कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी बेहद खफा दिखे। खफा दिखे- बीजेपी ने उन्हें आतंकियों का चीयर्स लीडर क्यों कहा। इसका जवाब अरुण जेटली ने बाखूबी दिया। वह बोले- 'मुस्लिम तुष्टिकरण अब पुरानी बात हो गई। कांग्रेस अब अलगाववादियों-आतंकवादियों का तुष्टिकरण करने लगी।' यह बात अपन ने तेईस अगस्त को लिखी ही थी।
कांग्रेस को अपना नफा-नुकसान समझ नहीं आ रहा। मनीष तिवारी सोमवार को भी आडवाणी के खिलाफ खूब बोले। बोले- 'एमएफ हुसैन की पेंटिंग पर हमला आडवाणी को पीएम बनवाने में लगे लोगों ने किया।' अपन को समझ नहीं आया। कांग्रेस को अचानक एमएफ हुसैन पर प्यार क्यों उमड़ आया। हुसैन से इतना ही प्यार था। तो प्रगति मैदान में चल रही प्रदर्शनी में हुसैन की पेंटिंग क्यों नहीं लगवाई। यह प्रदर्शनी मनमोहन सरकार के कल्चर डिपार्टमेंट ने लगवाई है। शायद मनीष तिवारी भूल गए। कम्युनिस्ट 'सहमत' ने प्रदर्शनी यूपीए सरकार के खिलाफ लगाई थी। देवी-देवताओं की नंगी पेंटिंग्स बनाने वाले हुसैन से कांग्रेस कितनी सहमत। यह मनीष तिवारी को खुद पता नहीं। उनने एक बार कहा- 'संघ परिवारियों को उनकी उम्र का भी ख्याल नहीं। मजबूरी में उन्हें विदेश रहना पड़ रहा है।' पर जब पूछा- 'होम मिनिस्टरी- कल्चर मिनिस्टरी सुरक्षा मुहैया क्यों नहीं करवाती।' तो जुबान फिसल गई। बोले- 'सुरक्षा मुहैया करवाने को तैयार हैं। पर वह खुद ही न आना चाहें, तो सरकार क्या करे।' पर बात एमएफ हुसैन की नहीं। हुसैन तो एक बहाना था। आडवाणी असली निशाना था। बोले- 'पहले तो आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ की। वह फार्मूला नहीं चला। तो पुराने तेवरों पर आ गए। जम्मू में श्राइन बोर्ड को जमीन के लिए हाईकोर्ट में अर्जी लगवाई। तो चेन्नई में सेतु समुद्रम के मुद्दे पर हाईकोर्ट में अर्जी लगाई। दोनों जगहें उत्तर और दक्षिण में सांप्रदायिक तनाव के लिए।' बोलते-बोलते जुबान फिर फिसल गई। बोले- 'ऐसा लगता है, जैसे हाईकोर्ट में अर्जी गवर्नर एस के सिन्हा ने ही लगवाई हो। अर्जी का आखिरी पैराग्राफ इसका सबूत। कहो तो, अर्जी दिखा दूंगा।' मनीष तिवारी प्रवक्ता बने। तो अपन ने तारीफ के पुल बांधे थे। पर इतना कंफ्यूज कांग्रेस का कोई प्रवक्ता अपन ने पहले नहीं देखा। अर्जी आडवाणी ने दाखिल कराई या गवर्नर एस के सिन्हा ने। तिवारी कंफ्यूजियाए, तो पूरी तरह कंफ्यूजियाए। रौ में आए। तो वामपंथियों पर भी गुर्राने लगे। बोले- 'नब्बे और दो हजार के दशक में हरकिशन सिंह सुरजीत ने सांप्रदायिकता विरोधी ताकतों को एकजुट किया। पर यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद वामपंथी सांप्रदायिक ताकतों को मजबूत करने लगे।' जब इसका कोई उदाहरण पूछा। तो बोले- 'यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेना ही सांप्रदायिकता को मजबूत करना।' जब पूछा- 'देवगौड़ा और गुजराल से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस ने सांप्रदायिकता को मजबूत किया या कमजोर?' तो चेहरे का रंग देखने लायक बन गया। बोले- 'उस समय की परिस्थितियां अलग थीं।' तो किसी ने कहा- 'इस समय भी परिस्थितियां अलग थीं।' आम तौर पर जर्नलिस्ट ऐसे नहीं घेरते। पर सोमवार को बुरी तरह घिर गए अपने मनीष तिवारी। रही-सही कसर अरुण जेटली ने निकाली। वह बोल रहे थे- 'जम्मू के हालात पर। कांस्टटयूशन क्लब के एक सेमिनार में।' बोले- 'जवाहर लाल नेहरू की गलतियां अब सामने आने लगी। नेहरू ने यह कहकर जम्मू कश्मीर को भारत में पूरी तरह नहीं जोड़ा- वक्त के साथ मजबूती आ जाएगी। अब हालात यह- लोग कहने लगे हैं- कश्मीर अलग होता है तो होने दो।' जेटली बोले- 'कांग्रेस वोट बैंक के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण से आगे बढ़ गई। अब आतंकवादियों के तुष्टिकरण पर उतर आई।' उनने कहा- 'जम्मू की समस्या बीजेपी ने नहीं। अलबत्ता कांग्रेस ने खड़ी की। कांग्रेस की सहयोगी पीडीपी ने खड़ी की। जो आज कश्मीर में दोनों देशों की करंसियों की वकालत कर रही है। कल दोनों देशों की संप्रभुता की वकालत करेगी।'
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