अजय सेतिया / ऐसा लगता है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए चीन सरकार की बात नहीं सुन रही | एक तरफ चीन सरकार के बयान तनाव को कम करने वाले आ रहे हैं तो दूसरी तरफ पीएलए ने लद्दाख से ले कर अरुणांचल तक अपनी हरकतें तेज कर दी हैं | कुछ कुछ कारगिल जैसा ही हो रहा है | कारगिल के समय नवाज शरीफ प्रधानमंत्री और परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे | नवाज शरीफ ने बाद में कहा था कि पाकिस्तानी सेना के कारगिल आपरेशन की उन्हें जानकारी नहीं थी | जिस पर बाद में मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट दिया था |
पीएलए असल में चीन की सेना नहीं बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी की सेना है और उस के चार कामों में से एक काम चीन में कम्युनिस्ट सरकार को बनाए रखना भी है , लेकिन अब सवाल यह है कि सरकार की कथनी और पीएलए की करनी में अंतर क्यों है | सरकार की कथनी और करनी में भी अक्सर हमें अंतर दिखाई देता है , क्योंकि सरकार को अपने हर कदम की कम्युनिस्ट पार्टी से सहमती लेनी पडती है | जहां अपना आकलन यह है कि कम्यूनिस्ट सरकार अंतर्राष्ट्रीय स्थिति का आकलन करती है , वहीं पीएलए अपनी विस्तारवादी नीति पर ही आगे बढती रहती है | इसलिए वह 15 जून के सदमे से उबर नहीं पा रही, जब उस ने गलवान घाटी के फिंगर 4 पर भारतीय सेना के साथ दो-दो हाथ कर के मात खाई थी | भारत के 20 जवान शहीद हुए थे तो अब सबूत सामने आ चुके हैं कि पीएलए के 80 जवान मारे गए थे |
17 जून को खुद गलवान घाटी जा कर 20 शहीदों को श्रद्धांजली देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से वायदा किया था कि वीर सपूतों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा , भारत एक-एक इंच अपनी जमीन की रक्षा करेगा और चीन को अपनी विस्तारवादी नीति छ्द्नी होगी | तब से न सिर्फ फिंगर 4 से 8 तक का इलाका हासिल करने की रणनीति बन रही है , बल्कि भारतीय सेना 1962 से पहले वाले भारतीय क्षेत्र पर निगाह टिकाए हुए है | 29 ,30,31 अगस्त की रात पीएलए और भारतीय सेना ने एक दूसरे पर भारी पड़ने की भरपूर कोशिश की , लेकिन सफलता भारतीय सेना को मिली क्योंकि मोदी सरकार ने सेना को लद्दाख में भी वैसी ही छूट दे दी है , जैसी पुलवामा की घटना के बाद एलओसी पार करने के लिए दी थी | नतीजा हमारे सामने है कि भारतीय सेना ने उस ब्लैक टाप पर कब्जा कर लिया , जो 1962 से चीन के नियन्त्रण में थी |
मोदी सरकार ने चीन को सैन्य के साथ साथ आर्थिक मोर्चे पर भी सबक सिखाने की ठानी हुई है | इस लिए पहली सितम्बर को पैगोंग सो झील के दक्षिणी तट पर बढत की खबर आती है , तो 2 सितम्बर को आर्थिक मोर्चे पर दो बड़े कदम उठाए जाते हैं | चीन से आयातित खिलौनों पर 60 फीसदी आयात शुल्क लगाया जाता है तो 118 चीनी एप्स पर भी प्रतिबंध लगा दिया जाता है | 15 जून की घटना के बाद अब तक चीन के 224 एप्स प्रतिबंधित किए जा चुके हैं |
हालांकि पीएलए के 174 बिलियन डालर बजट के मुकाबले भारतीय सेना का बजट सिर्फ 61.7 बिलियन डालर ही है , लेकिन पीएलए 15 जून और उस के बाद की घटनाओं से हताश है और बदले की कार्रवाई के फिराक में है , अब खबर आई है कि पीएलए अरुणांचल की एलएसी पर मोर्चा खोलेगा , तो भारत ने वहां भी भारी तादाड में सेना कूच कर दी है | अरुणांचल के लोकसभा सांसद तापिर गाओ ने बताया कि पीएलए नियमित तौर पर भारतीय इलाकों में घुसपैठ कर रही है | उन्होंने सीमान्त अंजाव जिले के वैलोंग और चगलागम इलाके को सबसे ज्यादा संवेदनशील है | 1962 की जंग के दौरान भारतीय जवानों ने पीएलए को वैलोंग में रोक दिया था जबकि पीएलए के सैनिकों की तादाद बहुत ज्यादा थी | इस इलाके में पहाड़, घास के मैदान और तेज बहाव वाली नदियां हैं | चीन की शरारत हिमांचल और उत्तराखंड के सीमान्त इलाकों में भी हो सकती है , इसलिए उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश , अरुणाचल प्रदेश , लद्दाख और सिक्किम बॉर्डर पर आईटीबीपी , एसऍफ़ऍफ़ और एसएसबी को अलर्ट कर दिया गया हैं । भारत-नेपाल-चीन ट्राई जंक्शन और उत्तराखंड के कालापानी में भी इन तीनों सेनाओं की सतर्कता बढ़ा दी गई है |
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