अजय सेतिया / 23 अगस्त को अपन ने लिखा था कि चीन से दो-दो हाथ करने पड सकते हैं | अगले दिन जब यह कालम छपा था तो उसी दिन जनरल रावत का बयान आया था कि चीन से निपटने के लिए सैन्य विकल्प खुला है | विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पिछले हफ्ते कहा था कि लद्दाख की स्थिति 1962 के संघर्ष के बाद 'सबसे गंभीर' है , दोनों तरफ से तैनात सुरक्षा बलों की संख्या भी 'अभूतपूर्व' है | पन्द्रह जून की रात को भारत और चीन के सैनिकों में हुई मुठभेड़ से पहले खबरें आ चुकीं थी कि पीएलए कम से कम 8 किलोमीटर अंदर घुस आई है | इस मुठभेड़ में चीन के कम से कम 43 सैनिक मारे गए थे , भारत उसे फिंगर 4 से खदेड़ने में कामयाब हो गया था , लेकिन लक्ष्य फिंगर 8 से पार खदेड़ने का है क्योंकि मार्च 2020 में वह फिंगर 8 के पार था |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद 17 जून को लद्धाख जा कर शहीद हुए 20 जवानों को श्रद्धांजली दे कर चीन को स्पष्ट संकेत दिया था कि यह 1962 नहीं है | हालांकि इस के बावजूद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी आए दिन सीमा पर तनाव को ले कर सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं | जबकि मोदी सरकार ने भारतीय फ़ौज को उसी तरह फ्री हेंड दे दिया हुआ है , जैसे 2019 के चुनाव से पहले पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई का दिया था | इस बात को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं | यही कारण है कि 29 ,30,31 अगस्त की रात को भारतीय फ़ौज ने इतना बड़ा आपरेशन किया कि चीन बौखला गया है | पीएलए 29 अगस्त की रात को पेंगोंग झील के दक्षिणी तट से आगे बढने की योजना बना रही थी , लेकिन पहले से ही सतर्क भारतीय फ़ौज ने पीछे धकेल दिया |
29 और 30 अगस्त की घटना से हतप्रद चीन भारत पर आरोप लगा रहा था कि वह उस के क्षेत्र में घुस आया है तभी 31 की रात को भारतीय सेना ने पेंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से में मौजूद उस अहम चोटी पर कब्जा कर लिया , जिस पर चीन ने 1962 के युद्ध में कब्जा किया था | क्योंकि यह चोटी रणनीतिक रूप से काफी अहम मानी जाती है, इस लिए इसे ब्लैक टाप कहते हैं | पीएलए इस चोटी से कुछ दूरी पर ही स्थित थी , उस का इरादा 29 अगस्त की रात को 500 सैनिक तैनात करने का था | पहले उसे पीछे धकेला गया और बाद में मौक़ा देख कर भारतीय सेना ने पहले ही झंडा गाड कर 1962 में गवाई पूरी चोटी अपने कब्जे में ले ली | यह पैंगोंग झील के करीब चुशूल का ठाकुंग इलाका है , अब रणनीतिक तौर पर भारतीय फौज यहां फायदे में है |
रक्षा मंत्रालय ने इन खबरों की पुष्टि नहीं की है कि भारतीय सेना ने पेंगोंग झील के उत्तरी तट पर फिंगर 8 तक भी नियन्त्रण पा लिया है , लेकिन इस तरह की अपुष्ट खबरें थीं | चीन की ओर से जवाबी कार्रवाई की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता | चीन ने पूर्वी लद्दाख से करीब 310 किलोमीटर दूर होतन एयरबेस में लंबी दूरी की क्षमता वाले जे-20 युद्धक विमान और अन्य साजोसामान तैनात कर दिए हैं | भारतीय वायुसेना ने भी पिछले तीन महीनों में अपने सभी महत्वपूर्ण युद्धक विमानों जैसे सुखोई 30 एमकेआई, जगुआर और मिराज 2000 विमान पूर्वी लद्दाख में प्रमुख सीमावर्ती हवाई ठिकानों और एलएसी के पास तैनात किए हैं |
चुशुल के रेजांग ला और रिकिन ला में सेना ने अतिरिक्त जवान तैनात कर दिए है | भारत ने चुशुल के स्पन्गुर पास में टी-90 टैंक के रेजिमेंट की तैनाती कर दी है, जिससे चीन के किसी भी नापाक मंसूबे को विफल किया जा सके | मौजूदा घटना में यह भी देखा जा सकता है कि अब तक चीन के साथ पैंगोंग सो झील के उत्तरी किनारे पर दिक्कतें थीं | तो फिर अब पीएलए ने पैंगोंग सो में दक्षिणी छोर में यह हरकत क्यों की है? पांच दौर की लेफ्टिनेंट जनरल जनरल स्तर की बातचीत के बावजूद चीन का पीछे हटने से इनकार पीएलए की मंशा पर बड़े सवाल खड़े करती है | खबर तो यहाँ तक आ रही है कि जैसे पाकिस्तान में सेना सरकार के काबू में नहीं रहती , उसी तरह पीएलए पर सरकार का नियन्त्रण नहीं है , क्योंकि पीएलए के जवान कम्युनिस्ट कार्यकर्ता होते हैं , और कम्युनिस्ट शैली से ही काम करते हैं | एक तरफ वार्ता चल रही है तो दूसरी तरफ वे युद्ध को आमादा हैं |
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