और बिना किसी रोकथाम के कुंभ शुरू कर दिया जाए और पांच राज्यों के चुनाव करवा दिए जाएं | पहली बात तो यह है कि कुंभ और चुनाव दोनों रोके जाने चाहिए थे , चार राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल खत्म होने पर छह महीनों के लिए राष्ट्रपति राज लगाया जा सकता था | सत्ता के लिए चुनावों को इंसान की जिंदगी से ज्यादा महत्वपूर्ण मान लिया गया | चुनावों के दौरान भी इस तरह खुला खेल फरूखाबादी न होता और रैलियों पर रोक लगा दी जाती तो संक्रमण की इस रफ्तार को रोका जा सकता था | चुनाव आयोग लगातार चेतावनी देता रहा लेकिन प्रधानमंत्री समेत किसी ने भाषणों में मास्क का इस्तेमाल नहीं किया तो हजारों लाखों की भीड़ क्यों करती |
नतीजा हमारे सामने है , साठ साल बाद भारत दुनिया के सामने उसी तरह भीख का कटोरा ले कर खड़ा है , जैसा 1960 में अमेरिका के सामने गेहूं के लिए कटोरा ले कर खड़ा था | आज सारी दुनिया भारत को आक्सीजन और दवाईयों की मदद पहुंचा रही है , लेकिन हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि मई महीने के अंत तक काबू आते दिखाई नहीं देते | हर रोज चार हजार लोग कोविड से मर रहे हैं , इन में से आधे से ज्यादा सिर्फ आक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं | इस बीच अनैतिकता का नंगा नाच भी हुआ है , डाक्टरों और कैमिस्टों ने दवाईयों के मनमाने दाम वसूल किए , 700 रूपए का आक्सीमीटर 2500 में बिका | 500 रूपए का गैस सिलेंडर ब्लैक में 10 हजार का मिला | दिल्ली से लुधियाना एम्बुलेंस का किराया 1,20,000 रूपए वसूले जाने का शर्मनाक वाकया भी सब के सामने आया | प्राईवेट अस्पतालों और ब्यूरोक्रेसी ने मिलकर फर्जी बेड बुकिंग कर के आम आदमी के साथ जो छल किया , उस का उदाहरण भी बेंगलुरु और नोयडा में सामने आया |
अभी खतरा यह है कि मई के आखिर में दूसरा दौर खत्म हो गया तो इसी सितंबर से तीसरी और फिर चौथी लहर की भविष्यवानियाँ भी हो रही हैं , जो मौजूदा लहर से भी भयानक हो सकती है | इस लिए इस स्वास्थ्य आपातकाल में कुछ अपरम्परागत कदम उठाने की जरूरत है , नरेंद्र मोदी को यह साहस दिखाना चाहिए कि वह परम्पराओं को तोड़ कर क्रांतिकारी कदम उठाएं | प्रधानमंत्री ने यह अहम फैसला लेकर शुरुआत की है कि पीएम केयर फंड से देश के हर जिले में आक्सीजन प्लांट लगाने का एलान किया है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है | क्रांतिकारी कदम तब होगा जब प्रधानमंत्री केबिनेट से प्रस्ताव पास करवा कर सारा बजट स्थगित कर दें | केंद्र सरकार के कर्मचारियों का साल 21-22 का वेतन आधा कर दिया जाए | स्वास्थ्य , शिक्षा, कृषि , विज्ञान एंव प्राद्योगिकी और रक्षा मंत्रालय को छोड़ कर बाकी सारे विभागों का बजट निलम्बित कर के स्वास्थ्य विभाग में स्थानांतरित किया जाए | देश के सभी जिलों में सभी सुविधाओं से सम्पन्न 100 से 500 बिस्तरों तक के सरकारी अस्पताल बनाए जाएं , ज्यादा आबादी वाले जिलों में दो-दो अस्पताल बनाए जाएं , जिन में गैस प्लांट भी हों | जहां जिला स्तर पर सभी सुविधाओं से सम्पन्न सरकारी अस्पताल बनें , वहीं ब्लाक स्तर पर खून जांच केंद्र और एक्सरे जैसी सुविधाओं वाले स्वास्थ्य केंद्र बनाए जाने चाहिए | यह काम एक साल के भीतर होना चाहिए |
सरकार को अब यह समझ में आ जाना चाहिए कि स्वास्थ्य को प्राईवेट अस्पतालों और इंश्योरेंस कम्पनियों के हवाले करना कितनी बड़ी भूल थी | इंश्योरेंस कम्पनियों और प्राईवेट अस्पतालों की लूट के धंधे में ब्यूरोक्रेसी शामिल थी | जिस ने स्वास्थ्य का सारा सरकारी ढांचा बर्बाद कर दिया | अब उस भूल को जितनी जल्दी सुधारा जाए , उतना ही ठीक है | सभी प्राईवेट अस्पतालों को आदेश दिया जाए कि आने वाले छह महीनों के अंदर वे अपने खुद के आक्सीजन प्लांट लगाएंगे , अन्यथा उन का लाईसेंस रद्द किया जाए | भविष्य में कोई अस्पताल बिना आक्सीजन प्लांट के खोलने की इजाजत न दी जाए |
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