अजय सेतिया / कांग्रेस को शायद समझ ही नहीं आ रहा कि वह कर क्या रही है | तीनों कृषि कानूनों को बिना बहस या जल्दबाजी में पास किए जाने पर उस का एतराज सही हो सकता है | फिर भी वह क़ानून को काला नहीं कह सकती , क्योंकि इन तीन में से दो कानूनों का वायदा तो खुद कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में किया था | कृषि मंत्री ने राज्यसभा में पूछा भी था कि इस में काला क्या है, वह बताओ | प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए लोकसभा में कहा था कि कांग्रेस क़ानून के कलर की बात करती है , इंटेंट और कंटेंट की बात नहीं करती | लेकिन इन सब कटाक्षों और बयानबाजियों के बीच महत्वपूर्ण यह है कि तीनों क़ानून बाध्यकारी नहीं है , इसलिए आन्दोलन की बात समझ नहीं आती | सरकार किसानों से जबरदस्ती कोई नील की खेती नहीं करवा रही कि कांग्रेस आन्दोलन का समर्थन कर रही है |
आन्दोलन के पीछे का रहस्य जाने बिना राहुल गांधी हर रोज समर्थन में ट्विट करते रहे | 26 जनवरी की घटना के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं को राहुल गांधी पर नकेल डालनी चाहिए थी , उन्हें कहना चाहिए था कि 26 जनवरी की घटना की जांच होने तक वह अपना मुहं बंद रखें , लेकिन वह बेलगाम हो कर अभी भी किसान आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं | 26 जनवरी की घटना से साफ़ था कि पंजाब के किसान किसी बड़ी साजिश का शिकार हो चुके हैं , यह साजिश पाकिस्तान, कनाडा और कई अन्य देशों से रचे जाने की आशंका पैदा हो गई थी | इस की बजाए लालकिले की प्राचीर से फेसबुक लाईव करने वाले दीप संधू को भाजपाई एजेंट बता कर 26 जनवरी की घटना की गम्भीरता कम करने की कोशिश की गई |
राजनीति कम से कम 4 फरवरी को तो रूक जानी चाहिए थी , जब ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आन्दोलन का समर्थन करते हुए गलती से वह टूलकिट भी नत्थी कर दी थी , जिस में आन्दोलन की पूरी रेखा का तिथिवार ब्योरा था , टूलकिट में लालकिले पर ट्रेक्टर रैली की योजना से ले कर अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों से दुनिया भर में ट्विट सुनामी लाने की रणनीति भी शामिल थी | यह टूल किट सार्वजनिक होते ही षडयंत्रकारियों के होश उड़ गए थे, दो घंटे के भीतर टूल किट हटा दी गई थी | इस के बावजूद राहुल गांधी टस से मस नहीं हुए , गुलामनबी आज़ाद जैसे सच्चे देशभक्त मुसलमानों ने भी उन्हें नहीं समझाया कि मामला गम्भीर होता जा रहा है , जरा धैर्य रखें | अलबत्ता राहुल गांधी की बहन प्रियंका भी किसान आन्दोलन में कूद पड़ी |
जब ग्रेटा थनबर्ग का टूलकिट सामने आया था , तब अपन ने 7 फरवरी के अपने कालम –“ईसाई मिशनरी-कम्यूनिस्ट साजिश” में लिखा था-“ पुलिस के लिए साजिश की तह तक पहुंचना आसान तो नहीं , लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं , सम्भवत ग्रेटा थनबर्ग के ट्विट भारत से ही जारी होते हैं |” पुलिस जांच में आखिर वही सच निकल रहा है , बेंगुलुरु की पर्यावरणवादी दिशा रवि की गिरफ्तारी के साथ मुंबई की वकील निकिता जैकब और पुणे के इंजीनियर शांतनु के वारंट से जाहिर हो गया है कि खालिस्तानियों , कम्युनिस्टों और ईसाई मिशनरियों की मिलिभक्त वाली इस टूलकिट के तार भारत से ही जुड़े थे |” अपन ने अपने इस कालम में कम्युनिस्टों और ईसाई मिशनरियों को इस लिए जोड़ा था क्योंकि मोदी सरकार के बनाए नए एफसीआरए क़ानून से इन दोनों विचारधाराओं के एनजीओ की कमर टूटी है |
टूलकिट बनाने में निकिता जैकब और शांतनु मुलुक की भूमिका थी | टूल किट बनाने से पहले 11 जनवरी को इन दोनों की खालिस्तान का समर्थन करने वाली संस्था पोईटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ ज़ूम एप पर मीटिंग हुई थी | इस मीटिंग का उद्देश्य दिल्ली के किसान आन्दोलन को दिशा देना और बड़ी बड़ी हस्तियों का इस्तेमाल कर के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करना था | किसान आन्दोलन का समर्थन कर रही वामपंथी विचारधारा की पर्यावरणवादी दिशा रवि के माध्यम से पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग से सम्पर्क साधा गया था | टूलकिट हालांकि 4 फरवरी को लीक हुई , लेकिन टूलकिट के मुताबिक़ ही 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली से लालकिले पर डायरेक्ट एक्शन हो चुका था | तैयारी और क्रियान्वयन के लिए शांतनु मुलुक 20 से 27 जनवरी तक खुद दिल्ली में धरना स्थल पर था और योगेन्द्र यादव के सम्पर्क में था |
अब तो गलती से जारी हुई टूलकिट के बाद दिशा रवि और और ग्रेटा थनबर्ग की टेलीग्राम एप पर ही वह बातचीत भी जाहिर हो गई है , जिस में दिशा ने घबरा कर कहा कि हम पर भारत के आतंकवाद विरोधी क़ानून यूएपीए के अंतर्गत कारवाई हो सकती है , इसलिए हडबडी में तुरंत वह टूलकिट हटाया गया था | कांग्रेस की आँखें अभी भी नहीं खुली , वह बड़ी मासूमियत से कह रही है कि दिशा रवि सिर्फ 21 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता है | जब तक जांच पूरी न हो , कहना ठीक नही , क्योंकि 21 साल का तो अजमल कसाब और बुरहान वानी भी था |
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