अजय सेतिया / चौदह सितम्बर से संसद का मानसून सत्र शुरू हो रहा है | वजह यह बताई जा रही है कि नियमानुसार संसद की दो बैठकों के बीच अधिकतम 180 दिन का वक्फा हो सकता है , संसद का बजट सत्र क्योंकि 23 मार्च को खत्म कर दिया गया था , इस लिए संसद की बैठक 22 सितम्बर से पहले होनी चाहिए | बजट सत्र 3 अप्रेल तक चलना था , वह देश में कोरोनावायरस की बीमारी फ़ैल जाने के कारण दस दिन पहले सत्रावसान करना पड़ा था | हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई थी कि उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे और मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिरने तक सत्रावसान नहीं किया , जब कि तब तक भारत में हालात बिगड़ चुके थे | 18 मार्च 2020 तक भारत में 1000 से ज्यादा लोग कोरोनावायरस से पीड़ित हो चुके थे और 27 लोगों की मौत भी हो चुकी थी , भारत में 21 दिन के लाकडाउन की घोषणा कर दी गई थी , 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू लग चुका था , लेकिन संसद चल रही थी |
दुनिया भर में छह लाख लोग संक्रमित हो चुके थे , मरने वालों का आंकडा भी 30 हजार से ज्यादा हो चुका था | आखिरकार 23 मार्च को जब सत्रावसान का फैसला किया गया था तब तक भारत के 22 राज्यों के 75 जिलों में संक्रमण फ़ैल चुका था | हालांकि उस समय यह कहा गया था कि भारत ने वक्त रहते ही तेजी से काम शुरू कर दिया , इस लिए दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कोरोनावायरस नहीं फैलेगा | लेकिन यह धारणा गलत साबित हुई क्योंकि भारत ने कई मामलों में न सिर्फ देरी की थी , अलबत्ता घोर लापरवाही भी की थी | जैसे 21 मार्च को जनता कर्फ्यू वाले दिन भी अंतर्राष्ट्रीय फ्लाईट पर रोक नहीं लगाई गई थी , जब 23 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय फ्लाईट पर रोक लगाई गई तब तक लाखों लोग विदेशों से आ चुके थे , उन में से न जाने कितने हजार कोरोनावायरस ले कर भारत आए थे | अन्तरराष्ट्रीय फ्लाईट तो फरवरी में ही बंद कर देनी चाहिए थी , जब यूरोप से महामारी की भयावह खबरें आ रहीं थीं ,ताकि कोरोनावायरस को भारत में आने से रोका जा सकता |
अपना मानना था कि संसद सत्र को छोड़ कर सरकार को कोरोनावायरस से मुकाबला करने की तैयारी करनी चाहिए थी | यानी सत्रावसान एक हफ्ता पहले ही कर दिया जाना चाहिए था | यह एक ऐसा संकट काल होता है , जब आपातकाल घोषित कर के संवैधानिक बाध्यताओं को स्थगित कर दिया जाना चाहिए | अगर सत्रावसान 17 मार्च को हो जाता तो उसी दिन से जनता को सचेत किया जा सकता था कि लाकडाउन किस तरह का होगा और कितना लम्बा चल सकता है , इसलिए जो जो व्यक्ति-परिवार सुरक्षित स्थानों पर अपने परिवारों के साथ रहना चाहते हैं , वे अगले पांच दिन में सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं | अलबत्ता उसी दिन से कुछ ट्रेनें फ्री चला दी जानी चाहिए थी , अगर ऐसा हो जाता तो जिन गरीब मजबूर लोगों को सैंकड़ों मील तपती धूप में पैदल चलना पडा , वे जीवन के इस सब से बड़े संकट से बच सकते थे | उन तस्वीरों ने दुनियाभर में भारत की छवि धूमल की |
वही गलती अब फिर दोहराई जा रही है | अब जबकि कोरोनावायरस शहरों से गाँवों की ओर फ़ैल रहा है , 72775 लोग मारे जा चुके हैं , हर रोज एक हजार लोग मर रहे हैं | 90 हजार लोग हर रोज कोरोनावायरस से संक्रमित हो रहे हैं , आज का आंकडा भी 90,802 का है | अब तक 42 लाख 80 हजार लोग कोविड-19 से पीड़ित हो चुके हैं, हालांकि इन में से 33 लाख 20 हजार ठीक हो चुके हैं , फिर भी इस समय 9 लाख 60 हजार लोग संक्रमित हैं , जो कल तक 10 लाख पार हो जाएगा | अमेरिका के बाद भारत कोरोनावायरस से दुनिया का सर्वाधिक पीड़ित देश बन चुका है , तो ऐसे समय में संसद सत्र की क्या जरूरत थी | क्या सर्वदलीय बैठक में सहमती बना कर केबिनेट से प्रस्ताव पास करवा कर राष्ट्रपति से एक नोटिफिकेशन के जरिए छह महीने की बाध्यता को स्थगित नहीं किया जा सकता था | क्या अगला सत्र जब भी होता , उस से अनुमोदन नहीं करवाया जा सकता था | अगर यह नहीं हो सकता था , तो वर्चुअल सत्र क्यों नहीं हो सकता था
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