अजय सेतिया / हाथरस में दलित लडकी के ठाकुर से प्रेम सम्बन्धों के चलते हुई हत्या और दिल्ली में मुस्लिम लडकी से हिन्दू युवक के प्रेम के चलते लडके की हत्याओं के बीच विधायिका और न्यायपालिका की लड़ाई शुरू होने की ख़बरें आई हैं | अब ये खबरें लगातार आ रही हैं कि विपक्षी दल और मीडिया वहां वहां चुप्पी साध लेता है जहां हत्यारा और बलात्कारी मुस्लिम हो या हत्या किसी स्वर्ण हिन्दू की हुई हो | यूपी में ही इस तरह की अनेक घटनाएं हाल ही में हुई हैं | राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने न तो उन घटनाओं पर कभी ट्विट किया , न हाथरस की तरह दौरा किया | राजस्थान में दलित बहनों के बलात्कार की घटना को वहां की सरकार से मिलीभगत कर के मीडिया ने ही इस लिए दबा दिया , क्योंकि वहां कांग्रेस की सरकार है |
पालघर की घटना को भी उद्धव सरकार ने दबाने की कोशिश की थी, जिसमें दो साधुओं की माब लिंचिंग हुई थी , अब राजस्थान में भी साधू की माब लिंचिंग को दस लाख रूपए की खैरात दे कर दबाने की कोशिश की जा रही है | माब लिंचिंग अगर उतरप्रदेश या हरियाणा में हो और शिकार मुस्लिम हो तभी माब लिंचिंग होती है क्या , नहीं तो बाकी जगह क्या कीड़े मकौड़े मारे जाते हैं | इन दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार होती तो हिन्दू साधुओं की हत्या होने के बावजूद अन्तराष्ट्रीय बवाल खड़ा हो चुका होता | इन घटनाओं से साबित होता है कि देश में जातीय विद्वेष फैलाने के लिए मीडिया का एक वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है |
हाथरस की घटना के पीछे लडकी के भाई और मां का हाथ होने की खबरें आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच सीबीआई को सौंप दी , लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लडकी के आधी रात को अंतिम संस्कार की अपने लेवल पर जांच शुरू कर दी है , जोकि दलितों को भडकाने के लिए आग में घी डालने वालों का मुख्य मुद्दा है | जबकि सरकार कह चुकी है हिंसा और दंगों को टालने के लिए ऐसा किया गया था |
मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादियों के बचाव वाली याचिका पर रात को अदालत खोले जाने के बाद से अदालतों से जनता का विशवास डगमगाया है | जज खुद को लोकतंत्र के तीनों खम्भों से ऊपर समझने लगे हैं , लोकतंत्र और संविधान का मजाक उड़ाते हुए वे न्यायधीश भी खुद ही चुनते हैं | क्या न्यायपालिका का परिवारवाद लोकतंत्र के लिए चुनौती नहीं है | अदालतें जिस तरह प्रशाशनिक कामों में बेहद दखल देने लगी हैं , उस से कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका में तनाव बढ़ रहा है | न्यायपालिका ने हाल ही में प्रेस की स्वतन्त्रता में भी दखल देने की शुरुआत कर दी है | अब अदालत को इस बात से क्या लेना देना कि किस एंकर की बात करने की क्या शैली है |
अब ताज़ा खबर आंध्र प्रदेश से है , जहां के मुख्यमंत्री और आंध्र हाईकोर्ट में ठन गई है | दस अक्टूबर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी ने सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को एक चिठ्ठी लिख कर सुप्रीमकोर्ट के दुसरे नम्बर के न्यायधीश और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के चार जजों पर राजनीतिक हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे है | विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी भी न्यायाधीश पर राजनैतिक हस्तक्षेप की बात करता है तो ये सामान्य घटना नहीं हो सकती | विधायिका और न्यायपालिका में ऐसा असंतोष एक दिन या एक महीने में पैदा नहीं हुआ होगा |
सरकार और अदालत के बीच ये रंज काफी पहले से चल रहा है | चिठ्ठी ने न्यायिक व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है | अपन मानते हैं कि न्यायपालिका लोकतंत्र के चार स्तंभों में तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है | अगर इसके किसी सदस्य पर किसी राज्य के मुख्यमंत्री की तरफ से उंगली उठती है तो स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है | सोमवार को तो हद ही हो गई , जब इस चिठ्ठी से भडकी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि उस के फैसलों को लेकर सोशल मीडिया पर जो अपमानजनक पोस्ट की जा रही हैं , उसकी जांच सीबीआई से करवाई जाएगी | इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने राज्य की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के 49 नेताओं और कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी कर दिया है |
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