अजय सेतिया / दो दिन पहले फिक्की के एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो कुछ हुआ, वह चीन के हित में नहीं है | वह कोई भविष्यवाणी नहीं करना चाहते कि यह तनाव कितना लंबा खिंचेगा या कब तक समाधान निकलेगा | एस. जयशंकर राजनीति में नए नए रंगरूट हैं , इस लिए एक एक शब्द संभल कर बोलते हैं , क्योंकि उन की नौकरी कभी भी जा सकती है | सोचिए उन की जगह पर सुषमा स्वराज होती तो वह क्या कह्र्तीं | वह कहतीं कि चीन आग से खेल रहा है , भारत अब 1962 का नेहरु का भारत नहीं है , यह नरेंद्र मोदी का भारत है | एस. जयशंकर विदेश नीति में नेहरूवादी हैं , उन के पिता के सुब्रहमण्यम हालांकि ब्यूरोक्रेट से रक्षा विशेषग्य बन गए थे , लेकिन थे वह भी नेहरुवादी | इस लिए अपन को नेहरूवाद से बाहर निकल कर वैसे ही सोचना होगा , जैसे अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोचते हैं |
मोदी ने नेहरु की गलतियों को एक एक कर सुधारना शुरू कर दिया है | जम्मू कश्मीर को भारत का अभीन्न अंग बनने में नेहरु की थोंपी हुई रुकावट 370 हटा दी गई है , नेहरु ने सोमनाथ मंदिर का खुद उद्घाटन नहीं किया और राष्ट्रपति के रास्ते में रोड़े अटकाए थे , लेकिन मोदी ने कांग्रेसी सेक्यूलरिस्टों को धत्ता बताते हुए रामजन्म भूमि मंदिर का नींव पत्थर रख दिया | नेहरु की तरह कांग्रेस , वामपंथी दलों और बाकी सनातन विरोधी दलों के भारी विरोध के बावजूद मोदी ने नए सनातन रीति से ही नए संसद भवन का भूमि पूजन किया | यह उसी परम्परा की अगली कड़ी है , जो संसद के गलियारों में लगी पेंटिंग में दर्शाई गई है , जिस में वेद की ऋचाएं और रामायण की कथा अंकित हैं , जिन्हें संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाते हुए भारत की आत्मा के रूप में स्वीकार किया था |
तो क्या मोदी 1962 का बदला लेने के भी मूड में हैं , क्या इसी लिए सेना को 15 दिन के बड़े युद्ध की तैयारी के लिए गोला बारूद खरीदने के अधिकार दे दिए गए हैं | अपन भारत की चीन और पाकिस्तान के साथ एक साथ युद्ध की तैयारियों की चर्चा करें उस से पहले जरा इतिहास की इस बात को समझ लें कि जैसे जम्मू कश्मीर की समस्या नेहरू की देन है , तो क्या चीन के साथ 1950 से चल रहा सीमा विवाद भी नेहरु के कारण है | क्या चीन ने 1960 में मेकमाहोन रेखा को स्वीकार करना मान लिया था | एतिहासिक तथ्य यह है कि नेहरु 1950 में मेक्माहोन रेखा को पूर्वोतर क्षेत्र में भारत-चीन की सुस्पष्ट और सुनिर्धारित सीमा बताते रहे , लेकिन अक्साईचिन को विवादित भी बताते रहे | उन का यह स्टेंड 1959 तक कायम था | लेकिन जब चीन ने मेकमाहोन रेखा को स्वीकार करने का संकेत देते हुए , उसी आधार पर बर्मा से समझौता कर लिया तो नेहरु ने 1960 के शुरू में अक्साईचिन पर दावा ठोक दिया |
अब अक्साईचिन तो हमारे पास है ही नहीं , सारी सीमा पर विवाद बना हुआ है , जबकि उस समय मेकमाहोन रेखा पर ही सीमा विवाद को हल किया जा सकता था, बाद में उस ने कभी भी मैक्माहोन रेखा को नहीं माना | अपनी याददास्त बहुत कमजोर होती है , इस लिए अपन को लगता है कि 5 अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर से 370 हटने और लद्दाख को केंद्र शासित बना देने के कारण चीन भडका हुआ है और सीमा पर विवाद का कारण यह है | जी नहीं , 2008 में भी सितम्बर महीने में लद्दाख में सीमा पर हू-ब-हू ऐसा ही तनाव था , चीन की सेना भारतीय क्षेत्र में घुस आई थी , जिसे मनमोहन सरकार देश से छुपाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन वह छुप नहीं सका था , तब भारतीय जनता पार्टी ने सरकार पर ऐसे हमले नहीं किए थे , जैसे राहुल गांधी अब मोदी पर कर रहे हैं |
लेकिन मोदी की रणनीति न तो नेहरु जैसी है , न मनमोहन सिंह जैसी | मोदी सरकार यह मान कर चल रही है कि इस बार युद्ध हुआ तो वह चीन और पाकिस्तान के साथ एक साथ होगा , क्योंकि बदली अतर्राष्ट्रीय परिस्थियों में पाकिस्तान चीन का दुमछल्ला देश बन गया है | इस लिए मोदी सरकार ने सैन्य बलों को 15 दिनों के बड़े युद्ध के लिए पर्याप्त हथियार और गोला-बारूद का स्टॉक बढ़ाने के आदेश दे दिए हैं | इसके लिए 50,000 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए जा सकते है |
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