अजय सेतिया / कम्युनिस्टों का लबादा पूरी तरह से उतर रहा है | पांच साल पहले खुद को बुद्धिजीवी बता कर और मोदी सरकार को असहिष्णु बता कर अवार्ड वापसी करने वाले अब खुद असहिष्णु साबित हो रहे हैं | यह तो सब को मालूम ही है कि नागरिकता संशोधन क़ानून को मुस्लिम विरोधी क़ानून बता कर प्रचारित करने और मुसलमानों को भडका कर उन से हिंसा करवाने के पीछे वामपंथियों का हाथ था | वामपंथी विचारधारा के यूनिवर्सिटी स्तर के लेक्चरार , अंगरेजी अखबारों के पढ़े लिखे सम्पादक , टीवी चेनलों के एंकर और कला के नाम पर नफरत की राजनीति करने वाले नसीरुद्दीन शाह , स्वरा भास्कर , जावेद अख्तर , शाबाना आजमी सब के सब वामपंथी विचारधारा के अगुआ हैं , जो भोले भाले मुसलमानों को यह कह कर भडका रहे थे कि उन के पूर्वजों ने भारत पर एक हजार साल राज किया है और मोदी अब उन्हें भारत की नागरिकता से वंचित कर रहे हैं |
जिस तरह मुम्बई में हुए आतंकी हमले को आरएसएस की साजिश बता कर उर्दू अखबार रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के समूह संपादक अजीज बर्नी ने एक किताब लिखी थी “26/11: आरएसएस की साजिश”, जिस का विमोचन कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने किया था , उसी तरह दिल्ली के दंगों पर जिया उस्लाम और उज्मा औसफ ने किताब लिखी है “शाहीन बाग़ : फ्राम प्रोटेस्ट टू मूवमेंट” , यह किताब एक विदेशी पब्लिशर ब्लूम्बरी पब्लिशिंग इंडिया ने प्रकाशित की | किताब में नागरिकता संशोधन क़ानून को मुस्लिम विरोधी बताया गया , जबकि यह क़ानून किसी के विरोध में नहीं , बल्कि पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान की अल्पसंख्यक विरोधी अमानवीय नीतियों का पर्दाफाश करता है , वही भारत के मुस्लिम कट्टरपंथियों को बर्दाश्त नहीं हुआ , जिस से साबित होता है कि उन की प्रतिबद्धिता किस के प्रति है |
लेकिन झूठ की बुनियाद पर खड़े आन्दोलन पर किताब छापने वाले उसी पब्लिशिंग हॉउस ने दिल्ली के दंगों पर लिखी गई किताब “दिल्ली रायट्स 2020 , अनटोल्ड स्टोरी” को प्रकाशन के अंतिम पडाव पर वामपंथियों के दबाव में छापने से इनकार कर दिया | वामपंथियों को लगा कि किताब छप गई तो वे बेनकाब हो जाएंगे , हालांकि यह दाव उलटा पड़ा है क्योंकि नहीं छपने से किताब ज्यादा चर्चा का विषय बन चुकी है | प्रकाशित तो उसे कोई और प्रकाशक भी कर देगा और वह प्रकाशित हो ही रही है | सुप्रीमकोर्ट की जानी मानी वकील मोनिका अरोड़ा , दिल्ली यूनिवर्सिटी की लेक्चरार सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा ने विभिन्न साक्षात्कारों और जांच के नतीजों के आधार पर किताब किखी है, जिसमें वामपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथियों का दंगाई चेहरा शीशे की तरह साफ़ होगा |
2014 से 2019 तक कम्युनिस्टों ने मीडिया के हर क्षेत्र में घुसे बैठे अपने मोहरों को इस्तेमाल कर के हिन्दू नवजागरण को भारत के लिए खतरा बताने की हर सम्भव कोशिश की , लेकिन इन पांच वर्षों में राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रति युवाओं का आकर्षण कई गुना बढ़ा है | जिस तरह एक जमाने में युवा वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हो कर हिंदुत्व को साम्प्रदायिकता मानकर उस के खिलाफ आक्रमक होते थे , उसी तरह अब वे आक्रमक भाषा में वामपंथियों को बेनकाब कर रहे हैं | इस का ताज़ा उदाहरण फ़िल्मी हिरोईन कंगना रानावत हैं , जो फिल्म इंडस्ट्री के वामपंथी टोले को बेनकाब कर रही है | वामपंथी इस फिराक में थे कि किसी तरह कंगना को घेरा जाए |
हुआ यह कि ओपरा विनफ्रे ने भारत में जाति प्रथा पर एक किताब अमेरिकी कम्पनियों के सीईओ को भेजी थी | जिसका फोटो ट्विट करते हुए शेखर गुप्ता ने लिखा कि भारत में जातिप्रथा पर कोई चर्चा करने को तैयार नहीं | उसी शाम को 23 अगस्त को कंगना ने ‘” आधुनिक भारतीयों ने कास्ट सिस्टम को अस्वीकार कर दिया है, छोटे शहरों में भी हर कोई जानता है कि यह स्वीकार्य नहीं है | हाँ दुखद है कि कुछ लोग जातिप्रथा से खुश हैं | हमारा संविधान आरक्षण के मामले में इसे पकड़े हुए है, इसे जाने दो | इसे खत्म होना चाहिए , आओ इस पर बात करते हैं |” हालांकि मुसलमानों को भारत की आरक्षण व्यवस्था से कुछ लेना देना नहीं है , क्योंकि वे जातीय व्यवस्था का हिस्सा नहीं है , लेकिन वामपंथियों के ईसाई, मुस्लिम , दलित गिरोह ने इसे मौक़ा समझते हुए ट्विटर पर कंगना रानावत के खिलाफ हैशटेग #बायकाट_कंगना_रानावत शुरू कर दिया | अगले दिन 24 अगस्त को सुबह दस बजे शुरू हुए कंगना विरोधी हैशटेग को शाम छह बजे तक एक लाख 10 हजार लोग इस्तेमाल कर चुके थे | लेकिन जैसे ही राष्ट्रवादियों को पता चला उन्होंने दोपहर 1 बजे जवाबी हैशटेग निकाला #झांसी_की_रानी_कंगना और शाम छह बजे तक वामपंथी बुरी तरह पिट चुके थे , क्योंकि 2 लाख 40 हजार कंगना समर्थकों ने खुलकर वामपंथियों को मुहं तोड़ जवाब दिया | यानी राजनीतिक जमीन पर पीटने के बाद मीडिया , फ़िल्मी दुनिया और सोशल मीडिया पर भी कम्युनिस्टों के पीटने के दिन आ गए हैं |
आपकी प्रतिक्रिया