अजय सेतिया / किसान आंदोलन के नाम पर भारतीय लोकतंत्र को बर्बाद करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश खुलकर सामने आ गई है | नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ चले आन्दोलन के पीछे भी विदेशी साजिश थी , यह बात दिल्ली पुलिस ने पिछले साल 25 जून को अदालत में कही थी | सीएए के खिलाफ आन्दोलन विफल होने बाद विदेशी ताकतें नए मौके की तलाश में थीं , जो उन्हें तीन कृषि कानूनों से मिल गया , जिस के खिलाफ पंजाब के किसान आंदोलित थे | सीएए के खिलाफ मुस्लिम देशों को इस्तेमाल किया गया था | जिन में एक मुस्लिम देश की राजकुमारी भी अभियान में शामिल हुई थी | अब कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आन्दोलन के बहाने साजिश का दायरा बढ गया है | अब अलग अलग देशों की अंतर्राष्ट्रीय सेलिब्रिटीज का इस्तेमाल किया जा रहा है | हालीवुड की गायिका रिहाना , मियाँ खलीफा ,स्वीडन की 18 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के बाद अमेरिकी हिरोइन सुसेन का ट्विट भी इस का प्रमाण है |
ग्रेटा थनबर्ग की टीम ने गलती से अपनी ट्विट के साथ आन्दोलन की सारी रणनीति का प्रारूप ही नत्थी कर दिया था, जिस से भारत और मोदी सरकार विरोधी ताकतों की अंतर्राष्ट्रीय सेलिब्रिटीज के साथ मिल कर रची गई साजिश की पोल खुल गई | इस किट में छह महीने की योजना के साथ यह भी कहा गया था कि आन्दोलन किस तरह चलाया जाना है | 26 जनवरी को ट्रेक्टर रैली के समय पुलिस बेरियर तोड़ने और लालकिले पर खालिस्तान का झंडा फहराने के बाद 4 फरवरी को आन्दोलन के पक्ष में दुनिया भर में ट्विट की बाढ़ लाने का पूरा प्लान था | टूल किट में अंबानी और अडानी के खिलाफ आन्दोलन चलाने के अलावा दुनिया भर में भारतीय दूतावासों पर प्रदर्शन की रूपरेखा भी बताई गई थी | दस्तावेज का शीर्षक था-“ हैशटैग आस्क इंडिया व्हाई ” | भारत को बदनाम करने के इस दस्तावेजी हथियार में किसान आंदोलन को उग्र बनाने का पूरा खाका खींचा गया था |
गलती से डाली गई इस किट को दो घंटे बाद ही डिलीट कर दिया गया | हालांकि भारत के सजग मीडिया ने ग्रेटा थनबर्ग की पहली टूल किट को डाउन लोड कर लिया था | तीन फरवरी की आधी रात को एक बजे के बाद ग्रेटा थनबर्ग ने नए दस्तावेज के साथ नया ट्विट जारी किया , जिस में लिखा गया था कि भारत में जो लोग जमीन पर काम कर रहे हैं , उन्होंने पहले वाला पुराना टूल किट हटा दिया था और अब नया अपडेट किट डाला है , जिसे वह यहाँ नत्थी कर रही है | इस नए टूल किट में भारत विरोधी साजिश और नफरत के वे सारे अंश हटा दिए गए थे | दिल्ली पुलिस ने ग्रेटा थनबर्ग का नाम लिखे बिना पहले टूल किट पर धारा 120 बी , 133 और 153 बी के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कर के जांच काम साईबर सेल को सौंप दिया है , जिस ने गूगल और ट्विटर से सारी जानकारी माँगी है कि टूल किट कहाँ से लोड किया गया था |
बालीवुड में राष्ट्रवादियों की आवाज बन कर उभरी कंगना रानौत ने आरोप लगाया है कि रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग ने भारत विरोधी ट्विट के लिए कम से कम सौ करोड़ रुपए वसूल किए होंगें | कंगना रानौत बेहतर जानती हैं कि सेलिब्रीटीज किसी भी काम के कितने पैसे वसूल करते हैं | यह विज्ञापन की तरह है | वैसे कौन नहीं जानता कि भारत में तो फ़िल्मी सेलिब्रिटीज अनजानों की शादी में जा कर भी करोड़ों वसूलते रहते हैं, अंतर्राष्ट्रीय सेलेब्रिटीज दो कदम आगे ही हैं | एफआईआर दर्ज होने के बाद बृहस्पतिवार शाम 4 बजे ग्रेटा थनबर्ग ने नए ट्विट में लिखा कि –“मैं अभी भी किसानों के साथ खडी हूँ और उन के शांतिपूर्ण आन्दोलन का समर्थन करती हूँ |” 26 जनवरी की घटना को आधार मानते हुए पुलिस को आशंका है कि खालिस्तान समर्थकों ने विदेशी सेलिब्रिटीज को बड़ी राशि दे कर उन का भारत विरोधी अभियान के अंतर्गत इस्तेमाल किया है |
पुलिस के लिए साजिश की तय तक पहुंचना आसान तो नहीं , लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं , सम्भवत ग्रेटा थनबर्ग के ट्विट भारत से ही जारी होते हैं , अमेरिका और यूरोप की अनेक कम्पनियां भारत से ही आनलाईन काम करवाती हैं ,क्योंकि यह सस्ता पड़ता है | लेकिन अपनी आशंका पुलिस से अलग है , अपनी आशंका है कि मोदी सरकार की ओर से ईसाई मिशनरियों पर शिकंजा कसे जाने से परेशान ईसाई मिशनरियों ने किसान आन्दोलन का फायदा उठा कर भारत के कम्युनिस्टों के साथ मिल कर यह साजिश रची है | भारत के कम्युनिस्ट अपनी जमीन खत्म होने के बाद मोदी सरकार के खिलाफ समय समय पर विश्विद्यालयों के छात्रों , मुसलमानों , ईसाईयों और सिखों का इस्तेमाल कर रहे हैं |
इस आशंका की वजह यह भी है कि इसी टूल किट में आरएसएस और भाजपा को फासीवादी सत्ताधारी दल बताया गया था , जो कम्युनिस्टों और ईसाई मिशनरियों की भाषा है | भारत के ज्यादातर एनजीओ भी कम्युनिस्ट विचारधारा के लोग चलाते हैं , जिन सब की विदेशी फंडिंग पर मोदी सरकार ने नकेल डाली है | मोदी सरकार ने एफसीआरए क़ानून को इतना सख्त कर दिया है कि क़ानून का बेजा इस्तेमाल कर विदेशी फंड का भारत विरोधी साजिश के लिए इस्तेमाल करना लगभग नामुमकिन हो गया है | जांच पड़ताल में सितम्बर 2020 तक 6600 से ज्यादा एनजीओ का एफसीआरए लाईसेंस रद्द किया जा चुका है , इन में ज्यादातर ईसाईयों और कम्युनिस्टों के एनजीओ हैं |
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