मीडिया का “ध्रुवीकरण” जरूरी भी था

Publsihed: 23.Oct.2020, 20:28

अजय सेतिया / रिया चक्रवर्ती का बचाव करने वाले कुछ न्यूज चेनलों ने पिछले दिनों खबर ब्रेक की थी कि सीबीआई इस नतीजे पर पहुंच गई है कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या नहीं की गई | एक खबर यह भी प्रसारित की गई कि सीबीआई ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में जांच पूरी कर ली है | इन दोनों खबरों का खंडन करते हुए सीबीआई की तरफ से बाकायदा खंडन जारी हुआ , जिस में कहा गया था कि जांच अभी जारी है | यानी जांच पूरी नही हुई थी और जब जांच पूरी नहीं हुई तो नतीजे पर पहुंचने का सवाल भी कैसे पैदा होता है |

अपन जानते हैं कि स्रोत हमेशा पूरी तरह सही नहीं होते | कभी कभी स्रोत खबरें प्लांट भी करते हैं , कई बार खबरें प्लांट करने का भी जांच एजेंसियों को असलियत तक पहुंचने का रास्ता मिलता है | राजनीति में तो अक्सर खबरें प्लांट होती रहती हैं | पर सवाल यह है कि क्या सीबीआई से ही रिया चक्रवर्ती को क्लीन चिट दिलवाने के लिए चेनलों को खबरें लीक की गईं थीं कि उन की हत्या नहीं हुई | इस तरह की खबरें प्रतिक्रिया देखने के लिए भी प्लांट की जाती हैं | पता चलता है कि इस खबर से किस किस ने राहत की सांस ली है , फिर उस की गतिविधियों पर निगाह रख कर मामला सुलटाने में मदद मिलती है | इस लिए खबरों का प्लांट किया जाना हमेशा गलत भी नहीं होता |

पर स्रोतों के हवाले से न्यूज चेनलों पर चली सुशांत सिंह की हत्या नहीं होने की खबर का मामला बाम्बे हाईकोर्ट में पहुंच गया तो सीबीआई खुद कटघरे में खडी हो गई | कुछ पूर्व पुलिस अधिकारियों ने बाम्बे हाईकोर्ट में “मीडिया ट्रायल” शब्द का इस्तेमाल करते हुए  जनहित याचिका दाखिल की है | याचिका में अदालत से दरख्वास्त की गई है कि वह मीडिया को कवरेज नियंत्रित करने के आदेश दे | याचिका ने मीडिया के साथ सीबीआई , ईडी और एनसीबी को कटघरे में खड़ा कर दिया | ये तीनों एजेंसियां सुशांत सिंह के मामले में मौत, नशे के धंधे और आर्थिक मुद्दे पर जांच कर रही हैं | शुक्रवार को तीनों एजेंसियों ने कोर्ट में सफाई दी कि उन्होंने किसी को जांच सम्बन्धी किसी तरह की लीकेज नहीं की है |

अब अदालत उन मीडिया घरानों को नोटिस जारी कर सकती है , जिन्होंने स्रोतों का हवाला दे कर मनघडंत खबरें प्रसारित की थीं | फिर सवाल खड़ा होगा कि मीडिया घराने गलत खबर प्रसारित करने के लिए माफी मांग कर छूट जाएंगे या अदालत उन से स्रोत पूछेगी | मीडिया को स्रोत नहीं बताने का अधिकार है , लेकिन यह अधिकार किसी क़ानून के तहत नहीं मिला | इस लिए यह अदालत पर निर्भर है कि वह उन्हें छूट दे या न दे | इस सम्बन्ध में अलग अलग समय पर अलग तरह के फैसले आते रहे हैं |

उद्धव ठाकरे के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इशारे पर मुम्बई पुलिस इस दिनों रिपब्लिक टीवी के पीछे हाथ धो कर पड़ी है | टीआरपी के मामले में दायर ऍफ़आईआर का सच उजागर कर के रिपब्लिक टीवी ने मुम्बई पुलिस कमिश्नर को कटघरे में खड़ा कर दिया तो अब पुलिस उस खबर का स्रोत पूछने के लिए पत्रकार पर दबाव बना रही है , जिस ने पुलिस कमिश्नर को नंगा कर दिया है | पुलिस ने सीआरपीसी  179 का हवाला दे कर कहा है कि उसे स्रोत बताना पड़ेगा | जो खबर प्रसारित की गई थी , वह सही थी , सवाल पैदा होता है कि क्या सही खबर पर स्रोत पूछना जरूरी है ? इस मामले में कोर्ट का क्या रूख रहता है , इस का इन्तजार रहेगा |

पर अदालत ने भले ही सुशांत सिंह मामले में कवरेज को ले कर मीडिया में हुए ध्रुविकरण के संदर्भ में कहा है , लेकिन उस ने एक बात सोलह आने सही कही कि मीडिया का ‘‘ध्रुवीकरण'' हो गया है | अब उसे नियंत्रित करने का नहीं बल्कि उसके काम में संतुलन कायम करने का सवाल है | वैसे अपन इसे बड़े केनवस पर देखें तो मीडिया का ध्रुवीकरण वक्त की जरूरत थी , क्योंकि मोदी के राष्ट्रीय पटल पर आने तक मीडिया पूरी तह वामपंथी हो गया था और राष्ट्रीय विचारों को हेय दृष्टी से देखा जाने लगा था | मीडिया का एक वर्ग अब खुल कर राष्ट्रीय हितों के लिए लड रहा है और वामपंथियों को बेनकाब कर रहा है , 2014 से पहले यह सम्भव ही नहीं था |

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