अजय सेतिया / अपना शुरू से मत रहा है कि हाईकोर्ट को स्पीकर के मामले में दखल देने का हक नहीं है | तब तक तो बिलकुल नहीं है , जब तक स्पीकर अपना फैसला नहीं सुना देता | यह अपन इस लिए कह रहे हैं क्योंकि खुद सुप्रीमकोर्ट अपने कई फैसलों में कह चुका है | स्पीकर के किसी विधायक को अयोग्य ठहराए जाने के किसी भी फैसले को सुप्रीमकोर्ट ने आज तक पलटा भी नहीं है | हाँ कर्नाटक के मामले में फैसले को संशोधित कर के विधायकों को चुनाव लड़ने से रोकने का फैसला जरुर पलटा था , लेकिन अयोग्य तो ठहराए ही गए थे |
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पीकर के नोटिस पर सुनवाई कर के लक्ष्मण रेखा का उलंघन किया है , यह अपना शुरू से मानना रहा | पर गलती स्पीकर सीपी जोशी ने भी की , उन्हें कोर्ट में अपना वकील भेजना ही नहीं चाहिए था | वह सोमनाथ चटर्जी वाले स्टेंड पर कायम रहते कि स्पीकर कोर्ट के दायरे में नहीं आता | पहले खुद अपना वकील भेज कर स्पीकर सीपी.जोशी ने स्पीकरों को कोर्ट के दायरे में लाने की गलती की और अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दे कर कह रहे हैं कि हाईकोर्ट को लक्ष्मण रेखा का उलंघन करने से रोका जाए | जोशी की एसएलपी में पंडित एसएमएस शर्मा बनाम कृष्णा सिन्हा केस का हवाला दिया गया है , जिस में सुप्रीमकोर्ट की सात जजों की बेंच ने कहा था कि स्पीकर की ओर से भेजे गए नोटिस की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती |
भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के अनुसार, स्पीकर के फैसले के बाद भी, अदालतों को हस्तक्षेप करने के लिए सीमित आधार हैं, जैसे कि अगर स्पीकर ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया हो | पर हाईकोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का उलंघन कर के सचिन पायलट खेमे के तीन विधायकों की याचिका को सुनना शुरू किया तो स्पीकर को उसे अनदेखा कर के अपनी प्रक्रिया जारी रखनी चाहिए थी , अपना वकील भी कोर्ट में नहीं भेजना चाहिए था | अशोक गहलोत अपने आप निपटते , जोशी ने गलत नजीर पेश कर दी और अब शिकायत ले कर सुप्रीमकोर्ट पहुंच गए |
लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है , जितना दिखता है | सीपी जोशी 2013 में मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए थे , चुनाव उन की रहनुमाई में लडे गए थे और वह खुद एक वोट से हार गए थे , तब अशोक गहलोत हाई कमान में अपने सम्बन्धों का फायदा उठा कर मुख्यमंत्री बन गए थे | इस बार वह विधायक बने थे , लेकिन सचिन पायलट की महात्वाकांक्षा ने लड़ाई गहलोत बनाम पायलट बना दी तो जोशी अपना दावा तक नहीं ठोक सके | गहलोत ने सचिन पर विजय पाने के बाद बड़ी चालाकी से जोशी को स्पीकर बनवा कर किनारे फैंक दिया था |
सीपी जोशी के पास अब यह मौक़ा है जब गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई में वह हाईकमान के सामने दोनों को खारिज कर अपने नाम पर सहमती बनवा सकते हैं | तो क्या सचिन पायलट उन के नाम पर मान जाएंगे , क्या इसी रणनीति के तहत जोशी ने उन की बर्खास्तगी का रास्ता साफ़ करने की बजाए पायलट को लम्बा समय दिया है | क्या वह गहलोत का विधानसभा में बहुमत साबित करने का गेम बिगाड़ना चाहते हैं , ताकि पायलट खेमे के खुल्लम खुल्ला सामने आए 19 विधायक और 13 गुप्त विधायक भाजपा के साथ मिल कर गहलोत सरकार गिरा दें और फिर सचिन पायलट हाईकमान के सामने जोशी को मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला पेश कर दें |
अपना शक इस लिए भी है क्योंकि स्पीकर की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए , जो सचिन पायलट के करीबी और गहलोत विरोधी हैं , क्या सचिन सचिन पायलट ने ही सिंघवी को जोशी का वकील बनवाया था | सीता राम केसरी ने जब देवेगौडा सरकार से समर्थन वापस ले लिया था , तो प्रधानमंत्री बदल कर कांग्रेस के ही समर्थन से दुबारा फिर जनता दल की सरकार बन गई थी , इस तरह 1997 में चुनाव टल गए थे | राजनीति इतनी आसान भी नहीं होती , जितनी दिखती है , देखते हैं होता क्या है |
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