बिहार में भी नारा- मोदी तुझ से वैर नहीं

Publsihed: 21.Oct.2020, 20:29

अजय सेतिया/ सवाल पैदा होता है कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोर निंदा करने के बाद 2017 में लालू यादव से गठबंधन क्यों तोडा और भाजपा के साथ मिल कर सरकार क्यों बनाई | उस समय यह बात साफ़ उभर कर आई थी कि लालू यादव के दोनों बेटे असामाजिक तत्वों को संरक्षण देने लगे थे | गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि लालू पुत्रों के संरक्षण में बालू माफ़िया और शराब माफ़िया उभर रहे थे | पुलिस पर दबाव डाला जा रहा था, क़ानून का राज कायम करने में उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ रही थी | जब लालू यादव के भ्रष्टाचार की इतनी कहानी आ गई तब उन्होंने तय किया कि बहुत हो गया और गठबंधन से पार पा लिया | साथ ही उन्होंने जोड़ा था कि जब लालू चारा घोटाले में जेल जाते तो मुख्यमंत्री के तौर पर उन से मिलने जेल जाना पड़ता और उन्हें निर्दोष भी बताना पड़ता |

लेकिन क्या इतना ही सच है | जी नहीं , नीतीश कुमार को 2019 का लोकसभा चुनाव सताने लगा था , क्योंकि भले ही 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 53 सीटें पा कर तीसरे स्थान पर रही थी , लेकिन 2010 के मुकाबले उस का वोट 8 प्रतिशत बढ़कर 24.42 प्रतिशत हो गया था | अब अपन भाजपा नीतीश के रिश्तों के इतिहास को समझते हैं , जिस ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया था | जार्ज फर्नाडिस ने 1994 में समता पार्टी बनाई थी और 1995 में पहली बार समता पार्टी अकेले चुनाव में उतर कर सिर्फ सात सीटों पर जीती थी , नीतीश कुमार भी उन में से एक थे | 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने जार्ज फर्नाडिस , प्रकाश सिंह बादल , बीजू पटनायक और बाला साहब ठाकरे के साथ मिल कर एनडीए बनाया तो समता पार्टी एनडीए का हिस्सा बनी |

2000 में पहली बार भाजपा औए समता पार्टी ने मिल कर बिहार विधानसभा का चुनाव लडा तो समता को सिर्फ 6.47 प्रतिशत वोट , लेकिन 34 सीटें मिलीं थी , तब भाजपा बड़े भाई की भूमिका में थी , क्योंकि उसे 14.64 प्रतिशत वोट और 67 सीटें मिलीं थीं | 2003 में समता पार्टी जदयूं बन गई , 2005 में ( नवम्बर चुनाव ) भाजपा को 15.64 प्रतिशत वोट और 55 सीटें और जदयू को 20.46 प्रतिशत वोट और 88 सीटें मिलीं | यानी गठबंधन का भाजपा को नुक्सान हुआ और जदयू को फायदा हुआ | फिर यह सिलसिला कभी थमा नहीं , 2010 में भाजपा को 16.46 प्रतिशत वोट और 91 सीटें मिलीं , जबकि जदयूं को 22.58 प्रतिशत वोट और 115 सीटें मिलीं , यानी भाजपा से गठबंधन कर के जदयू खुद बहुमत पाने में सफल हो गई थी | बस यहीं से घमंड की शुरुआत हुई | मोदी को मुद्दा बना कर राजग से बाहर गए और 2015 का चुनाव अपने धुर विरोधी लालू यादव के साथ मिल कर लड़ा , जिस में जदयू घाटे में रही , उसे कम सीटें लड़ने को मिली तो उस का वोट प्रतिशत भी 22.58 प्रतिशत से घट कर 16.78 हो गया और सीटें भी 115 से घट कर 71 हो गईं जो पिछले तीन चुनावों के मुकाबले सब से कम थीं |

लालू के परिवार का बालू-बजरी माफिया राज तो चल ही रहा था , भविष्य में भाजपा के अकेले ही उभरने का डर भी सताने लगा था , क्योंकि 1995 के बाद भाजपा ने अकेले लड कर प्रदेश में सर्वाधिक 24.42 प्रतिशत वोट और 53 सीटें पा लीं थी | इसी से डर कर नीतीश कुमार ने 2017 में घर वापसी को ही फायदे में समझा | अब बात वहीं पर पहुंच रही है , जहां से शुरू हुई थी , 2000 में भाजपा 67 सीटों के साथ बिहार में राजद के बाद दूसरे नम्बर की पार्टी थी , तब की जदयू यानी समता पार्टी बहुत छुटकी पार्टी थी | इस बार भाजपा और जदयू 115-115 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं , नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी है , जबकि नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई एंटी इनकम्बेंसी नहीं , अलबता राजस्थान जैसा नारा ही वहां भी लग रहा है , मोदी तुझ से वैर नहीं ....नीतीश तुम्हारी खैर नहीं , यानी 2020 का चुनाव भाजपा को बिहार में शिखर पर पहुंचा रहा है | जदयू तीसरे नम्बर की पार्टी भी बन सकती है , लेकिन दोनों का मिल कर अभी भी पलड़ा भारी है |

 

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