अजय सेतिया / अपने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर की अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और विदेश मंत्री माइक पोंपियो के बीच आज अहम बैठक होने जा रही है | इस बैठक को इसी लिए टू प्लस टू का नाम दिया गया है , क्योंकि दोनों तरफ से दो-दो मंत्री हिस्सा ले रहे हैं | इस से पहले कि अपन चीन के संदर्भ में बैठक के महत्व को समझें, पहले समझ लेते हैं टू प्लस टू बैठक होती क्या है | वार्ता के इस स्वरूप की शुरुआत जापान ने की थी | बाद में दुनिया भर के कई देशों ने बातचीत के इस तरीके को अपनाया | आम तौर पर इस तरह की वार्ताओं का लक्ष्य दो देशों के बीच रक्षा सहयोग के लिए उच्च स्तरीय राजनयिक और राजनीतिक बातचीत को सुविधाजनक बनाना होता है |
भारत और अमेरिका की बात करें तो दोनों देशों के बीच पहली बार टू प्लस टू वार्ता का एलान नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री के नाते पहली अमेरिका यात्रा के समय 2017 में किया गया था | नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप पहली मुलाक़ात की यह बड़ी उपलब्धि थी | तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि आने वाले दो साल में चीन दोनों देशों का साझा टार्गेट होगा | मोदी ट्रम्प मुलाक़ात में हुए इस एस्ले के अगले साल यानी सितंबर 2018 में दोनों देशों के बीच पहली टू प्लस टू बैठक हुई | दूसरी टू प्लस टू बैठक दिसंबर 2019 में हुई थी | आज मंगलवार से होने वाली बैठक भारत और अमेरिका के बीच तीसरी टू प्लस टू बैठक है |
इस बैठक को अपन सिर्फ चीन के साथ दोनों देशों के हाल ही के तनाव के नजरिए से देखते हैं | अपना मानना है कि मंगलवार शाम को जब बैठक के बाद साझा बयान जारी होगा , तो चीन ही निशाने पर होगा | सोमवार सुबह अपन एक टीवी चेनल पर इस विषय में चर्चा कर रहे थे तो एंकर इस बैठक को सिर्फ अमेरिका के चुनावों की नजर से पढ़ रहे थे | लेकिन अपना नजरिया साफ़ था कि राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए भले ही इस बैठक के जरिए अमेरिका में पंप रही चीन विरोधी भावनाओं को भुनाना होगा | पर भारत के लिए इस की अहमियत तब है , जब साझा बयान में चीन को दो टूक धमकाया जाए | इस बैठक से मोदी और ट्रम्प दोनों कूटनीतिक सामरिक और राजनीतिक मकसद हल होगा |
कोरोनावायरस ने जिस तरह दुनिया भर में तबाही मचाई है , उस से जनहानि के साथ साथ जो आर्थिक मंदी आई है , उस के लिए चीन को दोषी माना जा रहा है | ऊपर से चीन की विस्तारवादी नीति रणनीति ने दुनिया को सतर्क किया है | इस नजरिए से देखते हैं तो दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच वैश्विक सहयोग अत्यंत मह्त्व्पूर्र्ण है | पिछले दिनों भारत , अमेरिका , जापान और आस्ट्रेलिया ने साझा बैठक कर के चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ रणनीति तैयार की थी , टू प्लस टू उसी दिशा में दूसरा कदम है | यह बैठक इस लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस में समीक्षा और भविष्य के कदमों का खाका तैयार किया जाएगा | यह पहला मौका होगा जब टू प्लस टू बैठक में भारत की सीमा सुरक्षा से जु़ड़े मुद्दे प्रमुखता से उठेंगे | एलएसी पर पिछले पांच महीने से जो स्थिति है उसको लेकर अमेरिका पहले भी अपनी चिंता जता चुका है | टू प्लस टू बैठक के बाद जारी होने वाले साझा बयान से चीन को संदेश दिए जाने की उम्मीद है | साझा बयान में भारत के साथ चीन को विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ चेतावनी भी दी जा सकती है |
टू प्लस टू बैठक के ठीक एक हफ्ते बाद अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं | वैसे भी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चीन विरोधी भावनाएं उफान पर हैं | नरेंद्र मोदी जिस तरह लोकल के लिए विह्क्ल हैं , कुछ कुछ वैसी ही भावनाए अमेरिका में भी पनपी हुई हैं | क्योंकि कोरोनावायरस के दौरान अमेरिका को जिंदगी जरूरियात के सामान की तंगी महसूस करनी पड़ी | तब अमेरिकियों को एहसास हुआ कि वे चीन पर कितना निर्भर हो चुके हैं | अब वहां भी आत्मनिर्भरता की बात उठ रही है | विदेश मंत्री माइक पोंपिओ और रक्षा मंत्री मार्क एस्पर का रवैया चीन को लेकर खासा तल्ख है | पोंपिओ ने हाल ही में कहा था कि भारत चीन की विस्तारवादी नीतियों से काफी परेशान है |
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