राजस्थान की सियासत में सभी हारे

Publsihed: 13.Aug.2020, 16:11

अजय सेतिया / राजस्थान कांग्रेस में सियासी उठापटक के बाद चीजें ऊपर से शांत तो लग रही हैं , लेकिन अशोक गहलोत कैम्प भीतर से अशांत है | गुरूवार शाम को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में गहलोत और सचिन पायलट ने मास्क पहने हुए हाथ मिलाए , तो दोनों कैम्पों के विधायकों ने विक्ट्री का साईन बनाया | सवाल यह है कि दोनों कैम्पों की विक्ट्री कैसे हो सकती है , अलबता सच तो यह है कि दोनों कैम्प शर्मसार हैं ,क्योंकि दोनों कैम्प हारे हैं | बैठक से पहले गहलोत को भंवर लाल शर्मा और विश्वेन्द्र सिंह का निलम्बन वापस लेना पड़ा | अलबत्ता सचिन पायलट की जगह इन दोनों में से एक को उप मुख्यमंत्री भी बनाना पड सकता है |

मंगलवार को जब सचिन पायलट की राहुल गांधी और प्रियंका से मुलाक़ात की खबर जैसलमेर पहुंची थी , तो गहलोत कैम्प के कम से कम 25 विधायक आग बबूला थे | इस की दो वजहें थी , एक तो यह कि जिन बागियों की वजह से उन्हें एक महीने तक होटलों में रहना पड़ा , वे उन की छाती पर दाल मूंगने फिर आ गए हैं | दूसरी वजह यह थी कि बहुमत तो गहलोत कैम्प के पास था ही , इस वजह से उन्हें उम्मींद थी कि जितनी भी बोर्डों आदि में नियुक्तियां होंगी उस में सचिन कैम्प के साथ साझेदारी नहीं करनी पड़ेंगी | लेकिन अब सचिन कैम्प आधे पदों पर दावेदारी करेगा | अशोक गहलोत के मन की बात उन की जुबान पर भी आ गई , जब उन्होंने बैठक में सचिन पायलट की मौजदगी में कहा कि वह विशवास प्रस्ताव लाएंगे और साबित करेंगे , विशवास मत तो वह 19 विधायकों के बिना भी साबित कर देते |

पायलट कैम्प के बिना सदन में अपना बहुमत साबित करने लिए गहलोत राज्यपाल कलराज मिश्रा से भी भीड़ गए थे , लेकिन अब हो सकता है कि विशवास मत की नौबत ही नहीं आए , क्योंकि गुरूवार को ही हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में विपक्ष ने ही अविश्वास प्रस्ताव रखने का फैसला कर लिया | इस फैसले का एलान हालांकि विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने किया , लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने राज्यपाल से मुलाक़ात के बाद उन्हें यह जानकारी दी | ग्यारह जुलाई को शुरू हुआ गहलोत सरकार का संकट ग्यारह अगस्त को खत्म हुआ | अब सचिन पायलट को फौरी तौर पर क्या मिलेगा , इस का फैसला प्रियंका गांधी करेंगी , उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है और 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले पायलट और गहलोत के पदों की अदला बदली होगी | यह अदला बदली अगले साल भी हो सकती है | कांग्रेस हाईकमान अभी सचिन पायलट के सामने इस लिए घुटने नहीं टेक रहा क्योंकि अगर दबाव में पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया , तो पंजाब और छतीसगढ़ में भी बगावत शुरू हो जाएगी , असंतोष तो वहां पहले से ही है |

इस बात का अंदेशा तो अशोल गहलोत को भी है कि उन की नजर में निक्कमे और नाकारा सचिन पायलट बिना कोई वायदा लिए तो माने नहीं होंगे | जिन के भाजपा में जाने की खबरें थी , और खबर यह भी थी कि भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं | वह हो भी जाता अगर वसुंधरा राजे अपना वीटो नहीं लगाती | वसुंधरा राजे का राजनीतिक आकलन था कि भाजपा को खुद सत्ता में आने के लिए गहलोत का मुख्यमंत्री बने रहना जरूरी है , अगर सचिन पायलट मुख्यमंत्री बन गए तो बाज़ी वसुंधरा के हाथ से हमेशा के लिए निकल सकती थी |       

सवाल है कि इतना आगे बढ़ जाने और बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट से सुलह की क्यों | तो इस की वजह यह है कि अशोक गहलोत के साथ खड़े कांग्रेस महासचिव वेणु गोपाल ने जैसलमेर में सभी विधायकों से अलग अलग बात की थी , और कम से कम 25 विधायकों ने कहा था कि सचिन पायलट और उन के समर्थक विधायकों के साथ नाइंसाफी तो हो ही रही थी | लेकिन अब उस से भी बड़ा सवाल यह है कि भाजपा कैसे गच्चा खा गई | क्या कांग्रेस को एकजुट होने से रोकने में भाजपा की कोई भूमिका हो सकती थी ? हाँ हो सकती थी , अगर राज्यपाल कलराज मिश्रा तुरंत विधानसभा सत्र बुला लेते और अशोक गहलोत अपना बहुमत साबित कर देते तो सचिन पायलट किनारे हो जाते , जिस का अंतत भाजपा को ही फायदा होता | यानी गहलोत और सचिन पायलट ही नहीं भाजपा भी हारी है |

 

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