यूपीए सरकार की एक मुसीबत हो तो बताएं। आखिरी दिनों में कुकरमुत्तों की तरह उग आई मुसीबतें। आखिरी दिनों की मुसीबत कितनी भारी पड़ती है। यह बीजेपी से बेहतर कोई नहीं जानता। आखिरी महीने में प्याज के भाव ने दिल्ली में बीजेपी के आंसू निकाले। यों कांग्रेस की मुसीबतें तो सारी खुद की खड़ी की हुई।
श्राइन बोर्ड को जमीन की मुसीबत हो। शिबू सोरेन के अपनी पर उतर आने की मुसीबत हो। एनएसजी में एटमी करार के विरोध का संकट हो। सब मनमोहन-सोनिया ने खुद बुलाई मुसीबतें। अपन तीनों मुसीबतों का जिक्र तो करेंगे ही। पहले बात कांग्रेसी वकील आरके आनंद की। याद होगा वह दस जनवरी 1999 का वह एक्सीडेंट। तीन पुलिस वालों समेत छह कुचलकर मार दिए। संजीव नंदा चला रहा था वह बीएमडब्ल्यू कार। संजीव पूर्व नौसेना प्रमुख एस एम नंदा का पोता। सो बड़े वकीलों की क्या कमी होती। बचाव पक्ष का वकील बना कांग्रेस का जाना-माना नेता आर के आनंद। नंदा अपने बचाव में कुछ भी खर्च करने को तैयार था। सो आनंद और सरकारी वकील आई यू खान में गिटर-पिटर हुई। चश्मदीद गवाह को खरीदने की बात चली। ढाई करोड़ से पांच करोड़ तक का सौदा पट रहा था। तभी एनडीटीवी ने स्टिंग ऑपरेशन कर डाला। एक्सीडेंट का केस तो अभी पेंडिंग। पर स्टिंग ऑपरेशन का पहला फैसला आ गया। फैसला सुनकर कांग्रेस के होश फाख्ता हो गए। हाईकोर्ट ने दोनों वकीलों को मुजरिम करार दिया। कांग्रेस के होश उड़ने की तीन वजहें। पहली- आर के आनंद कांग्रेसी। दूसरी- खान भी कांग्रेस की मेहरबानी से सरकारी वकील बना था। तीसरी- सांसदों की खरीद-फरोख्त का स्टिंग ऑपरेशन सामने। देश में स्टिंग ऑपरेशन पर पहला अदालती फैसला मुसीबत खड़ी करने वाला। अपन बाकी मुद्दों पर आएं। पहले सांसदों की खरीद-फरोख्त पर बात कर लें। एक करोड़ रुपया टेबल पर रखने वाले संजीव सक्सेना से ज्यादा पूछताछ नहीं हुई। पार्लियामेंट्री कमेटी के चेयरमैन किशोर चंद्र देव ने अमर सिंह को नहीं बुलाया। नाम तो बूटा सिंह के बेटे का भी आया। कमेटी ने उसे भी नहीं बुलाया। पर आरोप लगाने वाले ए बी वर्धन से आरोप का कारण पूछा। सो मीडिया इस नतीजे पर पहुंच चुका- 'जांच कमेटी मामले को रफा-दफा करेगी।' मीडिया की इन खबरों से किशोर चंद्र बेहद खफा। उनने स्पीकर को मीडिया के खिलाफ चिट्ठी लिखी। यों मीडिया से ज्यादा अब घबराहट स्टिंग ऑपरेशन के अदालती फैसले पर। पर असल बात उन तीन मुद्दों की। श्राइन बोर्ड पर कांग्रेस को रास्ता नहीं सूझ रहा। जम्मू का आंदोलन अब देशभर में फैल गया। गुरुवार को दिल्ली में बीजेपी-वीएचपी-आरएसएस ने गिरफ्तारियां दी। अरुण जेटली से लेकर विजय कुमार मल्होत्रा तक गिरफ्तार हुए। गिरफ्तारियों की बात चली। तो जम्मू का किस्सा बताएं। वहां गिरफ्तारी देने वाली हर औरत ने अपना नाम पार्वती बताया। अपने पति का नाम शिव और पता गांव बालताल बताया। सो जंगलात की जमीन कांग्रेस के जी का जंजाल बन गई। अब बात शिबू सोरेन की। वह बीजेपी के दो बागियों को लेकर दिल्ली आ पहुंचे। लालू यादव से मुलाकात और समर्थन का दावा किया। लालू बाद में सोनिया गांधी से मिले। मधु कोड़ा को दिल्ली बुलाए जाने की खबर आई। पर शाम होते-होते लालू ने कहा- 'न तो मैंने शिबू को समर्थन दिया, न शिबू मुझे मिले।' यानी झारखंड के संकट से कांग्रेस की जान आफत में। अब बात तीसरी मुसीबत की। जिसका जिक्र अपन ने कल भी किया था। अपन ने बताया था- 'इराक ने आखिरी वक्त सीटीबीटी पर दस्तखत कर एटमी करार पर मनमोहन सरकार की मुसीबत बढ़ा दी।' अपन ने आस्ट्रिया, आयरलैंड, न्यूजीलैंड का विरोध भी बताया था। गुरुवार को एनएसजी की मीटिंग शुरू हुई। तीनों देशों का विरोध कायम रहा। मीटिंग का पहला सेशन खत्म हुआ। तो शिवशंकर से लेकर श्यामसरन तक की धड़कन बढ़ गई। एनएसजी के सभी 45 देशों को मुखातिब हुए दोनों। अनिल काकोड़कर भी पैरवी में जुटे। तीनों ने बताया- 'भारत कोई वादा खिलाफी नहीं करेगा। ईंधन का दुरुपयोग भी नहीं होने देगा।' पर गुरुवार को बात नहीं बनी। अपन को आज भी बात सिरे चढ़ने की उम्मीद नहीं।
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