अजय सेतिया / क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में महाराष्ट्र में मराठी बनाम गैर मराठी हो गया है | शायद अपन ने इस एंगल से पहले सोचा नहीं | बात पालघर से शुरू करें तो मरने वाले दोनों साधू गैर मराठी थे , जबकि सारे हत्यारे मराठी थे , जिन की न सिर्फ तुरंत जमानत हो गई , बल्कि मराठी गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पालघर के अपराधियों का यह कहते हुए बचाव किया कि भीड़ ने बच्चा उठाने वाले साधू समझ कर उनकी हत्या की | सुशांत सिंह राजपूत भी गैर मराठी थे, जिन की मौत को उद्धव ठाकरे की मराठी सरकार और मराठी पुलिस ने जानबूझ कर उतनी गंभीरता से नहीं लिया और गृहमंत्री अनिल देशमुख ने बिना किसी जांच ही आत्महत्या कह दिया | सुशांत सिंह राजपूत की हत्या के पीछे ड्रग माफिया का हाथ होने की आवाज उठाने वाली कंगना रनौत भी गैर मराठी थी , शिव सेना के मराठी सांसद के इशारे पर मुम्बई महानगर पालिका ने उन के स्टूडियो के हिस्से को अदालत खुलने से पहले तडके ही गिरा दिया |
पूरा एक हफ्ता बर्बाद करने के बाद सोमवार को महाराष्ट्र हाईकोर्ट के दो मराठी जजों ने अर्नब गोस्वामी को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि वह सेशन कोर्ट में जा सकते हैं | हालांकि अपन को तो यह शुरू से ही लगता था कि हाईकोर्ट जाना गलत था , जिस जज ने गिरफ्तारी को गैर कानूनी कहा था उसी की अदालत में याचिका दाखिल की जानी चाहिए थी | दोनों जज याचिका दाखिल किए जाते वक्त 5 नवम्बर को ही यह बात कह सकते थे कि सेशन कोर्ट में जाएं , लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया , अब जब सोमवार को अपना फैसला सुनाया तो सेशन जज को भी यह कहते हुए चार दिन तक लटकाने का संकेत दे दिया कि वह चार दिन में जमानत का फैसला करे | इसलिए अपन को लगता है कि महाराष्ट्र एक बार फिर मराठी बनाम गैर मराठी वाले टकराव वाले दौर में पहुंच गया है | अपनी बढती अलोकप्रियता के कारण उद्धव ठाकरे शिव सेना की पुराणी मराठी बनाम गैर मराठी राजनीति करना चाहते हैं |
वरिष्ट पत्रकार आरती टिकू सिंह को आशंका है कि देश के सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी को जेल में हत्या हो सकती है और जैसा कि महाराष्ट्र के एक मंत्री ने कहा था अर्नब की हत्या को आत्महत्या बताया जा सकता है | अर्नब गोस्वामी ने सोमवार को तलोजा जेल ले जाते हुए कहा कि “ मुझे जान का खतरा है, मुझे सुबह पुलिस स्टेशन में मारा और घसीटा गया | सुबह जेलर ने मुझे मारा, मैंने आग्रह किया मुझे प्लीज वकील से बात करने दीजिए | मुझे बोला गया बात नहीं करने देंगे , मैं भारत की जनता से कह रहा हूं मेरी जान को खतरा है |” राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी को यह खतरा दिखाई दे रहा है , इस लिए उन्होंने अर्नब की सुरक्षा के लिए अनिल देशमुख को फोन कर के आगाह किया है |
अपन अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के मुद्दे की मेरिट पर नहीं जाते , आत्महत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने का यह मामला 2018 का है | आर्किटेक्ट एवं इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां ने 2018 में आत्महत्या की थी | अपने सुसाईड नोट में अन्वय ने लिखा था कि अर्नब गोस्वामी , फिरोज शेख और नितीश सरदा ने उन का 5 करोड़ का बिल नहीं दिया और आर्थिक तंगी के कारण वह आत्महत्या कर रहे हैं | अपन इस केस की मेरिट नही जानते , यह पत्रकारिता का मामला नहीं है | जांच में महाराष्ट्र पुलिस इस नतीजे पर पहुंची थी कि आत्महत्या के लिए उकसाने का यह मामला सही नहीं है क्योंकि अर्नब गोस्वामी का मीडिया हाउस तो इंटीरियर डिजाईनर को 90 फीसदी पेमेंट कर चुका था | अपनी जांच के बाद रायगढ़ पुलिस ने केस फाईल करने के लिए अदालत को लिखा , अगर अदालत संतुष्ट न हो तो वह केस दाखिल फाईल करने की इजाजत नहीं देती | अदालत संतुष्ट थी , इसीलिए इजाजत दी थी |
क़ानून पुलिस को बंद केस को खोलने की इजाजत भी देता है , लेकिन केस अदालत के आदेश से बंद हो , तो खुलता भी अदालत के आदेश से ही है , इस मामले में ऐसा नहीं हुआ | गैर मराठी अर्नब पर धडाधड कई केस बनाए गए , लेकिन कोई भी केस इतना मजबूत नहीं था कि उसे गिरफ्तार किया जा सकता | इस लिए रायगढ़ पुलिस को राजनीतिक आदेश दिया गया कि इंटीरियर डिजाईनर अन्वय नाईक की आत्महत्या का मामला खोला जाए | इसलिए यह नाजायज तरीके से गिरफ्तार करने और स्वतंत्र पत्रकारिता को नाजायज तरीके से रोकने का मामला है | जो पत्रकार संगठन पत्रकारिता पर हो रहे महाराष्ट्र सरकार के इस हमले और कुकृत्य पर तटस्थ है , या वामपंथी विचारधारा की पत्रकारिता के कारण राष्ट्रवादी पत्रकारिता पर हो रहे हमले पर मंद मंद मुस्करा रहे है , वक्त लिखेगा उन का भी इतिहास |
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