अजय सेतिया / हाथरस में रिपोर्टिंग के लिए जा रहे केरल के पत्रकार की गिरफ्तारी वाली विस्फोटक खबर याद होगी | खबर को जिस तरह हिन्दुओं में जातीय विभाजन के लिए राजनीतिक दलों और मीडिया के आक्रोश पैदा करने वाले एक वर्ग की ओर से तोड़मरोड़ कर पेश किया गया था , वह भी आप को याद होगा | हालांकि जांच अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है | इसलिए अपन दलित लडकी के ठाकुरों के लडकों की ओर से बलात्कार और हत्या की खबर को न सही बता रहे हैं , न गलत बता रहे हैं | लेकिन यह सच है कि जेएनयू में भारत तोड़ो के नारे लगाने वाले , हैदराबाद में रोहित वैमूला की आत्महत्या को जातीय मुद्दा बनाने वाले , भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने वाले , नागरिकता संशोधन क़ानून और नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ दंगे करने वाले हाथरस की तरफ दौड़ पड़े थे इन सब तत्वों ने इस बदनसीब लडकी के गाँव को अपना बंधक बना लिया था | दुनिया के बड़े बड़े अखबारों में भारत की छवि बनाई गई कि भाजपा शाषण वाले राज्यों में ऊंची जाति वाले हिन्दू निम्न जातियों और मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर अमानवीय अत्याचार कर रहे हैं |
तभी यह खबर आई थी कि हाथरस कांड की पीड़िता के घर जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन और उस के तीन साथियों को मथुरा पुलिस ने रास्ते में गिरफ्तार कर लिया | खबरों में यह भी कहा गया था कि कप्पन केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्टस का पदाधिकारी है | मोदी-योगी-भाजपा-संघ विरोधी जाने माने पत्रकारों ने इसे मीडिया की आज़ादी पर हमला भी बताया था , हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताते हुए जिस रिपब्लिक टीवी के प्रधान सम्पादक अर्नब गोस्वामी को जमानत दी है , उस मामले पर मीडिया का यह सारा गैंग चुप्पी साधे हुए था | कप्पन की गिरफ्तारी पर कांग्रेस और वामपंथी दलों ने आसमान सिर पर उठा लिया था , और ऐसे मामलों में कपिल सिब्बल का वकील बन कर आना तय ही होता है , तो मीडिया की आज़ादी पर हमले के बयान देते हुए कपिल सिब्बल वकील बन कर सुप्रीमकोर्ट पहुंचे हुए हैं |
शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की सरकार ने कप्पन के मामले में सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर के मीडिया की आज़ादी पर हमला बताने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया | यूपी पुलिस ने कप्पन के समर्थन में आने वाले राजनीतिक दलों , भारत तोड़ो गैंग के सदस्यों के साथ साथ उन पत्रकार संगठनों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है,जो उस के पक्ष में बयाब दे रहे थे | पुलिस ने अपने हल्फिया बयान में दो बातें कही हैं , पहली तो यह कि सिद्दीक कप्पन खुद को जिस “तेजस”अखबार का रिपोर्टर बता रहा था , वह 2018 में बंद हो चुका है , मजेदार बात यह है कि अखबार भी जेहादी संगठन पीएफआई ही चला रहा था | दूसरी बात यह कि कप्पन पत्रकार नहीं बल्कि पीएफआई की दिल्ली ईकाई का कार्यालय सचिव है, पीएफआई के तीन अन्य नेताओं के साथ साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के लिए हाथरस जा रहा था | वह केरल के इस जेहादी संगठन के शाहीन बाग़ स्थित कार्यालय में ही रहता था | जब एसटीएफ उसे दिल्ली लेकर आई तो उस ने अपने रहने का जो स्थान बताया था , वह भी गलत निकला था | यूपी पुलिस के 82 पेज के हल्फिया बयान ने विभिन्न पत्रकारों और पत्रकार संगठनों के झूठ की पोल खोल कर रख दी है |
कपिल सिब्बल बहुत शोर मचा रहे थे कि सुप्रीमकोर्ट ने पत्रकार को जमानत नहीं दी | चीफ जस्टिस ने कहा कि मीडिया में ठीक रिपोर्टिंग नहीं की गई , इस पर सफाई देते हुए सिब्बल ने कहा कि मीडिया में कई तरह की खबरें छपती रहती हैं | यूपी पुलिस के हल्फिया बयान को पढने के बाद सुप्रीमकोर्ट ने सिब्बल से कहा कि आप को जमानत याचिका दाखिल करने का अधिकार है , पर पहले पुलिस का हल्फिया बयान पढ़ लो फिर जमानत की याचिका दाखिल करो | अब सवाल पैदा होता है कि क्या कपिल सिब्बल इस मामले में पीऍफ़आई की तरफ से पैरवी कर रहे हैं ? लव जेहाद के मामले में भी कपिल सिब्बल पीएफआई के वकील थे और पीऍफ़ आई ने उन्हें 77 लाख रूपए फीस दी थी , अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट को चिठ्ठी लिखने वाले दुष्यंत दवे भी सिब्बल के साथ पीएफआई के वकील थे , जिन्हें पीऍफ़आई ने 11 लाख रूपए दिए थे | एनआईए आतंकवादी जेहादी संगठन पीएफआई की दिल्ली के दंगों में भूमिका की जांच कर रही है | कप्पन के बहाने अब पीएफआई के वकील भी बेनकाब हो जाएंगे |
आपकी प्रतिक्रिया