अजय सेतिया / अपनी यह पक्की धारणा है कि अदालतें और ब्यूरोक्रेसी समस्याएं सुलझाती कम हैं , उलझाती ज्यादा हैं | अब कृषि सम्बन्धी तीनों कानूनों को ही लें , मोदी सरकार को इस मोड़ पर ब्यूरोक्रेसी ने ला कर खड़ा किया है | मोदी सरकार से अब न उगला जा रहा है, न निगला जा रहा है | पहले 2014 का चुनाव जीतने के कुछ महीनों के भीतर संसद सत्र का इन्तजार किए बिना जनवरी 2015 में भूमि अधिकरण अध्यादेश जारी किए गए और अब दूसरी बार चुनाव जीतने के कुछ महीनों के भीतर कृषि सम्बन्धी तीन अध्यादेश जारी कर के संसद में हंगामें के दौरान पास करवा लिए गए | मोदी सरकार को कृषि भूमि अधिगृहण अध्यादेश वापस लेना पड़ा था और अब हालात ऐसे बन गए हैं कि सरकार को तीनों कृषि क़ानून भी वापस लेने पड़ेगें , क्योंकि किसानों का आन्दोलन विशाल रूप ले चुका है |
जब जून 2020 में अध्यादेश जारी किए गए थे अपन तब से लिखते रहे हैं कि तीनों कृषि क़ानून किसान विरोधी हैं | ब्यूरोक्रेसी ने विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के दबाव और बड़े उद्धोगपतियों के दबाव में ये किसान विरोधी बिल तैयार किए थे | अपन यह बार बार लिखते रहे हैं कि चुनाव जीतने वाले दलों को अपने दल के विभिन्न मोर्चों से सलाह मशविरा कर के क़ानून का ड्राफ्ट तैयार करवाना चाहिए | भारतीय किसान संघ और किसान मोर्चा शुरू से डब्ल्यूटीओ की शर्तों और प्रस्तावों का विरोध करता रहा है | विश्व व्यापार संगठन भारत सरकार पर एमएसपी खत्म करने का दबाव बनाता रहा है , लेकिन वाजपेयी और मनमोहन सिंह सरकारे विश्व व्यापार संगठन के दबाव में नहीं आई थीं | मोदी सरकार भी कह रही है कि एमएसपी खत्म नहीं होगा , लेकिन मंडियों को कमजोर करना एमएसपी को कमजोर करने का कदम है | जबकि अब की बार मक्के और मूंग का एक भी दाना एमएसपी पर नहीं खरीदा गया | क्या गारंटी है कि आने वाले समय में केंद्र सरकार गेहूं और धान की खरीद भी बंद नहीं करेगी |
अपन एक बार फिर तीनों कानूनों की खामियों को समझ लेते हैं |
एमएसपी खत्म होने की आशंका : व्यापारियों पर लगाम लगाने के लिए एपीएमसी एक्ट बनाया गया था | कानून के अनुसार मंडियों का कंट्रोल किसानों के पास होना चाहिए लेकिन वहां भी व्यापारियों ने गिरोह बना के किसानों को लूटना शुरू कर दिया , इस लिए एपीएमसी एक्ट को मजबूत कर के खामियां दूर करने की जरूरत थी , लेकिन सरकार ने नए क़ानून में मंडियों को बेअसर करने के लिए मंडियों से बाहर खरीद फरोख्त के दरवाजे खोल दिए , जिसे किसानों को आज़ाद करना बताया गया , जबकि इस से सरकार एमएसपी की गारंटी से मुक्त होना चाहती है क्योंकि जब खरीद निश्चित स्थानों पर नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पायेगी कि किसानों के माल की खरीद एमएसपी पर हो रही है या नहीं | 2006 में बिहार सरकार ने एपीएमसी एक्ट खत्म कर के किसानों के उत्पादों की एमएसपी पर खरीद खत्म कर दी | उसके बाद किसानों का माल एमएसपी पर बिकना बन्द हो गया जिस से किसानों की हालत खराब होती चली गयी, बिहार में किसानों ने बड़ी संख्या में खेती छोड़ के मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों का रुख किया |
भंडारण की आज़ादी किस के लिए : व्यापारियों की ओर से भंडारण कर के की जाने वाली कालाबाज़ारी को खत्म करने के लिए 1955 में जरूरी वस्तू क़ानून बनाया गया था , जिसमें व्यापारियों पर एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी | अब इस नए क़ानून में आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन और तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा ली गई है | समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती, यानी इस क़ानून से बड़ी कम्पनियों को कालाबाज़ारी की छूट मिलेगी , ये कम्पनियाँ और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बे चेंगे |
बड़ी कम्पनियों के लिए कांट्रेक्ट फार्मिंग : वैसे किसान की मर्जी है कि वह किसी बड़ी कम्पनी के साथ कांट्रेक्ट फार्मिंग का सौदा करे या नहीं , लेकिन यह क़ानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है , जिसमें बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ खेती करेंगी और किसान उसमें सिर्फ मजदूरी करेंगे | यह पश्चिम माडल है , जबकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है , वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है | अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है | पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस लिया | बड़ी कम्पनियों के हितों को ध्यान में रखते हुए क़ानून में विवाद का निपटारा करने का अधिकार प्रसाशनिक अधिकारियों को दे दिया गया , किसान कोर्ट भी नहीं जा सकते |
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