ममता साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के भरोसे

Publsihed: 05.Mar.2021, 18:24

अजय सेतिया / बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली अच्छी खासी सीटों के बाद नरेंद्र मोदी ने महिलाओं को भाजपा का साईलेंट वोट बैंक बताया था | अब ममता बेनर्जी को महिला वोट बैंक से ज्यादा खतरा महसूस हो रहा है , इस लिए उस ने 51 महिलाओं को तृणमूल का टिकट दे कर चुनाव मैदान में उतार दिया है | इस के बाद 42 मुसलमानों को टिकट देकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की भूमिका तैयार कर दी है | भाजपा से एक कदम आगे चलते हुए ममता बेनर्जी ने एक साथ 294 में से 291 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस के उम्मीन्द्वारों का एलान करटे हुए नंदीग्राम को मैदान-ए-जंग भी घोषित कर दिया | उन्होंने भवानीपुर सीट छोड़कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का एलान किया है , जहां इस समय तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए शुभेंदू अधिकारी विधायक हैं | दोनों ने एक दुसरे को चुनौती दी थी , अब भाजपा के पास कोई और विकल्प ही नहीं है | शुभेंदू अधिकारी को ही ममता के सामने खड़ा करना होगा , और भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीन्द्वार घोषित करने को भी मजबूर होगी |

इसी नंदीग्राम को जंग-ए-मैदान बना कर ममता बेनर्जी और शुभेंदू  अधिकारी ने दस साल पहले बंगाल को कम्युनिस्टों के 34 साल पुराने शासन से नेस्तनाबूद किया था | उस से पहले नंदीग्राम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ था | बुद्धदेव सरकार ने 2007 में नंदीग्राम को स्पेशल इकनामिक जोन बना कर सलीम ग्रुप को केमिकल हब के लिए भूमि अधिग्रहन का एलान किया था | भूमि अधिग्रहण के खिलाफ ममता बेनर्जी और शुभेंदु अधिकारी ने भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का गठन किया , जिसमें कांग्रेस , जमात-ए-उलेमा-ए-हिन्द और एसयूंसीआई शामिल थे | बुद्धदेव भट्टाचार्य की वामपंथी सरकार ने किसानों से बात करने की बजाए हिंसा का सहारा लिया, 14 मार्च 2007 की रात को सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने पुलिस की मदद से भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे 14 किसानों की हत्या कर दी गई थी | वही कम्युनिस्ट शासन के अंत का कारण बन गया |

ममता बेनर्जी ने 2011 का चुनाव मां,माटी और मानुष का नारा लगा कर कम्युनिस्ट शासन को उखाड़ फैंका था | जिस नंदीग्राम ने ममता बेनर्जी और शुभेंदू अधिकारी को सत्ता के गलियारों में पहुंचाया था , उसी नंदीग्राम में अब दोनों आमने सामने होंगे | शुभेंदू अधिकारी ने 2016 यहाँ कुल मतदान के 87 प्रतिशत वोटों के साथ सीपीएम के अब्दुल कबीर को 81,230 वोटों से हराया था | इसीलिए उन्होंने ममता को नंदीग्राम में चुनाव लड़ने की चुनौती देते हुए कहा था कि वह उन्हें 50 हजार वोटों के अंतर से हराएंगे | ममता ने शुभेंदू की चुनौती स्वीकार करते हुए पहले दोनों सीटों से चुनाव लड़ने का एलान किया था | लेकिन भाजपा ने ताने मारना शुरू क्र दिया कि वह डर कर दो सीटों से लद रही है | लेकिन अब ममता ने सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का एलान किया है और भवानीपुर से शोभनदेव भट्टाचार्य को उम्मीन्द्वार बना दिया है |

अब सवाल पैदा होता है कि ममता बेनर्जी ने किस बूते पर शुभेंदू अधिकारी की नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की चुनौती स्वीकार की | तो इस का एक बड़ा कारण यह है कि मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाली ममता बेनर्जी को नंदीग्राम के 70 हजार मुस्लिम वोटों के एकमुश्त मिलने का भरोसा है , जो पहले तृणमूल कांग्रेस और वामपंथियों में बंटते रहे हैं | लेकिन ममता बेनर्जी का 70 हजार मुस्लिम वोटों के आधार पर शुभेंदू अधिकारी की चुनौती स्वीकार करना निश्चित ही नंदीग्राम को हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला बना देगा , क्योंकि अगर साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुविकरण होता है तो 70 हजार मुस्लिम वोटरों के मुकाबले 2 लाख हिन्दू वोटर हैं | नंदीग्राम में दूसरे चरण में पहली अप्रेल को मतदान होना है |

अब एक दूसरा सवाल भी है कि ममता बेनर्जी ने भवानीपुर क्या सिर्फ भाजपा की तानेबाजी के कारण छोड़ दिया, जहां से वह पिछले दस साल से विधायक थी | इस के पीछे की कहानी कुछ और कहती है , जहां मुख्यमंत्री बनने के बाद सहयोगी विधायक की ओर से छोडी गई भवानीपुर सीट पर वह उपचुनाव में 95 हजार के भारी भरकम अंतर से जीती थी , वहीं 2016 में दीपा दासमुंशी के मुकाबले पर जीत का अंतर सिर्फ 25 हजार रह गया था | इस बार खतरा कुछ ज्यादा था क्योंकि भाजपा को बाहरी बताने वाली ममता को पता था कि भवानीपुर में 50 हजार मतदाता बाहरी हैं , भले ही 45 हजार मुस्लिम वोटर उन्हें सुरक्षित करने में भूमिका निभाते , लेकिन भाजपा 50 हजार बाहरी और 90 हजार बंगाली हिन्दुओं का समीकरण बना रही थी , बस कोई प्रभावशाली उम्मीन्द्वार आसानी से पटकनी दे सकता था |

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