राहुल गांधी की इंदिरा बनने की कोशिश

Publsihed: 03.Mar.2021, 21:23

अजय सेतिया / कांग्रेस में घमासान तो चल रहा है , लेकिन देश उसके घमासान में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा | इस के दो कारण हैं , पहला तो यह कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में दस साल चली मनमोहन सरकार की करतूतों ने कांग्रेस को नफरत लायक बना दिया है | दूसरा –सोनिया ने बीमार होने के कारण पार्टी की कमान छोड़ते समय राजनीतिक तौर से अपरिपक्व अपने बेटे राहुल गांधी को पार्टी पर थोंप दिया | वह 15 साल से राजनीतिक प्रशिक्षु ही बने हुए हैं | उन का हर जुमला उन की अपरिपक्वता की झलक देता है | वह खुद को कांग्रेस का नेतृत्व करने लायक साबित नहीं कर सके | 2019 में काग्रेस की दूसरी बार कमर तोड़ शर्मनाक हार के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था | तभी कांग्रेस के 23 वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं ने सोनिया को चिठ्ठी लिख कर पार्टी में लोकतंत्र की आवाज़ उठाई थी | चिठ्ठी को गांधी परिवार ने अपने खिलाफ माना और दस्तखत करने वाले सभी नेताओं को किनारे करना शुरू किया |

कहा जा सकता है कि जी-23 का नेतृत्व करने वाले राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलामनबी आज़ाद को राज्यसभा में फिर से लाने का इंतजाम इसी लिए नहीं किया गया | सफाई यह दी जा रही है कि सोनिया गांधी उन्हें किसी राज्य से लाने की स्थिति में नहीं थी | लेकिन यह सच नहीं है , कोई सीट खाली करवा कर महाराष्ट्र या राजस्थान से लाया जा सकता था | वह पहले भी महाराष्ट्र से सांसद रह चुके हैं | राज्यसभा से उनकी विदाई के समय जब नरेंद्र मोदी ने उनकी तारीफ़ करते हुए आँसू बहाए और गुलामनबी ने भी जवाबी आँसू बहाए तो लोगों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि वह अब भाजपा का रूख करेंगे । लेकिन अपना आकलन था और अब भी है कि गुलामनबी किसी हालत में भाजपा में नहीं जाएँगे, भले ही उन्हें कश्मीर में अपनी पार्टी के पक्ष में इस्तेमाल करने के लिए मोदी ऐसा चाहते हों ।

संसदीय राजनीति से फिलहाल की विदाई के बाद उन का जम्मू में स्वागत किया गया | इसी बहाने उन्होंने जी-23 के साथी कांग्रेसियों को जम्मू बुला कर सब को केसरिया पगड़ियां पहनवा दी | वहीं पर नरेंद्र मोदी की सादगी और पृष्ठभूमि की तारीफ़ कर के गुलामनबी 10 जनपथ वफादारों के निशाने पर आ गए हैं | जम्मू में ही उन के खिलाफ प्रदर्शन किया गया और पुतला फूँका गया | दस जनपथ के नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले कांग्रेसियों के खिलाफ इस तरह के हमले इंदिरा गांधी के समय से होते रहे है | 1969 में जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सिंडिकेट बनाया था , तो इंदिरा ब्रिगेड ने उन के खिलाफ इसी तरह के प्रदर्शन किए थे | अंतत: 1971 आते आते कांग्रेस दो फाड़ हो गई थी | कुछ लोग आज की तुलना उस समय से कर सकते हैं , आप जी-23 को सिंडिकेट और दस जनपथ समर्थकों को इंडिकेट कह सकते हैं | लेकिन अब एक फर्क है , तब सिंडिकेट की घोषित लड़ाई इंदिरा गांधी के खिलाफ थी , जबकि अब कोई खुल्लमखुल्ला अक्षम राहुल गांधी के खिलाफ नहीं बोल रहा , जो अध्यक्ष नहीं होने के बावजूद वरिष्ठ नेताओं से अध्यक्ष की तरह व्यवहार कर रहा है |

गांधी परिवार जानता है कि वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी में लोकतंत्र का मुद्दा क्यों उठाया है , इसी लिए राहुल गांधी ने जवाब भी दिया है कि उन्होंने खुद युवा कांग्रेस में चुनाव की शुरुआत की थी | देश में धारणा बन चुकी है कि सोनिया परिवार कांग्रेस का नेतृत्व किसी अन्य को नहीं सौंपना चाहता | इसलिए दस जनपथ के वफादारों ने उन्हें 1969 की याद दिलाते हुए मंत्र दिया  है कि इंदिरा गांधी ने विचारधारा की लड़ाई बना कर कम्युनिस्टों और समाजवादियों को अपने साथ जोड़ कर सिंडिकेट को परास्त किया था | अब राहुल गांधी को भी नेतृत्व के सवाल से ध्यान हटाने के लिए विचारधारा की लड़ाई तेज करनी चाहिए | जी-23 को बचाव की मुद्रा में लाने के लिए राहुल गांधी ने हाल ही में दो बयान दिए हैं | पहला- आपातकाल को इंदिरा गांधी का गलत फैसला बताना , जी-23 के बुजुर्ग नेता आपातकाल के समर्थक थे | दूसरा- गरीबी की बात करना और गरीबों के मुद्दे उठाना | तीसरा – नेहरु और इंदिरा के पदचिन्हों पर चलते हुए आरएसएस के खिलाफ मोर्चा खोलना ताकि भाजपा–संघ विरोधी पार्टियां उन्हें भाजपा-संघ के खिलाफ लड़ने में सक्षम मान ले |

पहले वह गांधी हत्या में संघ को घसीटा करते थे , उस मामले में वह कोर्ट से जमानत पर हैं | इस बार उन्होंने खुद को बचाते हुए आरएसएस की ओर से चलाए जा रहे सरस्वती शिशु मंदिरों की तुलना मदरसों से कर दी है | खुद को मुसलमानों के आक्रोश से बचाने के लिए राहुल गांधी ने मदरसों का जिक्र करते ही पाकिस्तान का नाम ले लिया , जबकि भारत के मदरसों में क्या हो रहा है , उस का कई बार खुलासा हो चुका है | वैसे राहुल गांधी अब कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब मुखर्जी को भी मौजूदा सिंडिकेट में मान सकते हैं , क्योंकि प्रणब डा देहांत से पहले आरएसएस वार्षिक कार्यक्रम में जा कर संघ के शिशु मंदिर जैसे सामाजिक कार्यों की तारीफ़ कर गए हैं |

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