अजय सेतिया / महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने जीवन की सब से बड़ी चुनौती लाक आउट के बाद शुरू होगी | मुख्यमंत्री की कुर्सी उन को कितनी महंगी पड़ेगी , शायद इस का एहसास उन को नहीं था | कांग्रेस,एनसीपी और कम्युनिस्टों के साथ मिल कर सरकार बनाने के क्या क्या नतीजे भुगतने पड़ते हैं , इस की उन्होंने कल्पना भी नही की होगी | पालघर में हुई दो साधुओं की हत्या के तार अब सीपीएम की हिंसक राजनीति से जुड़ने शुरू हो गए हैं | कम्युनिस्ट विचारधारा के सभी संगठनों ने अपने अपने तरीके से जांच को प्रभावित करने के हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं , जिस से चोर की दाढी में तिनका की कहावत चरितार्थ होती दिखाई देती हैं |
एक समय में पीयूसीएल ने पुलिस ज्यादतियों के खिलाफ तथ्य परक रिपोर्टें दे कर नाम कमाया था , लेकिन धीरे धीरे इसके चेहरे से नकाब उठने लगा और स्पष्ट होने लगा कि पीयूसीएल का काम विभिन्न वारदातों में दक्षिण पंथी ताकतों को कटघरे में खड़ा करना और वामपंथियों को बचाना है | आप पिछले पच्चास साल की पीयूसीएल की कोई भी रिपोर्ट उठा कर देख लीजिए , उस का लब्बोलुबाब यही होगा | अब पालघर की घटना पर महाराष्ट्र सरकार की पुलिस जांच शुरू होने से पहले ही पीयूसीएल ने अपनी रिपोर्ट दे दी है , जिस का शीर्षक है –“पालघर लिंचिंग :ट्राइड आफ रियूमर, फीयर एंड हेट प्रोपोगेन्डा “
पीयूसीएल की इस रिपोर्ट में वामपंथी स्टाईल में हत्याकांड की निंदा करते हुए आरोप लगाया है – “ग्रामीणों को परेशान किया जा रहा है और पुलिस के डर से बहुत सारे ग्रामीण घरों से भाग कर जंगलों में छिपने को मजबूर हैं | यह तथ्य है कि इलाके में अफवाहों और भय के वातावरण के कारण यह हत्याकांड हुआ | फेक न्यूज के माध्यम से हत्याकांड को साम्प्रदायिक रंग दिया जाना घोर निंदनीय है | हम इस की घोर निंदा करते हैं कि कुछ ताकतों ने पहले घटना को साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की और जब वे फेल हो गईं तो अब वामपंथी दलों को दोषी ठहराया जा रहा है |”
पीयूसीएल की इस तथाकथित रिपोर्ट का खुलासा कम्युनिस्ट पार्टी की किसान सभा के अध्यक्ष अध्यक्ष अशोक धावले के लेख से हुआ , जो उन्होंने अपनी विचारधारा की ही एक वेबसाईट पर लिखा है | पीयूसीएल की रिपोर्ट सब से पहले कम्युनिस्ट पार्टी के पास ही जाती है , क्योंकि उन्हें उस का राजनीतिक इस्तेमाल करना होता है | अशोक धावले ने पुलिस पर तो शक खड़ा किया है , अपने इस लेख में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पहले बयान का भी हवाला दिया है , जिस में कहा गया था कि पालघर की माब लिंचिंग वैसी घटना नहीं है , जैसी पिछले छह सालों में देश भर में हो रही थीं | अगर मुख्यमंत्री ने ऐसा कहा है तो स्पष्ट है कि उन्होंने सीपीएम की लिखी हुई इबारत ही पढ़ी है , क्योंकि जांच से पहले किसी नतीजे पर कैसे पहुंचा जा सकता है |
पालघर इलाके में सत्तर के दशक से चल रही वामपंथी और ईसाई धर्मान्तरण की गतिविधियों से वाकिफ एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया साईट पर लिखा था कि सोनिया गांधी की एनएसी के सदस्य रहे पीटर डी मेलो उर्फ़ प्रदीप प्रभु की पत्नी और काश्तकारी सन्गठन की अध्यक्ष शिराज बलसारा ने पकड़े गए 101 ग्रामीणों में से ईसाईयों की जमानत करवाने की कोशिशे शुरू कर दी हैं | उस ने गलती से पीटर डी मेलो और उस की पत्नी शिराज बलसारा की जगह किसी और दम्पत्ति का फोटो लगा दिया था | इसी को आधार बना कर वामपंथी विचारधारा के एक राष्ट्रीय अखबार ने पीटर डी मेलो , उस की पत्नी शिराज बलसारा और कम्युनिस्ट पार्टी का बचाव करते हुए बड़ा लेख लिखा है , जबकि सच्चाई यह है कि यह सन्गठन 1978 से इस इलाके में कम्युनिस्ट पार्टी और कैथोलिक चर्च के साथ मिल कर काम कर रहा है , जिस में धर्मान्तारण से लेकर नक्सली गतिविधिया तक शामिल हैं |
काश्तकारी सन्गठन लम्बे समय से इस इलाके में पीपुल कोर्ट लगा कर त्वरित न्याय सुनाता रहा है , जिसे सुप्रीमकोर्ट ने कंगारू कोर्ट कहा था | ऐसा लगता है कि साधुओं की हत्या भी इलाके में बच्चा चोरों का भय फैला कर त्वरित न्याय की काश्तकारी शैली का हिस्सा था | सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या काश्तकारी संगठन की मदद से चुनाव जीते कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक कामरेड विनोद नकोले और एनसीपी के दबाव में उद्धव ठाकरे ने 48 घंटे तक ऍफ़आईआर नहीं होने दी थी या एनसीपी के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने ऍफ़आईआर को रोका था | अब जब ऍफ़आईआर और जांच के आदेश हो चुके हैं तो इस तरह की रिपोर्टें जारी कर के जांच का मुहं मोड़ने की कोशिश हो रही है |
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