अजय सेतिया / बुधवार के वाकआउट के बाद गुरूवार को राहुल गांधी तैयारी कर के आए थे | प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को कहा था कि विपक्ष कानूनों के कंटेंट और इंटेंट कर नहीं बोल रहा , क़ानून का कलर बता रहा है | इस के जवाब में गुरूवार को राहुल गांधी बजट की बजाए सिर्फ कृषि कानूनों के कंटेंट और इंटेंट पर बोले | तीनों कानूनों पर उन की आपत्तियां वही हैं , जिन का जिक्र अपन पहले करते रहे हैं , जिन्हें किसानों ने भी तीसरी और चौथे दौर की बातचीत में सरकार के सामने रखा था | इन में से एक आपत्ति को तो सरकार भी जायज मानती है और कृषि मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर क़ानून में सुधार का वायदा किया था |
पहला क़ानून किसानों को अपनी फसल मंडियों से बाहर कहीं भी बेचने की छूट वाला है , लेकिन राहुल गांधी ने इसे उलटा किया , उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति देश में कहीं भी अनाज, फल खरीद सकता है | उन की आपत्ति यह थी कि इस से मंडियां बर्बाद हो जाएँगी , सरकार का असल इरादा मंडियों को खत्म करना है ,क्योंकि अगर देश में मंडियों से बाहर अनलिमिटेड खरीदी होगी तो मंडी में जाकर कौन खरीदेगा ? पहले कानून का कंटेंट और इसका लक्ष्य मंडी को खत्म करने का है | पर मोदी ने कल इस का जवाब यह कह कर दे दिया था कि तीनों क़ानून आप्शनल हैं , किसान अपना अनाज और फल मंडियों में ही बेचना चाहें तो वह विकल्प बंद नहीं हुआ है | कानूनों का विरोध कर रहे किसान अगर मंडियों से बाहर अपनी फसल बेचें ही नहीं तो सरकार का क़ानून अपने आप अप्रभावी हो जाएगा |
दूसरे कानून का आपतिजनक कंटेंट है कि बड़े उद्योगपति जितना भी अनाज-फल-सब्जी स्टॉक करना चाहते हैं, कर सकते हैं | इस क़ानून पर अपन भी आपत्ति जताते रहे हैं , क्योंकि इस से मुनाफ़ा खोरी बढ़ेगी | यह क़ानून बनाते समय अगर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ किसानों की जींस का अधिकतम मूल्य घोषित करने की पालिसी का भी एलान करती तो राहुल गांधी या कोई और यह नहीं कह सकता था कि यह क़ानून अंबानी और अडानी को फायदा पहुँचाने के लिए बनाया गया है | विपक्ष की आशंका यही है कि पूंजी के बल पर अडानी असीमित भंडारण करेंगे और अंबानी उसे अपने जियो माल में मनमानी कीमतों पर बेचेंगे | डंकल प्रस्तावों और डब्ल्यूटीओ के विरोध के समय जार्ज फर्नाडिस और स्वदेशी जागरण मंच इस मुद्दे को बड़ी शिद्दत से उठाते रहे हैं | बड़े बड़े उद्धोगपतियों को रोजमर्रा के कंज्यूमर प्रोडक्ट माल में और नेट पर बेचने की इजाजत मिल जाएगी तो ठेले वाले , छोटे व्यापारी, मंडी में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे |
हालांकि इस क़ानून से भंडारण का अधिकार सिर्फ अडानी को नहीं मिल रहा, देश का हर व्यापारी भंडारण कर सकता है , बल्कि किसान खुद भी को-आपरेटिव सोसाइटियां बना कर कोल्ड स्टोरेज बना सकते हैं | अडानी अंबानी को फेवर करने की धारणा को दूर करने के लिए सरकार को दो कदम तुरंत उठाने चाहिए | उपभोक्ताओं के हित में किसानों की फसल का अधिकतम कंज्यूमर मूल्य तय करना शुरू करना चाहिए ताकि बिचौलियों की लूट खत्म हो और किसानों की सोसाइटियां को कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए कर्ज और सब्सीडी की योजना लानी चाहिए ताकि अडानी के भंडारण और अंबानी के बाज़ार पर कब्जे की आशंका दूर हो |
तीसरे कानून का आपत्तिजनक कंटेंट यह है कि कांट्रेक फार्मिंग में कोई विवाद हो जाए तो उस का निवारण एसडीएम और डीएम करेंगे , किसान अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता | राहुल गांधी ने इसे पूंजीपतियों के हक में और किसानों के खिलाफ बताया , क्योंकि पूंजीपतियों के लिए एसडीएम और डीएम जैसे अधिकारियों को पटाना बाएँ हाथ का खेल है | कृषि मंत्री चौथे दौर की बातचीत में क़ानून के इस अंश में सुधार की बात कबूल कर चुके हैं , उन्होंने कहा था कि अदालतों में सालों तक मुकद्दमें लटकते हैं , इस लिए सरकार ने यह प्रावधान रखा था , लेकिन किसान चाहते हैं तो सरकार क़ानून में अदालत जाने का विकल्प भी शामिल कर देगी |
मोदी ने यह तो सच कहा था कि तीनों क़ानून आप्शनल हैं , पर तीनों नहीं , दो क़ानून आप्शनल हैं | मंडियों से बाहर फसल बिक्री और कांट्रेक्ट फार्मिंग | जमाखोरी वाला तीसरा क़ानून न तो आप्शनल है और न उपभोक्ताओं के हित में है | लेकिन राहुल गांधी का यह जुमला किसानों को भडकाने वाला घटिया राजनीति का सबूत है कि मोदी ने किसानों को भूख, बेरोजगारी और आत्महत्या का आप्शन दिया है | किसानों को आत्महत्या का आप्शन तो पिछले तीस साल से कांग्रेस सरकार ने दिया हुआ था | तभी तो तीन दशक से कर्जे में दबे किसान आत्महत्या कर रहे थे | महाराष्ट्र से 1990 में शरद पवार के मुख्यमंत्रित्व काल में किसानों की आत्महत्याओं की खबरें आना शुरू हुई थीं | जो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों सुधाकर राव नाईक , सुशील कुमार शिंदे , विलासराव देशमुख , अशोक चव्हान और पृथ्वी राज चौहान के कार्यकाल में चरम पर पहुंच गई थीं |
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