मनमोहन सिंह को बधाई। गुलाम नबी आजाद को भी। दोनों ने रिकार्ड तोड़ दिया। पर इससे पहले कि अपन इन दोनों के बारे में लिखें। जरा नरसिंह राव को याद कर लें। बात तब की जब वह पीएम नहीं बने थे। किसी ने उनसे कहा- 'आप भी हो सकते हैं पीएम।' तो उनने कहा था- 'मेरा पीएम बनना तबाही होगा।' राव का कहा सच निकला। एस बी चव्हाण उनके गृहमंत्री थे। उनने अपने इंटरव्यू में कहा- 'मैं प्रधानमंत्री के कारण बाबरी ढांचा नहीं बचा पाया।'
फिर राव के जमाने में मुंबई में जो नरसंहार हुआ। उसके जिम्मेदार दाऊद-अनीस अभी तक अपने काबू नहीं। उसी राव सरकार में वित्त मंत्री थे मनमोहन सिंह। राव ने कुछ और भी रिकार्ड बनाए। महंगाई का रिकार्ड जो नरसिंह-मनमोहन की जोड़ी ने बनाया। उसे तोड़ने में देवगौड़ा-गुजराल-वाजपेयी नाकाम रहे। महंगाई का रिकार्ड फिर तोड़ा। तो खुद मनमोहन सिंह ने ही तोड़ा। मौजूदा मुद्रास्फीति 12 फीसदी से ऊपर। तेरह साल पुराना रिकार्ड तोड़ चुकी। चलते-चलते बताते जाएं। वाजपेयी जब पीएम बने थे। तब हाऊस लोन पर ब्याज दर तेरह फीसदी थी। वाजपेयी घटा-घटाकर सात कर गए। मनमोहन सिंह को भले ही चार साल लगे। पर वह अपनी पुरानी दर पर ले ही आए। इसलिए अपन ने कहा- मनमोहन सिंह को बधाई। अपना रिकार्ड कोई खुद तोड़े, तो उसका आनंद ही अलग। मनमोहन सिंह यह सुख भोग रहे होंगे। अब बात कश्मीर की। मंगलवार को कश्मीर के सभी जिलों में कर्फ्यू लग गया। तो अपन को पुराना कर्फ्यू याद कराना पड़ेगा। पूरे कश्मीर में इससे पहले कर्फ्यू भी तब लगा था। जब अपने नरसिंह राव पीएम थे, मनमोहन वित्तमंत्री थे। तेरह साल पुरानी बात। अपना ही रिकार्ड तोड़ने का कितना मजा है। वाजपेयी ने कश्मीर के हालात जितने सुधारे। मनमोहन ने उतने ही बिगाड़ लिए। गुलामनबी पर भी नरसिंह राव वाली बात लागू हो गई। कश्मीर की तबाही करके ही लौटे। सो अपने गुलामनबी को भी बधाई। गुलामनबी अगर वोट की राजनीति न करते। तो जम्मू के हालात न बिगड़ते। जम्मू के हालात न बिगड़ते तो कश्मीर के हालात भी न बिगड़ते। आप पूछोगे, गुलामनबी ने वोट की राजनीति क्या की। तो बता दें- श्राइन बोर्ड को जमीन देना वोट की राजनीति थी। अब कांग्रेस भले ही कहे- 'सीएम गवर्नर के दबाव में थे।' पर यह रत्ती भर सच नहीं। गुलामनबी पीडीपी की रणनीति समझ रहे थे। उनने खुद अपन को एक बार सेंट्रल हाल में बताया था- 'पीडीपी चुनाव से पहले गठबंधन तोड़ेगी। वह घाटी में सांप्रदायिक राजनीति करेगी।' इसीलिए उनने जम्मू में कांग्रेस का पव्वा मजबूत करने की रणनीति बनाई। श्राइन बोर्ड को जमीन इसी रणनीति का हिस्सा था। चुनाव उनके सीएम रहते होता। तो जम्मू में कांग्रेस को फायदा होता। पर इंसान जो सोचता है, वह होता नहीं। पीडीपी ने गुलामनबी के इस तुरुप के पत्ते पर ही तिरछी चाल चल दी। गुलामनबी ने बैठे-ठाले पीडीपी को सांप्रदायिक मुद्दा थमा दिया। अब जम्मू में हिंदू सांप्रदायिकता। तो कश्मीर में मुस्लिम सांप्रदायिकता। ऊपर से अपने होम मिनिस्टर शिवराज पाटिल। जिन्हें हालात की समझ जल्दी से नहीं आती। आल पार्टी डेलीगेशन गया था जम्मू की आग बुझाने। कश्मीर में भी आग लगा आया। पाकिस्तान को बैठे-ठाले मुद्दा मिल गया। अपन ने आठ अगस्त को लिखा था- 'पीएम ने आडवाणी को बुलाकर समझाया- आर्थिक नाकेबंदी बंद न हुई। तो अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में राहत सामग्री भेजने की मांग कर दे। तो क्या होगा। सेबों के उत्पादक अपने ट्रक मुजफ्फराबाद की तरफ मोड़ दें। तो क्या होगा।' अपन नहीं जानते। मनमोहन सिंह ने आडवाणी को सावधान किया। या हुर्रियत कांफ्रेंस को उकसाया। आखिर ग्यारह अगस्त को वही हो गया। पाक के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने वही कहा। जो मनमोहन सिंह सोच रहे थे। सो अपने नवतेज सरना को कड़ा ऐतराज जताना पड़ा। पर बात फिर वहीं आकर रुकेगी। मनमोहन सिंह देश को तेरह साल पीछे ले गए। देख लेना-विकास दर की भी पोल खुलेगी।
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